हिंदू विवाह अधिनियम, 1955: धारा 11 द्वारा निर्धारित शून्य विवाह और धारा 12 द्वारा परिभाषित शून्यकरणीय विवाह के आधार

Himanshu Mishra

12 July 2025 11:21 AM

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955: धारा 11 द्वारा निर्धारित शून्य विवाह और धारा 12 द्वारा परिभाषित शून्यकरणीय विवाह के आधार

    हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) के तहत, विवाह हमेशा पूर्ण रूप से वैध (Perfectly Valid) नहीं होते हैं। कुछ परिस्थितियों में, एक विवाह को शून्य (Void) या शून्यकरणीय (Voidable) घोषित किया जा सकता है।

    धारा 11 (Section 11) उन विवाहों से संबंधित है जो शुरू से ही अमान्य (Invalid) होते हैं, जबकि धारा 12 (Section 12) उन विवाहों का विवरण देती है जो कुछ विशेष आधारों (Specific Grounds) पर रद्द (Annulled) किए जा सकते हैं, लेकिन तब तक वैध बने रहते हैं जब तक उन्हें अदालत द्वारा रद्द नहीं किया जाता। यह वर्गीकरण (Classification) विवाहों में उत्पन्न होने वाली विभिन्न कानूनी समस्याओं (Legal Problems) को संबोधित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

    11. शून्य विवाह (Void Marriages)

    इस अधिनियम के प्रारंभ (Commencement) के बाद solemnize (विधिवत संपन्न) किया गया कोई भी विवाह शून्य और अमान्य (Null and Void) होगा और किसी भी पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष के विरुद्ध प्रस्तुत की गई याचिका (Petition) पर शून्यता की डिक्री (Decree of Nullity) द्वारा ऐसा घोषित किया जा सकता है, यदि वह धारा 5 (Section 5) के खंड (i), (iv) और (v) में निर्दिष्ट (Specified) शर्तों में से किसी एक का उल्लंघन (Contravenes) करता है।

    स्पष्टीकरण: शून्य विवाह वे होते हैं जो कानून की नजर में कभी अस्तित्व में ही नहीं आए (Never came into existence)। वे शुरू से ही अमान्य होते हैं और उन्हें रद्द करने के लिए अदालत के decree की आवश्यकता नहीं होती, हालांकि एक पक्ष कानूनी स्पष्टता (Legal Clarity) के लिए शून्यता की डिक्री प्राप्त कर सकता है। धारा 5 की निम्नलिखित शर्तों का उल्लंघन करने वाले विवाह शून्य होते हैं:

    1. धारा 5(i) का उल्लंघन (Violation of Section 5(i) - Monogamy): यदि विवाह के समय किसी भी पक्ष का पहले से कोई जीवित पति या पत्नी (Spouse Living) है।

    o उदाहरण: राहुल पहले से ही सीमा से विवाहित है। उसकी पहली शादी भंग हुए बिना, वह प्रिया से दूसरी शादी करता है। राहुल और प्रिया का विवाह शून्य होगा।

    2. धारा 5(iv) का उल्लंघन (Violation of Section 5(iv) - Prohibited Degrees of Relationship): यदि पक्ष निषिद्ध संबंध की डिग्री (Degrees of Prohibited Relationship) के भीतर हैं और उनके बीच विवाह को अनुमति देने वाला कोई मान्य रीति-रिवाज (Valid Custom) नहीं है।

    o उदाहरण: रमेश अपनी बहन निशा से शादी करता है। यह विवाह निषिद्ध संबंध की डिग्री में आता है, और इसलिए यह शून्य होगा।

    3. धारा 5(v) का उल्लंघन (Violation of Section 5(v) - Sapinda Relationship): यदि पक्ष एक-दूसरे के सपिंड (Sapindas) हैं और उनके बीच विवाह को अनुमति देने वाला कोई मान्य रीति-रिवाज नहीं है।

    o उदाहरण: अर्जुन अपनी बुआ की बेटी से शादी करता है, जो उसके सपिंड संबंध की सीमा में आती है, और उनके समुदाय में इस तरह के विवाह की कोई स्थापित रीति-रिवाज नहीं है। यह विवाह शून्य होगा।

