साक्ष्य अधिनियम भाग 3 : जानिए क्या होते हैं तथ्य, विवाधक तथ्य एवं सुसंगत तथ्य

Shadab Salim

26 Jan 2020 4:45 AM GMT

  • साक्ष्य अधिनियम भाग 3 : जानिए क्या होते हैं तथ्य, विवाधक तथ्य एवं सुसंगत तथ्य

    साक्ष्य अधिनियम के तहत पिछले दो आलेख में हमने देखा कि साक्ष्य में सबूत का भार किस पर होता है? इसके अलावा हमने यह भी देखा कि किस तरह एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्यों की सुसंगति क्या होती है और किस प्रकार इसमें रेस जेस्टे का सिद्धांत किस प्रकार लागू होता है।

    साक्ष्य विधि : क्या होती है एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्यों की सुसंगति, जानिए रेस जेस्टे का सिद्धांत

    साक्ष्य अधिनियम की इस सीरीज़ में हम अब समझेंगे कि तथ्य ,विवाधक तथ्य एवं सुसंगत तथ्य क्या होते हैं और साक्ष्य के संदर्भ में इन्हें कैसे देखा जाता है।

    साक्ष्य विधि का कार्य उन नियमों का प्रतिपादन करना है, जिनके द्वारा न्यायालय के समक्ष तथ्य साबित और खारिज किए जाते हैं। किसी तथ्य को साबित करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जा सकती है, उसके नियम साक्ष्य विधि द्वारा तय किये जाते हैं। साक्ष्य विधि अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण विधि है। समस्त भारत की न्याय प्रक्रिया भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की बुनियाद पर टिकी हुई है। साक्ष्य अधिनियम आपराधिक तथा सिविल दोनों प्रकार की विधियों में निर्णायक भूमिका निभाता है। इस साक्ष्य अधिनियम के माध्यम से ही यह तय किया जाता है कि सबूत को स्वीकार किया जाएगा या नहीं किया जाएगा।

    अधिनियम को बनाने का उद्देश्य साक्ष्यों के संबंध में सहिंताबद्ध विधि का निर्माण करना है, जिसके माध्यम से मूल विधि के सिद्धांतों तक पहुंचा जा सके। इस साक्ष्य अधिनियम के माध्यम से ही जो इतने सारे अधिनियम बनाए गए हैं, उनके लक्ष्य तक पहुंचा जाता है। कोई भी कार्यवाही या अभियोजन चलाया जाता है, अभियोजन पूर्ण रूप से इस अधिनियम पर ही आधारित होता है। बिना साक्ष्य अधिनियम के अभियोजन चलाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है तथा किसी भी सिविल राइट को बरकरार नहीं रखा जा सकता है। साक्ष्य अधिनियम 1872 अपने निर्माण से आज तक सबसे कम संशोधित किया गया है।

    तथ्य ,विवाधक तथ्य एवं सुसंगत तथ्य :

    साक्ष्य अधिनियम में तथ्य, विवाधक तथ्य एवं सुसंगत तथ्य जैसे शब्द बारंबार आते हैं। अधिनियम को समझने के लिए सर्वप्रथम हमें इन तीनों शब्दों को गहनता से समझना होगा। यदि ये तीनों शब्द गहनता से समझ लिए जाते हैं तो साक्ष्य अधिनियम को समझना सरल होगा। समस्त साक्ष्य अधिनियम की धाराएं इन तीन शब्दों के ईर्द गिर्द ही घूमती हैं।

    इन तीनों शब्दों को साक्ष्य अधिनियम की परिधि माना जा सकता है। समस्त साक्ष्य अधिनियम इन तीनों शब्दों के अंतर्गत ही रहता है। इस लेख के माध्यम से हम तीनों शब्दों का अर्थ समझने का प्रयास करेंगे।

    तथ्य :

    साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत तथ्य की परिभाषा दी गई है। इस परिभाषा के अंतर्गत कुछ दृष्टांत के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है। तथ्य होता क्या है, उसकी प्रकृति क्या होती है, तथा उसका अर्थ क्या है। साक्ष्य अधिनियम में तथ्य को कौन से अर्थों में लिया जाए।

    साक्ष्य अधिनियम में साक्ष्य की परिभाषा से प्रतीत होता है कि साक्ष्य तथ्यों से संबंधित है, इसलिए साक्ष्य को मामले के तथ्यों तक ही सीमित रखना पड़ता है। इस प्रयोजन हेतु तथ्य शब्द की परिभाषा आवश्यक हो गई थी जो अधिनियम में निम्नलिखित तरीके से दी गई है-

    तथ्य से अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत आती है,

    ऐसी कोई वस्तु ,वस्तुओं की अवस्था या वस्तुओं का संबंध जो इंद्रियों द्वारा बोधगम्य हो'

    'कोई मानसिक दशा जिसका भान किसी व्यक्ति को हो'

