नए कानून BNSS 2023 के अंतर्गत एफआईआर दर्ज करना : धारा 173
Himanshu Mishra
2 Sept 2024 5:48 PM IST
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), जिसने 1 जुलाई 2024 को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदल दिया, ने पुलिस द्वारा संज्ञेय अपराधों (Cognizable Offences) से संबंधित सूचनाओं (Information) के साथ कैसे निपटा जाए, इस पर कई बदलाव किए हैं। धारा 173 (Section 173) में इस नई कानून के अंतर्गत जानकारी देने के तरीके, पुलिस की जिम्मेदारियाँ और जांच की शक्तियाँ विस्तार से दी गई हैं। नये कानून के तहत एफआईआर दर्ज करने का काम धारा 173 के तहत किया जाता है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 173 (Section 173) एक व्यापक प्रावधान (Comprehensive Provision) है जो संज्ञेय अपराधों (Cognizable Offences) के बारे में पुलिस को जानकारी देने के तरीके, पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारियाँ, और जांच शुरू करने से पहले पुलिस द्वारा उठाए जाने वाले प्रारंभिक कदमों (Preliminary Steps) का मार्गदर्शन करता है। यह सुनिश्चित करता है कि विशेष रूप से कमजोर व्यक्तियों (Vulnerable Persons) के लिए शिकायतें समय पर और उचित तरीके से दर्ज की जाएं और उन पर कार्रवाई की जाए।
संज्ञेय अपराध से संबंधित सूचना (Information Relating to the Commission of a Cognizable Offence)
धारा 173(1) (Section 173(1)) के तहत, किसी भी क्षेत्र में हुए संज्ञेय अपराध की सूचना, चाहे वह कहीं भी हुआ हो, पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी (Officer in Charge) को मौखिक रूप से या इलेक्ट्रॉनिक संचार (Electronic Communication) के माध्यम से दी जा सकती है।
यदि सूचना मौखिक रूप से दी जाती है, तो उसे अधिकारी द्वारा लिखित में परिवर्तित किया जाएगा, और इसे जानकारी देने वाले व्यक्ति को पढ़कर सुनाया जाएगा। इसके बाद, उसे व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित (Signed) किया जाएगा। यदि सूचना इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से दी जाती है, तो अधिकारी इसे रिकॉर्ड पर लेंगे, और जानकारी देने वाले व्यक्ति द्वारा तीन दिनों के भीतर हस्ताक्षर किए जाएंगे। इसके बाद उस जानकारी का विवरण एक रजिस्टर में दर्ज किया जाएगा, जिसका प्रारूप राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति एक चोरी की घटना देखता है और पुलिस स्टेशन में जाकर इसकी जानकारी देता है, तो अधिकारी इसे लिखकर, व्यक्ति को पढ़कर सुनाएंगे और व्यक्ति इसके ऊपर हस्ताक्षर करेगा। इसी तरह, अगर कोई व्यक्ति ईमेल के माध्यम से चोरी की रिपोर्ट करता है, तो उसे तीन दिनों के भीतर पुलिस स्टेशन में आकर दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करना होगा।
महिलाओं और विकलांग व्यक्तियों के लिए विशेष प्रावधान (Special Provisions for Women and Disabled Persons)
धारा 173(1) (Section 173(1)) में उन महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान (Special Provisions) भी दिए गए हैं जो यौन अपराधों (Sexual Crimes) या भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bhartiya Nyaya Sanhita, 2023) के धारा 64 से 79 और धारा 124 (Sections 64 to 79 and Section 124) के अंतर्गत अन्य अपराधों की रिपोर्ट करती हैं। यदि सूचना देने वाली व्यक्ति महिला है, तो उसकी सूचना एक महिला पुलिस अधिकारी (Woman Police Officer) द्वारा या किसी अन्य महिला अधिकारी द्वारा दर्ज की जाएगी।
इसके अलावा, अगर सूचना देने वाला व्यक्ति अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग (Mentally or Physically Disabled) है, तो उसकी सूचना उसके घर पर या उसकी पसंद की जगह पर दर्ज की जाएगी। यह कार्य अनुवादक (Interpreter) या विशेष शिक्षक (Special Educator) की उपस्थिति में किया जाएगा, और इसे वीडियो में रिकॉर्ड (Videographed) किया जाएगा। साथ ही, पुलिस अधिकारी को सूचना देने वाले व्यक्ति का बयान जल्द से जल्द मजिस्ट्रेट (Magistrate) द्वारा दर्ज कराना होगा।
उदाहरण के लिए, यदि कोई महिला यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) की शिकार होती है और पुलिस को इसकी जानकारी देती है, तो उसका बयान एक महिला अधिकारी द्वारा लिया जाना चाहिए। यदि पीड़िता को शारीरिक रूप से विकलांगता (Physical Disability) है, तो पुलिस अधिकारी उसके घर पर जाकर बयान ले सकते हैं, जिसमें अनुवादक (Interpreter) की मदद ली जाती है और यह प्रक्रिया वीडियो में रिकॉर्ड की जाती है।