    महत्वपूर्ण केस लॉ (Landmark Case Law): भुराओ शंकर लोकहंडे बनाम महाराष्ट्र राज्य (Bhaurao Shankar Lokhande v. State of Maharashtra), 1965: इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5(i) का उल्लंघन करने वाला विवाह (यानी, एक जीवित पति या पत्नी के होते हुए दूसरी शादी करना) शून्य (null and void) होता है। न्यायालय ने यह भी दोहराया कि ऐसे विवाह को वैध मानने के लिए आवश्यक अनुष्ठानों (Essential Ceremonies) का प्रदर्शन भी नहीं हुआ होता है। यह निर्णय शून्य विवाह की अवधारणा को मजबूत करता है, खासकर द्विविवाह (Bigamy) के मामलों में।

    12. शून्यकरणीय विवाह (Voidable Marriages)

    (1) इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले या बाद में solemnize किया गया कोई भी विवाह शून्यकरणीय (Voidable) होगा और निम्नलिखित में से किसी भी आधार (Grounds) पर शून्यता की डिक्री द्वारा रद्द किया जा सकता है, अर्थात्:— (Any marriage solemnised, whether before or after the commencement of this Act, shall be voidable and may be annulled by a decree of nullity on any of the following grounds, namely:—)

    स्पष्टीकरण: शून्यकरणीय विवाह वे होते हैं जो तब तक वैध (Valid) माने जाते हैं जब तक कि पीड़ित पक्ष (Aggrieved Party) न्यायालय में याचिका दायर करके उन्हें रद्द न करवा दे। यदि कोई पक्ष इसे रद्द करने के लिए कार्रवाई नहीं करता है, तो विवाह वैध बना रहता है।

    शून्यकरणीय विवाह के आधार:

    (a) प्रतिवादी की नपुंसकता (Impotency) के कारण विवाह का संपन्न (Consummated) न होना; या (that the marriage has not been consummated owing to the impotency of the respondent; or)

    • स्पष्टीकरण: यदि विवाह को यौन रूप से संपन्न (Sexually Consummated) नहीं किया जा सका है क्योंकि दूसरे पक्ष में यौन संबंध बनाने की शारीरिक या मानसिक अक्षमता (Physical or Mental Incapacity) (नपुंसकता) है। नपुंसकता का अर्थ संतानोत्पत्ति की अक्षमता नहीं, बल्कि संभोग (Sexual Intercourse) करने में असमर्थता है।

    • उदाहरण: विवाह के बाद, राहुल को पता चलता है कि उसकी पत्नी नेहा चिकित्सकीय रूप से नपुंसक है और विवाह को संपन्न करने में असमर्थ है। राहुल इस आधार पर विवाह को रद्द करने के लिए याचिका दायर कर सकता है।

    (b) धारा 5 के खंड (ii) में निर्दिष्ट शर्त (Condition) का उल्लंघन (Contravention); या (that the marriage is in contravention of the condition specified in clause (ii) of section 5; or)

    • स्पष्टीकरण: यह धारा 5(ii) में उल्लिखित मानसिक क्षमता (Mental Capacity) की शर्त का उल्लंघन है। यदि विवाह के समय कोई भी पक्ष अस्वस्थ मन (Unsound Mind) का था, या ऐसे मानसिक विकार (Mental Disorder) से पीड़ित था जो उसे विवाह और संतानोत्पत्ति के लिए अनुपयुक्त बनाता है, या पागलपन के बार-बार होने वाले हमलों के अधीन था, तो विवाह शून्यकरणीय होगा।

    • उदाहरण: शादी के समय, रीना गंभीर बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) से पीड़ित थी और उसकी सहमति वैध नहीं मानी जा सकती थी। उसके पति, अमित, को शादी के बाद इसका पता चलता है। अमित इस आधार पर विवाह को शून्यकरणीय घोषित करने के लिए आवेदन कर सकता है।

