न्यायिक प्रक्रिया में त्रुटियों, दोषों और उनके प्रभाव: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 511 और 512

Himanshu Mishra

11 Jun 2025 12:20 PM

  • न्यायिक प्रक्रिया में त्रुटियों, दोषों और उनके प्रभाव: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 511 और 512

    किसी भी न्याय व्यवस्था का उद्देश्य केवल प्रक्रिया का पालन करना नहीं, बल्कि न्याय (Justice) को सुनिश्चित करना होता है। हालाँकि प्रक्रिया का अनुपालन न्याय की नींव है, लेकिन कभी-कभी मामूली त्रुटियाँ (Errors), चूक (Omissions) या प्रक्रिया में अनियमितताएँ (Irregularities) हो जाती हैं। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या ऐसी त्रुटियों के आधार पर किसी फैसले, सजा या आदेश को रद्द किया जा सकता है?

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में अध्याय 37 (Chapter XXXVII) “Irregular Proceedings” के अंतर्गत इस प्रकार की परिस्थितियों को स्पष्ट किया गया है। धारा 511 और धारा 512 न्यायिक प्रक्रिया में होने वाली सामान्य त्रुटियों और उनकी कानूनी मान्यता से संबंधित हैं।

    इस लेख में हम इन दोनों धाराओं को विस्तृत रूप से, सरल भाषा में, उदाहरणों सहित समझेंगे ताकि यह स्पष्ट हो सके कि न्यायिक प्रक्रिया में कहां तक त्रुटियों को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है और कहां पर उनका असर महत्वपूर्ण होता है।

    धारा 511 – जब त्रुटि, चूक या अनियमितता के कारण निर्णय या सजा को पलटा जा सकता है (Finding or Sentence When Reversible by Reason of Error, Omission or Irregularity)

    यह धारा न्यायिक प्रक्रिया में हुई त्रुटियों और उनसे होने वाले प्रभावों को लेकर एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्धांत प्रस्तुत करती है।

    (1) मुख्य प्रावधान:

    यदि कोई सक्षम न्यायालय (Court of Competent Jurisdiction) किसी निष्कर्ष (Finding), सजा (Sentence) या आदेश (Order) को पारित करता है, तो केवल इस आधार पर उसे अपीलीय (Appellate), पुनरीक्षण (Revision) या पुष्टि (Confirmation) की अदालत द्वारा रद्द या परिवर्तित (Reversed or Altered) नहीं किया जाएगा कि उसमें कोई त्रुटि, चूक या अनियमितता थी, जब तक कि उस अदालत की राय में, इससे वास्तव में न्याय में विफलता (Failure of Justice) न हुई हो।

    यह त्रुटि या अनियमितता शिकायत (Complaint), समन (Summons), वारंट (Warrant), उद्घोषणा (Proclamation), आदेश (Order), निर्णय (Judgment) या किसी अन्य प्रक्रिया से संबंधित हो सकती है, चाहे वह ट्रायल के पहले की हो, ट्रायल के दौरान की हो या किसी अन्य प्रक्रिया से जुड़ी हो।

    साथ ही, यदि अभियोजन स्वीकृति (Sanction for Prosecution) में कोई त्रुटि या अनियमितता है, तब भी केवल उसी आधार पर कोई निर्णय रद्द नहीं किया जा सकता जब तक यह न लगे कि इससे वास्तव में आरोपी को अन्याय हुआ है।

    उदाहरण (Illustration):

    मान लीजिए कि एक व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा समन द्वारा शुरू किया गया और उस समन में नाम के आगे “श्री” नहीं लिखा गया। इसके आधार पर व्यक्ति यह कहता है कि उसे सही तरीके से बुलाया ही नहीं गया, इसलिए पूरा ट्रायल अमान्य है।

    अब, यदि अदालत को लगता है कि समन की इस मामूली त्रुटि से उस व्यक्ति को कोई वास्तविक हानि नहीं हुई और वह अदालत में उपस्थित भी हुआ तथा मुकदमे का सामना किया, तो केवल उस त्रुटि के आधार पर निर्णय को रद्द नहीं किया जाएगा।

    यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि प्रक्रियात्मक दोषों के नाम पर न्याय में बाधा न डाली जाए, जब तक कि उससे किसी व्यक्ति को वास्तव में अन्याय न हुआ हो।

    (2) उपधारा (2): न्याय में विफलता का निर्धारण कैसे किया जाए (How to Determine Failure of Justice)

    इस उपधारा में यह बताया गया है कि अदालत को यह निर्णय लेते समय क्या बात ध्यान में रखनी चाहिए कि त्रुटि से न्याय में विफलता हुई या नहीं।

    यहाँ कहा गया है कि यदि किसी प्रक्रिया में त्रुटि, चूक या अनियमितता हुई है, या अभियोजन की स्वीकृति में दोष है, तो यह देखने में मुख्य बिंदु यह होगा कि –

    क्या उस दोष या त्रुटि के खिलाफ कोई आपत्ति पहले चरण में की जा सकती थी?

