हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 धारा 13A-13B: तलाक कार्यवाही में वैकल्पिक राहत और आपसी सहमति से तलाक

Himanshu Mishra

15 July 2025 12:06 PM

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 धारा 13A-13B: तलाक कार्यवाही में वैकल्पिक राहत और आपसी सहमति से तलाक

    हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) में संशोधन (Amendments) समय-समय पर वैवाहिक संबंधों की बदलती सामाजिक गतिशीलता (Changing Social Dynamics) को दर्शाते हैं। धारा 13A (Section 13A) न्यायालय को तलाक की कार्यवाही में वैकल्पिक राहत (Alternate Relief) प्रदान करने का विवेक (Discretion) देती है, जबकि धारा 13B (Section 13B) आपसी सहमति (Mutual Consent) से तलाक के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान (Crucial Provision) प्रस्तुत करती है।

    ये धाराएँ लचीलापन (Flexibility) लाती हैं और उन स्थितियों में राहत प्रदान करती हैं जहाँ विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुका है या जहाँ सुलह का कोई रास्ता नहीं बचा है।

    13A. तलाक कार्यवाही में वैकल्पिक राहत (Alternate Relief in Divorce Proceedings)

    इस अधिनियम के तहत किसी भी कार्यवाही में, तलाक की डिक्री (Decree of Divorce) द्वारा विवाह के विघटन (Dissolution) के लिए एक याचिका पर, सिवाय उन मामलों के जहाँ याचिका धारा 13 की उप-धारा (1) (Sub-section (1) of Section 13) के खंड (ii), (vi) और (vii) में उल्लिखित आधारों पर आधारित है, न्यायालय, यदि वह मामले की परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा करना उचित (Just) समझता है, तो इसके बजाय न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) के लिए डिक्री पारित कर सकता है।

    स्पष्टीकरण: यह धारा न्यायालय को एक तलाक की याचिका पर भी, न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) की डिक्री देने का विवेकाधिकार (Discretionary Power) देती है, बशर्ते याचिका कुछ विशिष्ट आधारों पर न हो।

    इसका मतलब यह है कि भले ही पति या पत्नी ने तलाक मांगा हो, न्यायालय यह महसूस कर सकता है कि तुरंत तलाक देना उचित नहीं होगा और इसके बजाय उन्हें कुछ समय के लिए कानूनी रूप से अलग रहने का अवसर देना बेहतर होगा। यह सुलह (Reconciliation) की संभावना को खुला रखता है, या कम से कम पति-पत्नी को अपने अलगाव को व्यवस्थित (Organize their Separation) करने का समय देता है।

    जिन आधारों पर तलाक की याचिका होने पर भी न्यायालय न्यायिक पृथक्करण का आदेश नहीं दे सकता, वे हैं:

    • धारा 13(1)(ii): किसी अन्य धर्म में धर्मांतरण।

    • धारा 13(1)(vi): संसार का त्याग करके किसी धार्मिक आदेश में प्रवेश करना।

    • धारा 13(1)(vii): सात साल या उससे अधिक समय से जीवित न सुना गया हो (मृत्यु की धारणा)।

    ये आधार आमतौर पर "नो-फॉल्ट" (No-fault) या "अपरिवर्तनीय टूटन" (Irretrievable Breakdown) की ओर अधिक झुके होते हैं, जहाँ विवाह का तथ्य ही निर्णायक होता है, इसलिए न्यायिक पृथक्करण के लिए वैकल्पिक राहत की गुंजाइश नहीं होती।

    उदाहरण: यदि पत्नी क्रूरता (Cruelty) के आधार पर पति से तलाक के लिए याचिका दायर करती है। न्यायालय क्रूरता के आरोप को सच पाता है, लेकिन परिस्थितियों (जैसे छोटे बच्चे, या सुलह की थोड़ी संभावना) को देखते हुए यह महसूस करता है कि पूर्ण तलाक देने के बजाय, पहले न्यायिक पृथक्करण की डिक्री देना अधिक न्यायसंगत होगा।

