आरक्षण नीतियों में सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन कैसे तय होता है?
Himanshu Mishra
16 Nov 2024 7:11 PM IST
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कुछ समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC - Other Backward Classes) की केंद्रीय सूची में शामिल करने से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार किया।
इस मामले में संविधान और कानूनी प्रावधानों की व्याख्या की गई और सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन के मानदंडों (Criteria) पर चर्चा हुई। अदालत ने विशेषज्ञ आयोगों (Expert Commissions) जैसे राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC - National Commission for Backward Classes) की भूमिका और महत्व पर भी जोर दिया।
यह फैसला आरक्षण की नीतियों और उनके लागू होने के ढांचे को बेहतर समझने के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है।
प्रमुख संवैधानिक प्रावधान (Key Constitutional Provisions)
यह फैसला संविधान के उन अनुच्छेदों पर आधारित है जो आरक्षण नीतियों की नींव रखते हैं।
• अनुच्छेद 15(4) (Article 15(4)): यह राज्य को समाज के पिछड़े वर्गों (Socially and Educationally Backward Classes), अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes), और अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) के लिए विशेष प्रावधान (Special Provisions) बनाने की अनुमति देता है।
• अनुच्छेद 16(4) (Article 16(4)): यह सरकारी नौकरियों (Public Employment) में उन पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है जो सरकारी सेवाओं में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते।
• अनुच्छेद 38 और 46 (Articles 38 and 46): यह राज्य पर असमानताओं (Inequalities) को कम करने, समाज के कमजोर वर्गों (Weaker Sections) की आर्थिक और शैक्षणिक प्रगति को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी डालते हैं।
इसके अलावा, अनुच्छेद 340 (Article 340) के तहत राष्ट्रपति को आयोग (Commissions) गठित करने का अधिकार है, जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति का अध्ययन करें और उनके उत्थान के उपाय सुझाएं।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की भूमिका (Role of the National Commission for Backward Classes - NCBC)
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC), 1993 में बने कानून के तहत, OBC सूची में शामिल या बाहर करने से जुड़ी मांगों पर विचार करता है।
• धारा 9 (Section 9): यह आयोग को सलाह (Advice) देने का अधिकार देती है, जिसे आमतौर पर सरकार को मानना अनिवार्य (Ordinarily Binding) होता है।
• महत्वपूर्ण फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि NCBC की सलाह को खारिज (Override) करने के लिए मजबूत और लिखित कारण (Compelling and Recorded Reasons) होने चाहिए।
यह रुख इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार (Indra Sawhney v. Union of India, 1992) के फैसले के अनुरूप है, जिसमें एक स्थायी आयोग (Permanent Commission) की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। अदालत ने कहा कि NCBC की सिफारिशें आरक्षण में संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण हैं।
पिछड़ेपन के मानदंड (Criteria for Identifying Backwardness)
NCBC ने मंडल आयोग (Mandal Commission Report) और इंद्रा साहनी मामले से प्रेरित होकर पिछड़ेपन के लिए 11 मापदंड (Indicators) निर्धारित किए हैं। यह मापदंड सामाजिक, शैक्षणिक, और आर्थिक श्रेणियों (Social, Educational, and Economic Categories) में बांटे गए हैं।
• सामाजिक मापदंड (Social Indicators): इन मापदंडों में समाज द्वारा पिछड़े माने जाने वाले वर्गों (Classes Considered Backward by Others) और शादी की आयु (Marriage Age) जैसे कारकों को शामिल किया गया।
• शैक्षणिक मापदंड (Educational Indicators): इसमें स्कूल ड्रॉपआउट दर (School Dropout Rates) और मैट्रिक पास (Matriculate) छात्रों की संख्या देखी जाती है।
• आर्थिक मापदंड (Economic Indicators): औसत पारिवारिक संपत्ति (Average Family Assets) और कच्चे मकानों (Kuccha Houses) की संख्या का मूल्यांकन किया जाता है।
कोर्ट ने इन मानदंडों से विचलन (Deviation) की आलोचना की, खासकर उन मामलों में जहां स्वास्थ्य सांख्यिकी (Public Health Statistics) जैसे मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate) को सामाजिक पिछड़ेपन का मापदंड बना दिया गया।
सरकारी फैसलों की न्यायिक समीक्षा (Judicial Review of Government Decisions)
अदालत ने NCBC की सलाह को खारिज करने के सरकार के निर्णय की गहन जांच की और इसे मनमाना (Arbitrary) और राजनीतिक (Political Motive) बताया।
• महत्वपूर्ण संदर्भ: कोर्ट ने बेरियम केमिकल्स लिमिटेड बनाम कंपनी लॉ बोर्ड (Barium Chemicals Ltd. v. Company Law Board, 1966) और रोहतास इंडस्ट्रीज बनाम एस.डी. अग्रवाल (Rohtas Industries v. S.D. Agarwal, 1969) जैसे मामलों का हवाला दिया।
• अदालत ने कहा कि सरकार के निर्णय की समयसीमा (Timing) और उसके पीछे छिपे इरादों को भी परखा जाना चाहिए, खासकर जब यह चुनाव के समय लिया गया हो।
उल्लेखनीय मिसालें (Landmark Precedents Cited)
यह फैसला इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार (1992) के फैसले पर आधारित है, जिसमें पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए ठोस ढांचे (Robust Framework) की आवश्यकता पर जोर दिया गया था।
अदालत ने यह भी दोहराया कि आरक्षण के लिए पर्याप्त और मापने योग्य डेटा (Quantifiable Data) होना आवश्यक है, जैसा कि एम. नागराज बनाम भारत सरकार (M. Nagaraj v. Union of India, 2006) मामले में स्थापित किया गया था।
यह फैसला आरक्षण नीतियों में पारदर्शिता (Transparency) और संतुलन (Balance) बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने जोर देकर कहा कि पिछड़ेपन की पहचान (Backwardness Identification) के लिए डेटा-आधारित, वस्तुनिष्ठ (Objective) मापदंड आवश्यक हैं।
यह फैसला सामाजिक न्याय (Social Justice) और योग्यता (Meritocracy) के बीच संतुलन स्थापित करने में सहायक होगा।