दर्ज की गई सूचना की प्रति देना (Providing a Copy of the Recorded Information)
धारा 173(2) (Section 173(2)) के तहत, पुलिस को सूचना दर्ज होने के तुरंत बाद जानकारी देने वाले व्यक्ति या पीड़ित को मुफ्त में एक प्रति (Copy) प्रदान करनी होगी। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सूचना देने वाले व्यक्ति के पास यह सबूत होता है कि उनकी रिपोर्ट पुलिस द्वारा औपचारिक रूप से दर्ज की गई है।
उदाहरण के लिए, घर में चोरी की सूचना देने के बाद, जानकारी देने वाले व्यक्ति को पुलिस स्टेशन से रिपोर्ट की एक लिखित प्रति प्राप्त होगी, जिससे यह पुष्टि होगी कि सूचना आधिकारिक रूप से दर्ज की गई है।
प्रारंभिक जाँच और अनुसंधान (Preliminary Inquiry and Investigation)
धारा 173(3) (Section 173(3)) के अनुसार, पुलिस को संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना प्राप्त होने के बाद प्रारंभिक जाँच (Preliminary Inquiry) करने या सीधे जांच (Investigation) करने की शक्तियाँ दी गई हैं।
यदि अपराध तीन वर्ष या उससे अधिक, लेकिन सात वर्ष से कम के कारावास की सजा (Imprisonment) से दंडनीय है, तो थाना प्रभारी (Officer in Charge) उप पुलिस अधीक्षक (Deputy Superintendent of Police) के समकक्ष रैंक के अधिकारी से पूर्व अनुमति लेकर निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं:
1. प्रारंभिक जाँच (Preliminary Inquiry) करें ताकि यह पता चल सके कि मामले में आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त सबूत (Sufficient Evidence) हैं या नहीं, जो चौदह दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए।
2. यदि प्रारंभिक जाँच में मामला स्पष्ट (Prima Facie Case) हो तो तुरंत जांच (Investigation) शुरू करें।
उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने बड़ी राशि की चोरी का मामला दर्ज किया है, तो पुलिस पहले प्रारंभिक जाँच (Preliminary Inquiry) कर सकती है ताकि प्रारंभिक सबूत (Initial Evidence) एकत्र किए जा सकें और फिर जांच (Investigation) करने का निर्णय लिया जा सके।
सूचना दर्ज करने से इनकार के लिए उपाय (Recourse for Refusal to Record Information)
धारा 173(4) (Section 173(4)) उन व्यक्तियों के लिए एक उपाय (Remedy) प्रदान करता है जिनकी सूचना पुलिस द्वारा दर्ज नहीं की गई है। यदि थाना प्रभारी (Officer in Charge) सूचना दर्ज करने से इनकार करता है, तो सूचना देने वाला व्यक्ति इस सूचना का विवरण लिखित रूप से और डाक द्वारा संबंधित पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) को भेज सकता है। यदि पुलिस अधीक्षक इस सूचना से सहमत हैं कि सूचना संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) के घटित होने का संकेत देती है, तो वह खुद मामले की जाँच करेंगे या अपने अधीनस्थ अधिकारी को जाँच का निर्देश देंगे। उस अधिकारी के पास उस अपराध के संबंध में थाने के प्रभारी अधिकारी के सभी अधिकार होंगे।
यदि पुलिस अधीक्षक भी कार्रवाई करने में विफल रहते हैं, तो प्रभावित व्यक्ति मजिस्ट्रेट (Magistrate) से सहायता मांग सकते हैं।
उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने एक गंभीर अपराध जैसे कि मारपीट (Assault) की रिपोर्ट दी है और थाना प्रभारी (Officer in Charge) ने शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया है, तो सूचना देने वाला व्यक्ति पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) को लिखित रूप में सूचित कर सकता है। यदि पुलिस अधीक्षक को शिकायत सही लगती है, तो वह जाँच का आदेश देंगे। यदि पुलिस अधीक्षक भी कार्रवाई करने में विफल रहते हैं, तो जानकारी देने वाला व्यक्ति मामले को मजिस्ट्रेट के पास ले जा सकता है।
पुराने कानून से तुलना (Comparison with the Old Law)
पिछली आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) में समान प्रावधान धारा 154 (Section 154) में पाया जाता था। नई धारा 173 (Section 173) ने इलेक्ट्रॉनिक संचार (Electronic Communication) के माध्यम से अपराधों की रिपोर्टिंग पर स्पष्ट दिशानिर्देश (Guidelines) प्रस्तुत किए हैं और महिलाओं और विकलांग व्यक्तियों जैसी कमजोर समूहों (Vulnerable Groups) के लिए मजबूत सुरक्षा उपाय (Robust Protections) प्रदान किए हैं।