सीनियर एडवोकेट की नियुक्ति कैसे होनी चाहिए? – एक न्यायिक दृष्टिकोण

Himanshu Mishra

14 Oct 2024 10:02 AM IST

  • सीनियर एडवोकेट की नियुक्ति कैसे होनी चाहिए? – एक न्यायिक दृष्टिकोण

    भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सीनियर एडवोकेट (Senior Advocates) की नियुक्ति के लिए एक नया तंत्र लागू किया है।

    यह परिवर्तन इंदिरा जयसिंह बनाम भारत का सुप्रीम कोर्ट एवं अन्य मामले के निर्णय के बाद आया। इस केस में कोर्ट ने पारदर्शिता (Transparency), जवाबदेही (Accountability) और निष्पक्ष मापदंड (Objective Criteria) की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया।

    अब तक, वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति एडवोकेट एक्ट, 1961 (Advocates Act) की धारा 16 के तहत की जाती थी, लेकिन इस प्रक्रिया को असंगत और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता) के खिलाफ माना गया। कोर्ट के इस फैसले का उद्देश्य एक निष्पक्ष और आधुनिक प्रणाली को स्थापित करना है, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों और न्यायिक मूल्यों के अनुरूप हो।

    एडवोकेट एक्ट की धारा 16 और न्यायपालिका की भूमिका (Role of Judiciary under Advocates Act Section 16)

    एडवोकेट एक्ट, 1961 के तहत अधिवक्ताओं को दो वर्गों में बांटा गया है- सीनियर एडवोकेट एक्ट और अन्य एडवोकेट। धारा 16 के अनुसार, किसी एडवोकेट को उसकी योग्यता, कानूनी प्रतिष्ठा (Legal Standing) या विशेष अनुभव (Special Expertise) के आधार पर सीनियर एडवोकेट नियुक्त किया जा सकता है।

    हालांकि, इस नियुक्ति का अधिकार न्यायपालिका के विवेक (Discretion) पर था, जिसे बिना स्पष्ट मापदंडों के प्रयोग किया जाता था। याचिकाकर्ता ने इस पद्धति को अनुचित और मनमाना बताया तथा इसे संविधान के अनुच्छेद 14 (Non-Arbitrariness) का उल्लंघन माना। इसके समाधान के रूप में, अदालत ने अंक-आधारित मूल्यांकन प्रणाली (Point-Based Evaluation System) की अनुशंसा की।

    पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर (Need for Transparency)

    कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि न्यायपालिका और विधि क्षेत्र में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक है। ब्रिटेन के Queen's Counsel और ऑस्ट्रेलिया, नाइजीरिया तथा सिंगापुर में प्रचलित वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Counsel) के चयन प्रणालियों का भी जिक्र किया गया। इन प्रणालियों में पारदर्शी मापदंड, साथियों का मूल्यांकन (Peer Review), और इंटरव्यू जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं।

    भारतीय अदालत ने महसूस किया कि पहले प्रयोग की जा रही गुप्त मतदान प्रणाली (Secret Ballot) कई समस्याएं उत्पन्न कर रही थी। विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा आय, उम्र, और प्रैक्टिस के वर्षों के अलग-अलग मापदंड अपनाने से असमानता (Inconsistency) उत्पन्न हुई। अदालत ने इस विभाजन को दूर करने के लिए सभी अदालतों के लिए समान मापदंड लागू करने का निर्देश दिया।

    चयन समिति की स्थापना (Formation of Selection Committee)

    इस ऐतिहासिक निर्णय में न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) की अध्यक्षता में एक चयन समिति (Selection Committee) गठित करने का निर्देश दिया। इस समिति में अन्य सीनियर जज, भारत के अटॉर्नी जनरल (Attorney General) और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष शामिल होंगे। विभिन्न हितधारकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए यह पहल की गई, ताकि नियुक्ति प्रक्रिया संतुलित हो।

    नई व्यवस्था में, अंक-आधारित प्रणाली के माध्यम से उम्मीदवारों का मूल्यांकन किया जाएगा। इसमें पेशेवर योग्यता (Professional Competence), ईमानदारी (Integrity), विशेषज्ञता (Domain Expertise), नि:शुल्क कानूनी सहायता (Pro Bono Work), और प्रकाशनों (Publications) जैसे कारकों को शामिल किया गया है। इस समिति के अंतर्गत एक सचिवालय (Secretariat) भी होगा, जो प्रशासनिक कार्यों को संभालेगा और प्रक्रिया को व्यवस्थित रखेगा।

    महत्वपूर्ण निर्णयों का संदर्भ (Reference to Important Judgments)

    अदालत ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय और घरेलू मामलों का हवाला दिया। विशेष रूप से ब्रिटेन के Queen's Counsel की प्रणाली की आलोचना को आधार बनाया गया, जहाँ इसे "गुप्त क्लब" के रूप में देखा गया था। Peach Report (2005) और अन्य रिपोर्टों ने पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया की आवश्यकता पर जोर दिया।

    नाइजीरिया के सीनियर एडवोकेट (Senior Advocate of Nigeria) की नियुक्ति प्रणाली का भी जिक्र किया गया, जिसमें विविधता (Diversity) और पेशेवर योगदान (Professional Contributions) को महत्व दिया गया है। भारतीय न्यायपालिका ने इन वैश्विक मानकों से सीख लेते हुए नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और उद्देश्यपूर्ण बनाया।

    घरेलू स्तर पर, गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट संघ ने एडवोकेट एक्ट की धारा 16 को चुनौती दी, जिसमें सीनियर एडवोकेट की अवधारणा को भेदभावपूर्ण बताया गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह विभाजन उचित है, लेकिन इसे निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से लागू किया जाना चाहिए।

    संवैधानिक सिद्धांत और न्यायालय का दृष्टिकोण (Constitutional Principles and Court's Perspective)

    इस निर्णय में संवैधानिक सिद्धांतों जैसे समानता (Equality) और न्यायसंगत प्रक्रिया (Fairness) को मुख्य आधार बनाया गया। अदालत ने कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता की नियुक्ति का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया में सुधार लाना और जनता का विश्वास बढ़ाना होना चाहिए। नई प्रणाली न केवल योग्यता को महत्व देती है, बल्कि यह कानूनी पेशे में विविधता और निष्पक्षता को भी प्रोत्साहित करती है।

    इसके साथ ही, अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया कि नियुक्तियों की प्रक्रिया नागरिकों पर सकारात्मक प्रभाव डाले और अधिवक्ता के कौशल और अनुभव की सही पहचान हो।

    सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सीनियर एडवोकेट की नियुक्ति प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण बदलाव है। पारदर्शी मापदंड और बहु-सदस्यीय चयन समिति के माध्यम से, यह सुनिश्चित किया गया कि नियुक्तियाँ योग्यता और पेशेवरता के आधार पर हों।

    इस फैसले ने भारतीय प्रणाली को अंतरराष्ट्रीय मानकों के करीब लाने और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।

    अंततः, यह नई व्यवस्था संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है और विधि पेशे में जनता के विश्वास को बढ़ाने में सहायक होगी।

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