    तथ्य उसे कहा जाता है जिसे मनुष्य भौतिक और मानसिक रूप से प्रतीत कर सके, आभास कर सके उसे महसूस कर सके। विधि के अंतर्गत कार्य और लोप दोनों को तथ्य माना गया है। कार्य भी तथ्य और लोप भी तथ्य है। हम इस बात को इस उदाहरण के माध्यम से सकते हैं।

    कार्य

    जैसे विधि द्वारा किसी व्यक्ति को यह कार्य बताया गया है वह किसी व्यक्ति की हत्या नहीं करेगा। किसी भी व्यक्ति की हत्या करने के लिए तथा इस हत्या के लिए हमें शास्ति दी जाएगी, दंड दिया जाएगा। कार्य यही है, जिसे करने से निवारित किया गया है।

    लोप

    जैसे विधि के अंतर्गत हमें यह बताया गया है की हमें आयकर हमारी सालाना आय पर प्रत्येक वर्ष भरना होगा, परंतु हम आयकर नहीं भरते हैं ,तो यह लोप है तथा आपराधिक लोप है, और इस लोप के लिए हमें दंडित किया जाएगा।

    कोई भी तथ्य कार्य या लोप दोनों हो सकते हैं। तथ्य इंद्रियों को मानसिक व शारीरिक रूप से आभास होता है, तथ्य को पहचाना जा सकता है, तथ्य को महसूस किया जा सकता है, तथ्य को समझा जा सकता है, तथ्य को देखा जा सकता है, तथ्य किसी भी भांति का हो सकता है।

    दलवीर सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब एआईआर 1987 एस सी 1328 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य का मूल्यांकन एक तथ्य का प्रश्न है, जिसका विनिश्चय प्रत्येक मामले की पारिस्थितियों पर निर्भर करता है।

    विवाधक तथ्य ( Fact in issue)

    विवाधक तथ्य का अर्थ होता है जिन तथ्यों पर विवाद है। किसी वाद या कार्यवाही के पक्षकार उन तथ्यों पर सहमत नहीं है उन्हें विवाधक तथ्य कहा जाता है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत जहां निर्वाचन खंड दिया गया है, विवाधक तथ्य की परिभाषा भी दी गई है।

    "विवाधक तथ्य" से अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत आता है,

    ऐसा कोई भी तथ्य जिस अकेले ही से या अन्य तथ्यों के संसर्ग, में किसी ऐसे अधिकार, दायित्व या निर्योग्यता के, जिसका किसी वाद या कार्यवाही में प्रख्यान या प्रत्याख्यान किया गया है, अस्तित्व, अनस्तित्व, प्रकृति या विस्तार की उत्पत्ति अवश्यमेव होती हैं।

    विवाधक तथ्य का आशय विवादित तथ्य से ही है, अर्थात जिन तथ्यों पर विवाद है। किसी भी विवाद में केवल एक पक्षकार नहीं होता है। किसी विवाद में एक से अधिक ही पक्षकार होते है, तथा इस विवाद का कोई तथ्य होता है,कोई कारण होता है जिसे समझा जा सकता है देखा जा सकता है आभास किया जाता है।

    ऐसे में कुछ पक्षकार किन्ही तथ्यों पर सहमत होते हैं किन्ही तथ्यों पर असहमत होते हैं। पक्षकारों के भीतर जिन तथ्यों को लेकर विवाद होता है, उन तथ्यों को विवाधक तथ्य कहा जाता है। इन तथ्यों के माध्यम से वाद की प्रकृति को समझा जाता है। विवाधक तथ्य क्या होता है, इसे आप इस उदाहरण के माध्यम से समझ सकते हैं।

    जिसे राज्य द्वारा किसी व्यक्ति के ऊपर कोई मुकदमा चलाया जाता है, कोई अभियोजन लाया जाता है। ऐसे में आरोपी व्यक्ति पर जब आरोप तय किए जाते हैं उस समय वह उन आरोपों में से किन आरोपों को स्वीकार कर लेता है तथा किन्ही आरोपों को अस्वीकार भी कर सकता है, वह जिन आरोपों को स्वीकार करता है यह उसका अभिवचन हो जाते हैं तथा जिन आरोपों को स्वीकार नहीं करता है यह विवाधक तथ्य हो जाते हैं।

    कोई सिविल कार्यवाही चल रही है। किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति पर इस तथ्य के अंतर्गत वाद लाया गया है। कोई भूमि किसी व्यक्ति के कब्जे में है परन्तु भूमि का मालिकाना हक कोई अन्य व्यक्ति दावा कर है। ऐसी सिविल कार्यवाही लाई जाती है, जिसके पास कब्ज़ा है वह व्यक्ति इस बात का खंडन यह कहते हुए करता है कि यह भूमि मेरे पुरखों की है तथा इस पर मेरा कब्जा भी है और मालिकाना हक भी है तो इससे विधायक तथ्य निम्न होंगे-

    क्या भूमि पर कब्ज़ा रखने वाले व्यक्ति का मालिकाना हक़ है?