    (c) याचिकाकर्ता (Petitioner) की सहमति, या जहाँ याचिकाकर्ता के विवाह के संरक्षक (Guardian in Marriage) की सहमति [बाल विवाह निरोधक (संशोधन) अधिनियम, 1978 (2 of 1978) के प्रारंभ से ठीक पहले की धारा 5 के अनुसार आवश्यक थी], ऐसे संरक्षक की सहमति बल (Force) या कपट (Fraud) से प्राप्त की गई थी, जैसा कि समारोह की प्रकृति (Nature of the Ceremony) के संबंध में या प्रतिवादी (Respondent) से संबंधित किसी भी भौतिक तथ्य या परिस्थितियों (Material Fact or Circumstances) के संबंध में था; या (that the consent of the petitioner, or where the consent of the guardian in marriage of the petitioner [was required under section 5 as it stood immediately before the commencement of the Child Marriage Restraint (Amendment) Act, 1978 (2 of 1978)], the consent of such guardian was obtained by force [or by fraud as to the nature of the ceremony or as to any material fact or circumstances concerning the respondent]; or)

    • स्पष्टीकरण: यदि विवाह के लिए किसी पक्ष की सहमति जबरदस्ती (Coercion) या धोखाधड़ी से ली गई थी। धोखाधड़ी यहाँ केवल समारोह की प्रकृति (जैसे किसी और समारोह के लिए कहा गया था) या प्रतिवादी के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों या परिस्थितियों (Material Facts or Circumstances) (जैसे आपराधिक इतिहास, गंभीर बीमारी, शिक्षा, आय आदि के बारे में जानबूझकर गलत जानकारी) से संबंधित होनी चाहिए। यह सामान्य गलत बयानी (General Misrepresentation) से भिन्न है।

    • उदाहरण: सुनील को धमकाया गया और बंदूक की नोक पर शादी करने के लिए मजबूर किया गया। यह विवाह बल (Force) द्वारा प्राप्त सहमति का एक मामला है। या, मीना ने राहुल से शादी की, यह जानते हुए भी कि वह एक गंभीर आनुवंशिक बीमारी से पीड़ित है और उसने इस तथ्य को राहुल से छुपाया, जो एक भौतिक तथ्य है। राहुल कपट के आधार पर विवाह को रद्द करने की याचिका दायर कर सकता है।

    महत्वपूर्ण केस लॉ: एस. नागलिंगम बनाम शिवगामी (S. Nagalingam v. Sivagami), 2001: सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 12(1)(c) के तहत "कपट" की व्याख्या की। न्यायालय ने कहा कि "कपट" का अर्थ व्यापक रूप से सभी प्रकार की धोखाधड़ी नहीं है, बल्कि यह केवल विवाह समारोह की प्रकृति (जैसे यह एक वास्तविक विवाह है या नहीं) या प्रतिवादी के बारे में किसी भौतिक तथ्य या परिस्थिति तक सीमित है। सामान्य झूठ या गलत बयानी (General lies or misrepresentation) जैसे आय, संपत्ति आदि के बारे में, जब तक वे विवाह के मूल आधार को प्रभावित न करें, इस धारा के तहत कपट नहीं माने जाएंगे।

    (d) कि प्रतिवादी विवाह के समय याचिकाकर्ता के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से गर्भवती (Pregnant) थी। (that the respondent was at the time of the marriage pregnant by some person other than the petitioner.)

    • स्पष्टीकरण: यह आधार केवल तभी लागू होता है जब पति को विवाह के समय इस तथ्य (Fact) की जानकारी न हो कि उसकी पत्नी किसी और व्यक्ति से गर्भवती है। यह पति के सम्मान और परिवार की प्रतिष्ठा (Dignity of Husband and Reputation of Family) को ध्यान में रखता है।

    • उदाहरण: मोहन ने सुनीता से शादी की, और बाद में उसे पता चलता है कि शादी के समय सुनीता किसी और पुरुष से दो महीने की गर्भवती थी। मोहन इस आधार पर विवाह को रद्द करने की याचिका दायर कर सकता है।

