क्या Sex Workers को कानून और समाज में समानता और सुरक्षा का अधिकार मिल पाया है?
Himanshu Mishra
6 Feb 2025 11:51 AM

सुप्रीम कोर्ट ने Budhadev Karmaskar v. State of West Bengal & Ors. (2022) केस में Sex Workers के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) को Article 21 के तहत मान्यता दी। कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि समाज में Sex Workers के साथ भेदभाव (Discrimination) होता है और उन्हें मानवीय गरिमा (Human Dignity) से वंचित कर दिया जाता है।
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण निर्देश (Directions) दिए ताकि Sex Workers को पुलिस उत्पीड़न (Harassment) से सुरक्षा मिले, उन्हें Aadhaar कार्ड जैसी पहचान (Identity) मिले और वे सम्मानपूर्वक (With Dignity) जीवन जी सकें। यह फैसला Sex Workers को समान नागरिक अधिकार (Equal Rights) दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
अनुच्छेद 21 (Article 21): गरिमा के साथ जीने का अधिकार (Right to Live with Dignity)
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि भारतीय संविधान (Indian Constitution) का अनुच्छेद 21 हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है।
कोर्ट ने Francis Coralie Mullin v. Administrator, Union Territory of Delhi (1981) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि जीवन का अधिकार (Right to Life) केवल जीवित रहने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मानव गरिमा (Human Dignity) के साथ जीने, मूलभूत आवश्यकताओं (Basic Necessities) जैसे भोजन, कपड़ा और आश्रय (Shelter) का अधिकार भी शामिल है।
इस फैसले में कोर्ट ने Maneka Gandhi v. Union of India (1978) का भी उल्लेख किया, जिसमें Article 21 को Article 14 (समानता का अधिकार - Right to Equality) और Article 19 (स्वतंत्रता का अधिकार - Right to Freedom) से जोड़ा गया था।
Budhadev Karmaskar केस में कोर्ट ने इसे आगे बढ़ाते हुए स्पष्ट किया कि Sex Workers को भी समानता के आधार पर कानून की सुरक्षा मिलनी चाहिए और उनके पेशे (Profession) के कारण उनके अधिकार नहीं छीने जा सकते।
अनुच्छेद 142 (Article 142): कानून में मौजूद कमी को भरने की शक्ति (Power to Fill Legislative Gaps)
Article 142 सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति देता है कि जब कानून में कोई कमी (Legislative Gap) हो, तब वह आवश्यक दिशा-निर्देश (Directions) जारी कर सके। कोर्ट ने पाया कि 2016 में Sex Workers के अधिकारों को लेकर कुछ सिफारिशें (Recommendations) की गई थीं, लेकिन सरकार ने अब तक कोई कानून नहीं बनाया।
इस स्थिति में, सुप्रीम कोर्ट ने Article 142 के तहत निर्देश जारी किए ताकि जब तक संसद (Parliament) कोई कानून न बनाए, तब तक Sex Workers को कानूनी सुरक्षा (Legal Protection) मिले।
इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने Vishaka v. State of Rajasthan (1997) केस में Article 142 का उपयोग करके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) से बचाव के लिए दिशानिर्देश दिए थे। इसी तरह Budhadev Karmaskar केस में भी कोर्ट ने Sex Workers को राहत देने के लिए अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग किया।
पुलिस उत्पीड़न से सुरक्षा और कानून के समक्ष समानता (Protection from Police Harassment and Equal Treatment Under the Law)
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने Sex Workers के प्रति पुलिस की नकारात्मक सोच (Negative Mindset) को लेकर चिंता जताई। कोर्ट ने निर्देश दिया कि यदि कोई Sex Worker स्वेच्छा (Consent) से यह कार्य कर रही है और वह बालिग (Adult) है, तो पुलिस को उसे परेशान नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा, अगर कोई Sex Worker किसी अपराध (Crime) की शिकायत (Complaint) दर्ज कराती है, तो पुलिस को इसे उतनी ही गंभीरता से लेना चाहिए जितना किसी अन्य नागरिक की शिकायत को लिया जाता है।
कोर्ट ने State of Maharashtra v. Madhukar Narayan Mardikar (1991) केस का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि किसी महिला का पेशा उसकी सुरक्षा के अधिकार (Right to Protection) को प्रभावित नहीं कर सकता।