    क्या भूमि पर मालिकाना हक बताने वाले व्यक्ति का दावा सही है?

    विवाधक तथ्य भिन्न-भिन्न भी हो सकते हैं तथा किसी एक वाद में बहुत सारे विवाधक तथ्य हो सकते हैं। वह सभी तथ्यों को समझना अत्यंत आवश्यक होता है। कोई भी वाद या कार्यवाही इन विवाधक तथ्यों के आधार पर ही चलती है। सारे साक्ष्य इन विवाधक तथ्यों को साबित और नासाबित करने हेतु ही दिए जाते हैं, अर्थात साक्ष्यों को पेश किया जाना इन तथ्यों को साबित और नासाबित करना ही लक्ष्य होता है।

    किसी व्यक्ति ने किसी व्यक्ति की हत्या की है। हत्या का आरोप लगाया गया है। अभियोजन यह कह रहा है कि किसी व्यक्ति ने हत्या की है और आरोपी कहता है मैंने हत्या नहीं कि तो ऐसी परिस्थिति में हत्या वह आमुक व्यक्ति ने की है या नहीं की है, यह विवाधक तथ्य है।

    अभियोजन इस तथ्य को साबित करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करेगा तथा वह आरोपी व्यक्ति जिस पर अभियोजन चलाया जा रहा है, वह इस बात को नासाबित करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करेगा कि हत्या उसके द्वारा नहीं की गई है। विवाधक तथ्य यह हो सकता है कि हत्या के आरोपी व्यक्ति द्वारा हत्या की गई है या नहीं की गयी है।

    किसी तथ्य को विवाधक तथ्य तब ही माना जा सकता है जब वह यह शर्ते पूरी करता है-

    प्रथम यह कि उस तथ्य के बारे में पक्षकारों में मतभेद हो।

    दूसरा यह कि वह इतना महत्व रखता हो कि उसी पर पक्षकारों के दायित्व तथा अधिकार निर्भर करते हैं।

    जिस सीमा तक पक्षकारों के दायित्व तथा अधिकार किसी विशेष विधि के उपबंधों पर निर्भर करते हैं,उस विशेष विधि के संबंध में ही जाना जा सकता है कि विवादित तथ्य क्या है!

    उदाहरणार्थ यदि असावधानी से की गई क्षति के लिए बाद लाया गया है तो दुष्कृत्य विधि के असावधानी से संबंधित नियम और पक्षकारों की दुष्कृति के बारे में मतभेद यह तय करेंगे कि विवाधक तत्व कौन से है।

    अगर वादी का कहना है कि प्रतिवादी उसके प्रति सावधानी का कर्तव्य रखता है, प्रतिवादी या कहे कि उसका कोई ऐसा कर्तव्य नहीं था तो यह तथ्य ऐसा कर्तव्य था या नहीं विवादित तथ्य बन जाएगा।निष्कर्ष यह है कि विवादित तथ्य विवाद की विषय वस्तु से संबंध रखने वाली विधि की आवश्यकता है,तथा पक्षकारों के अभिभाषण पर निर्भर करते हैं।

    सुसंगत तथ्य

    यह इस अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण शब्द है जिसे सुसंगत तथ्य कहा जाता है। इसकी परिभाषा अधिनियम की धारा 3 में ही दी गई है।

    "एक तथ्य दूसरे तथ्य से सुसंगत कहा जाता है,जबकि तथ्यों की सुसंगती से संबंधित इस अधिनियम के उपबंधों में निर्दिष्ट प्रकारों में से किसी भी एक प्रकार से वह तथ्य उस दूसरे तथ्य से संसक्त हो"

    कौन सा तथ्य सुसंगत है यह बताने के लिए साक्ष्य अधिनियम 1872 में एक पूरा अध्याय दिया गया है, जिसके माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है कि कौन से तथ्य सुसंगत होंगे। यह अध्याय अधिनियम की धारा 5 से लेकर धारा 55 तक है। इन सभी धाराओं में कौन से तत्व सुसंगत होंगे इस पर वर्णन किया गया है।

    सुसंगत तथ्य अधिनियम का अति महत्वपूर्ण शब्द है किसी भी विधि के विद्यार्थी को सर्वप्रथम इस बात को समझना चाहिए की कौन से तथ्य सुसंगत होंगे।

    यह बहुत महत्वपूर्ण बात है, सुसंगत तथ्यों से मिलकर विवाधक तथ्य तक पहुंचा जाता है। यदि किसी वाद में या कार्यवाही में सुसंगत तथ्यों को साबित कर दिया जाता है, नासाबित कर दिया जाता है तो विवाधक तथ्य भी साबित या नासाबित हो जाते हैं। इस अधिनियम के अनुसार किसी विवाद या कार्यवाही में अनेक सुसंगत तथ्य होते हैं।

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