भारतीय न्याय संहिता 2023 की अंतिम धारा 358 : IPC के निरसन और इसके प्रभाव

Himanshu Mishra

3 Feb 2025 6:09 PM IST

  • भारतीय न्याय संहिता 2023 की अंतिम धारा 358 : IPC के निरसन और इसके प्रभाव

    भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) 2023 के लागू होने के साथ ही भारत में दंड कानून (Penal Law) में एक ऐतिहासिक बदलाव हुआ है। इस संहिता ने 160 वर्षों से अधिक समय तक प्रभावी रहे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC) को पूरी तरह से निरस्त (Repeal) कर दिया है।

    धारा 358 (Section 358) इसी संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह यह स्पष्ट करती है कि IPC के निरसन (Repeal) का प्रभाव क्या होगा और इसके तहत पहले किए गए कार्यों, दायित्वों और लंबित मामलों का क्या होगा।

    इस धारा के अनुसार, IPC को औपचारिक रूप से निरस्त कर दिया गया है, लेकिन इसके निरसन के बावजूद कई प्रावधानों को सुरक्षा दी गई है ताकि कानून की निरंतरता बनी रहे और कोई कानूनी शून्यता (Legal Vacuum) उत्पन्न न हो।

    भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का निरसन (Repeal of IPC)

    धारा 358 की उपधारा (1) यह स्पष्ट रूप से कहती है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) को पूरी तरह से निरस्त किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि अब IPC का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहेगा और इसके स्थान पर BNS 2023 लागू होगा।

    लेकिन केवल किसी कानून को निरस्त करना पर्याप्त नहीं होता, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक होता है कि इसके तहत पूर्व में की गई कानूनी कार्यवाहियाँ प्रभावित न हों। इसलिए इस धारा की अगली उपधाराएँ यह स्पष्ट करती हैं कि IPC के निरसन का प्रभाव किन चीजों पर नहीं पड़ेगा।

    पूर्व प्रभाव (Past Operation) को सुरक्षित करना

    धारा 358 की उपधारा (2) यह सुनिश्चित करती है कि IPC के निरसन का प्रभाव उन मामलों पर नहीं पड़ेगा जो इस कानून के प्रभावी रहने के दौरान अस्तित्व में आए थे। यह प्रावधान यह स्पष्ट करता है कि:

    1. पहले किए गए कार्य या भुगते गए दायित्व (Previous Operation and Liabilities) – यदि किसी व्यक्ति ने IPC के तहत कोई कार्य किया था या किसी को किसी प्रकार का अधिकार (Right) या दायित्व (Obligation) मिला था, तो यह अधिकार या दायित्व IPC के निरसन से प्रभावित नहीं होगा। उदाहरण के लिए, यदि IPC के तहत कोई मामला दर्ज किया गया था, तो वह मामला IPC के निरसन के बावजूद जारी रहेगा।

    2. अधिकार, विशेषाधिकार, दायित्व और दंड (Rights, Privileges, Obligations, and Penalties) – यदि किसी व्यक्ति को IPC के तहत कोई अधिकार मिला था या उस पर कोई दायित्व (Liability) था, तो IPC के निरसन से वह अधिकार या दायित्व समाप्त नहीं होगा।

    3. दंड और सजा (Penalty and Punishment) – IPC के तहत किए गए अपराधों के लिए पहले से जो दंड या सजा निर्धारित की गई थी, वह IPC के निरसन से समाप्त नहीं होगी। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने IPC के तहत कोई अपराध किया था और उसके लिए मुकदमा चल रहा है, तो उसे BNS के लागू होने के बावजूद IPC के प्रावधानों के अनुसार दंडित किया जा सकता है।

    4. जांच और कानूनी कार्यवाही (Investigation and Legal Proceedings) – IPC के निरसन के बावजूद, उन अपराधों की जांच (Investigation) और कानूनी कार्यवाहियाँ (Legal Proceedings) जारी रहेंगी, जो IPC के तहत दर्ज किए गए थे।

    विधिक प्रक्रिया की निरंतरता सुनिश्चित करना (Ensuring Continuity of Legal Process)

    धारा 358 की उपधारा (3) यह स्पष्ट करती है कि IPC के तहत किए गए किसी भी कार्य को, या लिए गए किसी भी निर्णय को, BNS 2023 के समान प्रावधानों के तहत लिया गया माना जाएगा। इसका अर्थ यह है कि भले ही IPC को औपचारिक रूप से निरस्त कर दिया गया हो, लेकिन उसके तहत लिए गए निर्णयों या किए गए कार्यों को इस नए कानून के अनुरूप माना जाएगा।