मीडिया में गोपनीयता और पहचान की सुरक्षा (Privacy and Confidentiality in Media Coverage)
इस फैसले में यह भी कहा गया कि Sex Workers की पहचान (Identity) को मीडिया में उजागर (Expose) नहीं किया जाना चाहिए, खासकर पुलिस रेड (Raid) और रेस्क्यू ऑपरेशन (Rescue Operations) के दौरान। कोर्ट ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (Press Council of India) को निर्देश दिया कि मीडिया को इस संबंध में सख्त दिशा-निर्देश दिए जाएं।
कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 354C (Voyeurism - छिपकर देखने का अपराध) का हवाला देते हुए कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को Sex Workers और उनके ग्राहकों (Clients) की तस्वीरें दिखाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
यह फैसला Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India (2017) केस के अनुरूप है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीयता (Privacy) को मौलिक अधिकार (Fundamental Right) घोषित किया था।
आधार कार्ड और पहचान का अधिकार (Right to Identity: Aadhaar Cards for Sex Workers)
Sex Workers को आधार कार्ड (Aadhaar Card) मिलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था क्योंकि उनके पास निवास प्रमाण (Proof of Residence) नहीं होता था।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि UIDAI (Unique Identification Authority of India) Sex Workers को आधार कार्ड जारी करे, बशर्ते कि उन्हें राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग (State Health Department) से प्रमाण पत्र (Certificate) मिल जाए।
यह आदेश PUCL v. Union of India (2003) के फैसले से मेल खाता है, जिसमें कहा गया था कि जीवन के अधिकार (Right to Life) के तहत लोगों को बुनियादी सुविधाएं (Basic Amenities) मिलनी चाहिए। इस फैसले से Sex Workers को पहचान मिलेगी और वे बैंकिंग, स्वास्थ्य सुविधाओं (Healthcare) और सरकारी योजनाओं (Government Schemes) का लाभ उठा सकेंगी।
Sex Workers के बच्चों की सुरक्षा (Protection of Sex Workers' Children)
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी बच्चे को सिर्फ इसलिए उसकी माँ से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि वह Sex Work में है। Gaurav Jain v. Union of India (1997) केस में भी कोर्ट ने कहा था कि Sex Workers के बच्चों को भेदभाव (Discrimination) से बचाया जाना चाहिए और उन्हें शिक्षा तथा सरकारी योजनाओं तक समान पहुंच मिलनी चाहिए।
Budhadev Karmaskar केस में कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई नाबालिग (Minor) किसी कोठे (Brothel) में पाया जाता है, तो यह नहीं माना जाना चाहिए कि उसे तस्करी (Trafficking) करके वहां लाया गया है। डीएनए टेस्ट (DNA Test) करके माता-पिता की पहचान की जा सकती है, और यदि वह सच साबित होता है, तो बच्चे को जबरदस्ती उसकी माँ से अलग नहीं किया जाना चाहिए।
पुनर्वास और कानूनी जागरूकता (Rehabilitation and Legal Awareness)
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य सरकारें Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956 के तहत चल रहे सुरक्षा गृहों (Protective Homes) का सर्वेक्षण करें और उन वयस्क महिलाओं को रिहा करें जो वहां जबरदस्ती रोकी गई हैं।
इसके अलावा, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority) को निर्देश दिया गया कि वे Sex Workers को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए कार्यशालाएं (Workshops) आयोजित करें।
यह Laxmi Kant Pandey v. Union of India (1984) फैसले से मेल खाता है, जिसमें कोर्ट ने बाल कल्याण (Child Welfare) के लिए राज्य की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया था।
Budhadev Karmaskar का फैसला Sex Workers को गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार दिलाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
इस फैसले से पुलिस उत्पीड़न कम होगा, गोपनीयता की रक्षा होगी, पहचान मिलेगी और उनके बच्चों के अधिकार सुरक्षित होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पेशे की परवाह किए बिना हर व्यक्ति को संविधान के तहत समान सुरक्षा मिलनी चाहिए।