    13B. आपसी सहमति से तलाक (Divorce by Mutual Consent)

    (1) इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन, विवाह के विघटन के लिए तलाक की डिक्री हेतु याचिका जिला न्यायालय (District Court) में विवाह के दोनों पक्षों द्वारा एक साथ (By both the parties to a marriage together) प्रस्तुत की जा सकती है, चाहे ऐसा विवाह विवाह कानून (संशोधन) अधिनियम, 1976 (68 of 1976) के प्रारंभ से पहले या बाद में solemnize किया गया हो, इस आधार पर कि वे एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि से अलग रह रहे हैं (Living Separately for a period of one year or more), कि वे एक साथ रहने में असमर्थ रहे हैं (Not been able to live together) और कि वे परस्पर सहमत (Mutually Agreed) हो गए हैं कि विवाह को भंग कर दिया जाना चाहिए।

    (Subject to the provisions of this Act a petition for dissolution of marriage by a decree of divorce may be presented to the district court by both the parties to a marriage together, whether such marriage was solemnized before or after the commencement of the Marriage Laws (Amendment) Act, 1976 (68 of 1976), on the ground that they have been living separately for a period of one year or more, that they have not been able to live together and that they have mutually agreed that the marriage should be dissolved.)

    स्पष्टीकरण: यह धारा हिंदू विवाह अधिनियम में सबसे महत्वपूर्ण संशोधनों में से एक थी, जिसने आपसी सहमति से तलाक (Divorce by Mutual Consent) की अवधारणा पेश की। यह विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने (Irretrievable Breakdown of Marriage) के सिद्धांत पर आधारित है, जहाँ दोनों पक्ष यह मानते हैं कि उनका विवाह अब काम नहीं कर सकता है।

    इस प्रक्रिया में, पति-पत्नी दोनों एक संयुक्त याचिका (Joint Petition) दायर करते हैं, यह बताते हुए:

    1. वे कम से कम एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं (Living Separately)।

    2. वे एक साथ रहने में असमर्थ हैं (Unable to Live Together)।

    3. उन्होंने परस्पर सहमति (Mutually Agreed) व्यक्त की है कि उनका विवाह भंग कर दिया जाना चाहिए।

    यह धारा तलाक की प्रक्रिया को उन जोड़ों के लिए सरल बनाती है जो सौहार्दपूर्ण ढंग से (Amicably) अलग होना चाहते हैं, जिससे लंबी और अक्सर कटु (Bitter) मुकदमेबाजी (Litigation) से बचा जा सके।

    उदाहरण: राहुल और प्रिया, शादी के बाद एक साल और छह महीने से अलग रह रहे हैं। उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला है कि वे एक साथ नहीं रह सकते और अब उनका विवाह काम नहीं कर रहा है। वे दोनों परस्पर सहमत हैं कि उन्हें तलाक ले लेना चाहिए। वे धारा 13B के तहत जिला न्यायालय में संयुक्त याचिका दायर कर सकते हैं।

    महत्वपूर्ण केस लॉ: अमला बाला भताचार्य बनाम शमपदन भताचार्य (Amla Bala Bhattacharya v. Sampadan Bhattacharya), 1983: कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने इस मामले में आपसी सहमति से तलाक के लिए "अलग रहने" (Living Separately) की अवधारणा को स्पष्ट किया। न्यायालय ने कहा कि "अलग रहने" का मतलब केवल शारीरिक अलगाव (Physical Separation) नहीं है, बल्कि इसमें सहवास का निलंबन (Suspension of Cohabitation) और संयुक्त निवास की कमी (Lack of Joint Residence) भी शामिल है, भले ही वे एक ही छत के नीचे रह रहे हों।