    यह प्रावधान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कानूनी प्रणाली (Legal System) में स्थिरता (Stability) बनाए रखने में मदद करता है। यदि ऐसा प्रावधान नहीं होता, तो IPC के तहत किए गए कई कार्य और लिए गए निर्णयों पर प्रश्नचिह्न लग सकता था, जिससे गंभीर कानूनी असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो सकती थी।

    सामान्य धाराओं का प्रभाव (Effect of General Clauses Act, 1897)

    धारा 358 की उपधारा (4) यह स्पष्ट करती है कि उपधारा (2) में उल्लिखित विशेष प्रावधानों के बावजूद, सामान्य धाराओं का प्रभाव बना रहेगा। इसका अर्थ यह है कि सामान्य खंड अधिनियम, 1897 (General Clauses Act, 1897) की धारा 6 के अनुसार, यदि कोई कानून निरस्त किया जाता है, तो उसके तहत किए गए कार्य और लंबित दायित्व स्वतः समाप्त नहीं होते।

    इसका व्यावहारिक प्रभाव यह है कि IPC को निरस्त करने के बावजूद, जो भी मामले IPC के तहत दर्ज किए गए थे या जो अधिकार IPC के तहत किसी को प्राप्त हुए थे, वे स्वतः निरस्त नहीं होंगे, बल्कि उन्हें इस नए कानून के समान प्रावधानों के तहत माना जाएगा।

    इस प्रावधान की व्यावहारिक उपयोगिता (Practical Utility of This Provision)

    धारा 358 (Section 358) का सबसे बड़ा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि IPC के निरसन से कोई कानूनी शून्यता (Legal Vacuum) उत्पन्न न हो और न्याय प्रणाली (Judicial System) में कोई बाधा न आए।

    इस प्रावधान की व्यावहारिक उपयोगिता निम्नलिखित प्रकार से समझी जा सकती है:

    1. लंबित मामलों (Pending Cases) पर प्रभाव – जो भी मामले IPC के तहत दर्ज किए गए थे और अभी न्यायालय में लंबित (Pending) हैं, वे IPC के अनुसार ही निपटाए जाएंगे। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि न्यायिक प्रक्रिया बाधित न हो।

    2. जांच प्रक्रियाओं (Investigation Procedures) पर प्रभाव – यदि IPC के तहत किसी अपराध की जांच चल रही थी, तो वह BNS लागू होने के बावजूद जारी रहेगी और IPC के प्रावधानों के तहत पूरी होगी।

    3. दंड और दायित्वों की निरंतरता (Continuity of Punishments and Liabilities) – IPC के तहत तय किए गए दंड या दायित्व BNS के लागू होने से समाप्त नहीं होंगे, बल्कि वे उसी प्रकार लागू रहेंगे।

    4. संक्रमणकालीन व्यवस्था (Transitional Arrangements) – जब भी कोई नया कानून लागू किया जाता है और पुराना कानून निरस्त किया जाता है, तो संक्रमणकालीन व्यवस्था (Transition) बेहद महत्वपूर्ण होती है। धारा 358 यह सुनिश्चित करती है कि यह संक्रमण सुचारू रूप से हो और कोई कानूनी विवाद उत्पन्न न हो।

    धारा 358 (Section 358) भारतीय न्याय संहिता 2023 का अंतिम प्रावधान है, लेकिन इसका महत्व अत्यंत अधिक है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि IPC के निरसन के बावजूद, इसके तहत किए गए कार्यों, लंबित मामलों, दंड और दायित्वों पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।

    इससे न्यायिक व्यवस्था (Judicial System) में निरंतरता (Continuity) बनी रहती है और नागरिकों के कानूनी अधिकार (Legal Rights) सुरक्षित रहते हैं।

    इस प्रावधान का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह IPC और BNS 2023 के बीच एक पुल का कार्य करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी परिवर्तन (Legal Transition) सुचारू रूप से हो। अब जबकि IPC औपचारिक रूप से निरस्त कर दिया गया है, आने वाले समय में यह देखा जाएगा कि BNS 2023 न्यायिक व्यवस्था पर किस प्रकार प्रभाव डालता है और इसमें क्या नए सुधार होते हैं।

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