    (2) उप-धारा (1) में किसी भी बात के होते हुए भी, विवाह को रद्द करने के लिए कोई याचिका— (Notwithstanding anything contained in sub-section (1), no petition for annulling a marriage—)

    यह उप-धारा शून्यकरणीय विवाहों को रद्द करने के लिए याचिका दायर करने पर कुछ सीमाएँ (Limitations) लगाती है, ताकि दुरुपयोग को रोका जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि पीड़ित पक्ष तुरंत कार्रवाई करे:

    (a) उप-धारा (1) के खंड (c) में निर्दिष्ट आधार (बल या कपट) पर स्वीकार नहीं की जाएगी यदि— (i) याचिका बल के समाप्त होने या कपट के खोजे जाने के एक वर्ष से अधिक समय बाद प्रस्तुत की जाती है; या (ii) याचिकाकर्ता ने, अपनी पूर्ण सहमति से, बल के समाप्त होने या कपट के खोजे जाने के बाद विवाह के दूसरे पक्ष के साथ पति या पत्नी के रूप में सहवास (Lived as husband or wife) किया है;

    • स्पष्टीकरण: यह समय सीमा (Time Limit) और पुष्टि (Confirmation) का सिद्धांत है। यदि पीड़ित पक्ष बल या कपट के बारे में जानने के बाद भी एक वर्ष से अधिक समय तक निष्क्रिय रहता है, या जानबूझकर विवाह को जारी रखता है और सहवास करता है, तो वह विवाह को रद्द करने का अपना अधिकार खो देता है।

    (b) उप-धारा (1) के खंड (d) में निर्दिष्ट आधार (विवाह के समय गर्भावस्था) पर स्वीकार नहीं की जाएगी जब तक कि न्यायालय संतुष्ट न हो— (i) कि याचिकाकर्ता विवाह के समय कथित तथ्यों से अनभिज्ञ (Ignorant) था; (ii) कि इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले solemnize किए गए विवाह के मामले में ऐसे प्रारंभ के एक वर्ष के भीतर और ऐसे प्रारंभ के बाद solemnize किए गए विवाह के मामले में विवाह की तारीख से एक वर्ष के भीतर कार्यवाही (Proceedings) शुरू की गई है; और (iii) कि याचिकाकर्ता द्वारा उक्त आधार के अस्तित्व की खोज के बाद से याचिकाकर्ता की सहमति से वैवाहिक संभोग (Marital Intercourse) नहीं हुआ है।

    • स्पष्टीकरण: यह आधार भी समय सीमा और आचरण (Conduct) से संबंधित है। पति को तथ्यों से अनजान होना चाहिए था, एक वर्ष के भीतर याचिका दायर करनी चाहिए, और खोज के बाद पत्नी के साथ यौन संबंध नहीं बनाना चाहिए, अन्यथा वह अपना अधिकार खो देगा।

    उदाहरण: यदि एक पति को अपनी पत्नी की गर्भावस्था के बारे में विवाह के छह महीने बाद पता चलता है, लेकिन वह अगले दो साल तक कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करता और उनके बीच वैवाहिक संबंध जारी रखता है, तो वह बाद में इस विवाह को रद्द करने के लिए याचिका दायर नहीं कर पाएगा।

    धारा 11 और 12 हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाहों की कानूनी स्थिति (Legal Status) को स्पष्ट करती हैं। वे वैध विवाह और अवैध विवाह के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर स्थापित करती हैं।

    शून्य विवाह शुरू से ही कानूनी रूप से अमान्य होते हैं, जबकि शून्यकरणीय विवाह तब तक वैध होते हैं जब तक उन्हें न्यायालय द्वारा सफलतापूर्वक रद्द नहीं किया जाता। ये प्रावधान व्यक्तियों को उन विवाहों से राहत पाने के लिए कानूनी रास्ते प्रदान करते हैं जो कुछ महत्वपूर्ण शर्तों को पूरा नहीं करते हैं या जो अनुचित परिस्थितियों में हुए थे।

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