    यदि कोई व्यक्ति उस त्रुटि को पहले ही चरण में उठा सकता था लेकिन उसने नहीं उठाई, तो यह माना जा सकता है कि उसे उस त्रुटि से कोई असली परेशानी नहीं हुई थी।

    उदाहरण (Illustration):

    यदि आरोपी जानता है कि अभियोजन के लिए आवश्यक सरकारी स्वीकृति में कोई त्रुटि है और फिर भी ट्रायल की पूरी प्रक्रिया के दौरान वह उस बिंदु पर कोई आपत्ति नहीं करता, तो बाद में अपील में केवल उसी आधार पर फैसला रद्द नहीं किया जाएगा, जब तक कि साबित न हो कि उस त्रुटि के कारण उसे अपनी रक्षा में वास्तविक नुकसान हुआ।

    संबंधित धाराओं से तुलना (Cross-References with Other Sections):

    धारा 510 भी इसी तरह का सिद्धांत प्रस्तुत करती है, जहाँ कहा गया है कि आरोप (Charge) के न बनने या गलत बनने पर तभी कार्यवाही को दोबारा शुरू किया जा सकता है जब उससे न्याय में हानि हुई हो।

    धारा 509 में भी यही सिद्धांत है कि यदि इकबालिया बयान लेते समय कोई त्रुटि हुई हो लेकिन उससे आरोपी को कोई वास्तविक हानि न हुई हो और उसने स्वेच्छा से बयान दिया हो, तो वह स्वीकार्य होगा।

    इससे यह स्पष्ट होता है कि न्याय में असली हानि (Real Prejudice or Failure of Justice) न हो, तो प्रक्रिया की मामूली खामियाँ माफ की जा सकती हैं।

    धारा 512 – दोष या त्रुटि से कुर्की की वैधता प्रभावित नहीं होगी (Defect or Error Not to Make Attachment Unlawful)

    इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी संपत्ति की कुर्की (Attachment) यदि किसी प्रक्रिया के अंतर्गत की गई हो, तो उसमें कोई मामूली तकनीकी दोष (Technical Defect) उसकी वैधता (Legality) को प्रभावित नहीं करेगा।

    यहाँ स्पष्ट किया गया है कि यदि इस संहिता (Sanhita) के तहत किसी व्यक्ति की संपत्ति को कुर्क किया गया है।

    उसमें सम्मन (Summons), सजा (Conviction), कुर्की आदेश (Writ of Attachment) या किसी अन्य प्रक्रिया में कोई दोष या रूप की कमी (Want of Form) रह गई है, तो–

    (i) उस कुर्की को अवैध (Unlawful) नहीं माना जाएगा; और

    (ii) उस कुर्की को करने वाला व्यक्ति “अतिक्रमणकर्ता” (Trespasser) नहीं माना जाएगा।

    उदाहरण (Illustration):

    मान लीजिए कि किसी व्यक्ति की संपत्ति को अदालत के आदेश पर कुर्क किया गया, लेकिन कुर्की आदेश में तारीख ठीक से नहीं लिखी गई।

    अब, वह व्यक्ति यह कहकर कुर्की को अवैध घोषित कराने की कोशिश करता है कि आदेश में तकनीकी त्रुटि है।

    इस धारा के अनुसार, केवल ऐसी त्रुटि के आधार पर पूरी कार्रवाई अवैध नहीं मानी जाएगी, और कुर्की करने वाले पुलिस अधिकारी या कर्मचारी पर कोई अवैधता का आरोप नहीं लगेगा।

    यह प्रावधान उन हालात के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहाँ कुर्की या राजस्व वसूली के मामलों में तकनीकी आधारों पर रुकावटें पैदा की जाती हैं।

    इन धाराओं का समग्र महत्व (Combined Importance of Sections 511 and 512)

    धारा 511 और 512 दोनों ही भारतीय न्यायिक प्रक्रिया की व्यावहारिकता (Pragmatism) और वास्तविक न्याय (Substantive Justice) को दर्शाती हैं।

    इनका उद्देश्य यह है कि तकनीकी गलतियों को न तो न्याय का आधार बनने दिया जाए और न ही उनका दुरुपयोग करके ट्रायल को बाधित किया जाए या निष्पादन (Execution) को रोका जाए।

    धारा 511 जहां ट्रायल और निर्णय से जुड़ी त्रुटियों की बात करती है, वहीं धारा 512 प्रक्रिया के कार्यान्वयन से जुड़ी त्रुटियों (जैसे कुर्की) पर केंद्रित है। दोनों मिलकर यह सुनिश्चित करती हैं कि जब तक किसी व्यक्ति को वास्तविक हानि न हो, तब तक तकनीकी कमियों के आधार पर न्यायिक प्रक्रिया को रोका न जाए।

    धारा 511 और 512 भारतीय न्याय प्रणाली के उस सुसंगत दर्शन को उजागर करती हैं जिसमें प्रक्रिया की मर्यादा का पालन करते हुए न्याय का मर्म भी सुरक्षित रहता है।

    इन प्रावधानों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया है कि ना तो प्रक्रिया की अनदेखी हो और ना ही उस पर अत्यधिक ज़ोर डालते हुए न्याय को तकनीकीता में गुम कर दिया जाए।

    कानून का उद्देश्य अंतिम रूप से यही है – “न्याय होना ही नहीं, बल्कि न्याय होता हुआ दिखाई भी देना चाहिए” – और ये दोनों धाराएँ इसी लक्ष्य को व्यवहार में लाने का प्रयास करती हैं।

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