न्यायालय में अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 355

Himanshu Mishra

4 Feb 2025 5:21 PM IST

  • न्यायालय में अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 355

    न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) के दौरान कई बार ऐसे हालात उत्पन्न होते हैं जब अभियुक्त (Accused) की व्यक्तिगत उपस्थिति (Personal Attendance) को लेकर लचीला दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होती है।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 355 इस विषय को संबोधित करती है और अभियुक्त को कुछ विशेष परिस्थितियों में न्यायालय (Court) में उपस्थित होने से छूट (Exemption) प्रदान करने की अनुमति देती है।

    यह प्रावधान पुराने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 317 के समान है लेकिन अब इसमें "ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Audio-Video Electronic Means)" के माध्यम से उपस्थिति को भी मान्यता दी गई है।

    धारा 355(1): जब अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति (Personal Attendance) अनिवार्य न हो

    न्यायाधीश (Judge) या मजिस्ट्रेट (Magistrate) किसी भी जांच (Inquiry) या मुकदमे (Trial) के दौरान निम्नलिखित परिस्थितियों में अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दे सकता है:

    1. न्याय के हित में (In the Interests of Justice)

    o यदि न्यायाधीश यह संतुष्ट हो कि न्याय दिलाने के लिए अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक नहीं है, तो वह उसकी उपस्थिति से छूट दे सकता है।

    2. न्यायालय की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करना (Disturbing the Court Proceedings)

    o यदि अभियुक्त बार-बार न्यायालय में व्यवधान (Disrupt) उत्पन्न कर रहा है, तो उसकी गैर-मौजूदगी में कार्यवाही आगे बढ़ाई जा सकती है।

    3. अभियुक्त को वकील (Advocate) द्वारा प्रतिनिधित्व (Representation) प्राप्त होना चाहिए

    o अभियुक्त की उपस्थिति तभी माफ की जा सकती है जब वह किसी अधिवक्ता (Advocate) द्वारा प्रतिनिधित्व (Represented) किया जा रहा हो।

    4. बाद के चरणों में व्यक्तिगत उपस्थिति का आदेश (Subsequent Appearance Order)

    o न्यायालय किसी भी बाद के चरण में अभियुक्त की निजी रूप से उपस्थिति का आदेश दे सकता है।

    उदाहरण (Example)

    राहुल पर धोखाधड़ी (Fraud) का मुकदमा चल रहा है, लेकिन वह विदेश में रह रहा है और न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सकता। यदि न्यायाधीश यह महसूस करता है कि राहुल की व्यक्तिगत उपस्थिति के बिना भी मुकदमा निष्पक्ष रूप से आगे बढ़ सकता है और उसके पास एक सक्षम अधिवक्ता (Competent Advocate) है, तो अदालत उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट प्रदान कर सकती है और मुकदमा आगे बढ़ाया जा सकता है।

    धारा 355(2): जब अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक हो

    यदि अभियुक्त किसी वकील द्वारा प्रतिनिधित्व नहीं किया जा रहा है, या यदि न्यायाधीश को लगता है कि उसकी उपस्थिति आवश्यक है, तो न्यायालय निम्नलिखित कार्य कर सकता है:

    1. कार्यवाही स्थगित (Adjournment of Proceedings)

    o न्यायाधीश कार्यवाही को स्थगित (Adjourn) कर सकता है ताकि अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित की जा सके।

    2. अलग मुकदमा (Separate Trial)

    o न्यायाधीश आदेश दे सकता है कि अभियुक्त का मुकदमा अन्य अभियुक्तों से अलग चलाया जाए।

    उदाहरण (Example)

    यदि सोनू पर एक गंभीर आपराधिक मामला चल रहा है लेकिन उसका कोई वकील नहीं है, तो न्यायालय उसे व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दे सकता है। यदि वह उपस्थित नहीं हो पाता, तो अदालत कार्यवाही स्थगित कर सकती है या उसका मुकदमा अन्य आरोपियों से अलग चलाने का आदेश दे सकती है।

    नया बदलाव: ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक उपस्थिति (Attendance via Audio-Video Electronic Means)

    इस धारा में एक महत्वपूर्ण नया प्रावधान जोड़ा गया है:

    1. व्यक्तिगत उपस्थिति (Personal Attendance) में "ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Audio-Video Electronic Means)" को भी शामिल किया गया है।

    इसका अर्थ यह है कि अभियुक्त वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (Video Conferencing) या अन्य डिजिटल माध्यमों से अदालत में पेश हो सकता है।

    2. यह आधुनिक न्यायिक प्रक्रिया को डिजिटल रूप से सक्षम (Digitally Enabled) बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

    उदाहरण (Example)

    अगर नीरज विदेश में है और उसे अदालत में उपस्थित होना मुश्किल है, तो अदालत उसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यवाही में शामिल होने की अनुमति दे सकती है।

    पुराने CrPC (Criminal Procedure Code) और BNSS 2023 में अंतर

    पुराना CrPC (धारा 317) नया BNSS 2023 (धारा 355)

    अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति माफ की जा सकती थी। अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति माफ की जा सकती है।

    केवल "प्लीडर (Pleader)" शब्द प्रयोग किया गया था। अब "एडवोकेट (Advocate)" शब्द प्रयोग किया गया है।

    कोई स्पष्ट डिजिटल प्रावधान नहीं था। ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम को शामिल किया गया है।

    इस प्रावधान (Provision) का महत्व (Importance of Section 355)

    1. न्यायिक कार्यवाही को सरल बनाना (Simplifying Court Proceedings)

    o यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया को अधिक लचीला (Flexible) बनाता है, जिससे गैर-जरूरी मामलों में अभियुक्त की उपस्थिति की बाध्यता समाप्त होती है।

    2. डिजिटल और तकनीकी विकास (Digital and Technological Advancement)

    o ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक उपस्थिति (Audio-Video Electronic Attendance) को मान्यता देने से दूरस्थ स्थानों से अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करना संभव हो जाता है।

    3. अनावश्यक विलंब (Unnecessary Delay) को रोकना

    o अभियुक्त की गैर-हाजिरी के कारण मामलों में अनावश्यक देरी (Delay) नहीं होगी।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 355 अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति के नियमों को अधिक व्यावहारिक और आधुनिक बनाती है। यह न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह अभियुक्त की अनुपस्थिति में भी कार्यवाही को आगे बढ़ा सके, बशर्ते अभियुक्त का प्रतिनिधित्व एक सक्षम अधिवक्ता द्वारा किया जा रहा हो।

    इसमें ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम को शामिल किया गया है, जो डिजिटल युग (Digital Age) में न्याय प्रणाली को अधिक प्रभावी और सुगम बनाता है। यह संशोधन न्यायिक कार्यवाही को तेज, निष्पक्ष और न्यायसंगत बनाने में मदद करेगा।

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