    (2) उप-धारा (1) में संदर्भित याचिका प्रस्तुत करने की तारीख से छह महीने से पहले नहीं और अठारह महीने से बाद में नहीं, दोनों पक्षों के प्रस्ताव (Motion) पर, यदि इस बीच याचिका वापस (Withdrawn) नहीं ली जाती है, तो न्यायालय, पक्षों की सुनवाई (Hearing the parties) के बाद और ऐसी जांच (Inquiry) करने के बाद जो वह उचित समझे, यह संतुष्ट होने पर कि विवाह solemnize किया गया है और याचिका में दिए गए अभिकथन (Averments) सत्य हैं, तलाक की डिक्री पारित करेगा जिसमें decree की तारीख से विवाह को भंग घोषित किया जाएगा।

    (On the motion of both the parties made not earlier than six months after the date of the presentation of the petition referred to in sub-section (1) and not later than eighteen months after the said date, if the petition is not withdrawn in the meantime, the court shall, on being satisfied, after hearing the parties and after making such inquiry as it thinks fit, that a marriage has been solemnized and that the averments in the petition are true, pass a decree of divorce declaring the marriage to be dissolved with effect from the date of the decree.)

    स्पष्टीकरण: यह उप-धारा आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया (Procedure) को निर्धारित करती है। पहली याचिका दायर करने के बाद, न्यायालय एक न्यूनतम "कूलिंग-ऑफ पीरियड" (Minimum Cooling-Off Period) के रूप में छह महीने (Six Months) का इंतजार करने का निर्देश देता है। यह अवधि पक्षों को अपने निर्णय पर पुनर्विचार (Reconsider) करने का मौका देने के लिए होती है।

    यदि छह महीने के बाद भी (लेकिन अठारह महीने से पहले) दोनों पक्ष फिर से न्यायालय में उपस्थित होते हैं और तलाक पर अपनी सहमति दोहराते हैं, और याचिका वापस नहीं ली गई है, तो न्यायालय उनकी सुनवाई करता है, याचिका में दिए गए तथ्यों की सत्यता की जांच करता है, और यदि संतुष्ट होता है तो तलाक का decree पारित करता है।

    उदाहरण: राहुल और प्रिया 1 जनवरी, 2024 को आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर करते हैं। उन्हें 1 जुलाई, 2024 के बाद (लेकिन 1 जुलाई, 2025 से पहले) न्यायालय में एक संयुक्त प्रस्ताव (Joint Motion) दायर करना होगा ताकि वे अपनी सहमति की पुष्टि कर सकें। यदि वे ऐसा करते हैं और न्यायालय संतुष्ट होता है कि सभी शर्तें पूरी हो गई हैं, तो न्यायालय तलाक का decree जारी करेगा।

    महत्वपूर्ण केस लॉ: अनिल कुमार जैन बनाम माया जैन (Anil Kumar Jain v. Maya Jain), 2009: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में धारा 13B(2) में उल्लिखित छह महीने की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि (Mandatory Waiting Period) पर चर्चा की।

    न्यायालय ने कहा कि असाधारण परिस्थितियों (Exceptional Circumstances) में, जहाँ विवाह पूरी तरह से टूट चुका है और सुलह की कोई संभावना नहीं है, सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 (Article 142) के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करके इस अवधि को माफ (Waive) कर सकता है। यह न्यायिक विवेक को दर्शाता है जब विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने की स्थिति स्पष्ट हो। हालांकि, जिला अदालतों (District Courts) के लिए यह नियम अभी भी लागू रहता है।

    हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13A और 13B आधुनिक वैवाहिक कानून में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। धारा 13A न्यायालयों को तलाक की कार्यवाही में लचीलापन प्रदान करती है, जिससे वे विशिष्ट परिस्थितियों में न्यायिक पृथक्करण के लिए वैकल्पिक राहत प्रदान कर सकें।

    वहीं, धारा 13B ने आपसी सहमति से तलाक के प्रावधान के साथ तलाक की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित (Streamline) किया है, जिससे उन जोड़ों के लिए गरिमापूर्ण निकास (Dignified Exit) सुनिश्चित होता है जिनके विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुके हैं। ये धाराएँ बदलते सामाजिक मानदंडों (Social Norms) और व्यक्तियों की स्वायत्तता (Autonomy) को कानूनी रूप से मान्यता देती हैं।

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