जानिए महामारी संबंधित क्या है कानून और सरकार के अधिकार
Shadab Salim
22 March 2020 11:15 AM IST
किसी भी समाज,देश के लिए महामारी एक विकराल रूप हो सकती है। इस समय विश्व भर में कोरोना वायरस जैसी एक विकराल महामारी फैल रही है,जो मनुष्य के लिए अभिशाप बन कर आयी है। विश्व भर में इस महामारी से निपटने के प्रयास किए जा रहे हैं। 20 मार्च 2020 तक यह बीमारी भारत में भी फैल चुकी है तथा यह संक्रमण भारत भर में तेजी से फेल रहा है।
भारत की सरकार इस संक्रमण से निपटने के हर संभव प्रयास कर रही है। सरकार की सहायता हेतु भारतीय विधि विधान में भी महामारी से निपटने हेतु संपूर्ण व्यवस्था है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 269 और 270 के अधीन संक्रमण को फैलाना एक दंडनीय अपराध है तथा यह संज्ञेय अपराध है। पुलिस इस अपराध पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अंतर्गत एफ आई आर दर्ज करने का अधिकार रखती है। धारा के अंतर्गत अपराधी को 2 वर्ष तक का कारावास दिया सकता है।
कोविड-19 और कनिका कपूर मामले के सन्दर्भ में आईपीसी की धारा 269 एवं 270 को समझिए
भारतीय दंड संहिता की यह धारा ही नहीं अपितु एक अधिनियम जो 123 वर्ष पुराना अधिनियम है वह भी भारतीय विधि में उपलब्ध है, जिस अधिनियम को महामारी अधिनियम 1897 कहा जाता है।
महामारी अधिनियम 1897
अधिनियम का विस्तार
यह अधिनियम संपूर्ण भारतवर्ष पर लागू होता है तथा इसके प्रावधान भारत के सभी राज्यों पर लागू होते हैं।
इस अधिनियम का उपयोग विकराल समस्या में किया जाता है। जब किसी भी राज्य सरकार को या केंद्र सरकार को इस बात का समाधान हो जाए या फिर यह विश्वास कर ले कि देश व राज्य कोई बड़े संकट में वाला है या कोई बीमारी देश या राज्य में प्रवेश कर चुक है एवं समस्त नागरिकों में संचारित हो रही है तो ऐसी स्थिति में केंद्र व राज्य दोनों इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू कर सकते हैं।
यह अधिनियम मात्र 4 धाराओं का अधिनियम है। इन 4 धाराओं में ही सरकार को संपूर्ण अधिकार दे दिए गए हैं।
महामारी अधिनियम की धारा 2 के अनुसार-
अधिनियम की धारा दो राज्य एवं केंद्र सरकार दोनों को शक्तियां प्रदान कर रही है।
अधिनियम के अंतर्गत धारा दो राज्य सरकार को यह शक्ति प्रदान कर रही है कि यदि राज्य सरकार को यह समाधान हो जाता है कि उस राज्य के भीतर जिसमें वह सरकार है कोई संक्रमित रोग फैल गया है यह फिर व संक्रमित रोग इस कदर बढ़ गया है कि वह मनुष्यों के लिए संकट बन के उभर रहा है और मानव जीवन को समाप्त करके रख देगा।
ऐसी स्थिति में राज्य सरकार प्रथम तो उन उपबंधों का सहारा लेगी जो साधारण उपबंद हैं, जिनके माध्यम से वह किसी राज्य का संचालन करती है। वह साधारण उपबंध जहां पर्याप्त नहीं हैं, वहां पर राज्य सरकार इस अधिनियम का भी उपयोग कर सकती है।
इस अधिनियम के माध्यम से राज्य सरकार समस्त राज्य में किसी भी व्यक्ति से ऐसी अपेक्षा कर सकती है या उसे सशक्त कर सकती है कि वह ऐसे उपाय करे जिससे राज्य में उस संक्रमण का संचार होना बंद हो जाए।
राज्य द्वारा जनता को बीमारी की रोकथाम के लिए अस्थाई विनियम बना देने का भी अधिकार है। ऐसे समस्त विनियम बना सकती है जो बीमारी की रोकथाम में कारगर हैं।
जैसे कि वर्तमान हालात को देखते हुए दिल्ली राज्य सरकार ने महामारी अधिनियम का इस्तेमाल किया है। COVID 19 महामारी फैलने की आशंका के मद्देनजर दिल्ली राज्य सरकार ने 31 मार्च तक सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षणिक, खेल, पारिवारिक प्रकृति के किसी भी आयोजन पर प्रतिबंध लगाने के लिए महामारी रोग अधिनियम 1897 और दिल्ली महामारी रोग विनियम लागू किया है।
केजरीवाल सरकार ने जिम, एसपीए, नाइट क्लबों, थिएटरों, साप्ताहिक बाज़ारों को 31 मार्च से बंद करने का आदेश दिया है। स्वास्थ्य और कल्याण विभाग के सचिव द्वारा जारी आदेश में यह भी निर्देश दिया गया है कि दिल्ली के एनसीटी में सभी शॉपिंग मॉल को रोजाना कीटाणुरहित किया जाना चाहिए और आगंतुकों के लिए मुख्य प्रवेश द्वार और व्यक्तिगत दुकानों पर पर्याप्त संख्या में हैंड सैनिटाइज़र रखने का प्रावधान करना चाहिए।
इसी तरह हरियाणा सरकार ने महामारी अधिनियम, 1897 के तहत एडवाइजरी जारी की है, जिसमें शहर के सभी उद्योग, MNC, IT फर्म, BPO और अन्य कॉर्पोरेट कार्यालयों को 31, 2020 मार्च तक अपने अधिकारियों / कर्मचारियों को अपने घर से काम करने की अनुमति देने के लिए कहा।
राज्य सरकार व्यय वसूल सकती है
महामारी अधिनियम की धारा 2 के ही अनुसार राज्य सरकार कोई भी व्यय वसूल सकती है, जो रोकथाम में लगते हैं। वह व्यय कौन चुकाएगा और किस रीति से चुकाए जाएंगे यह भी सरकार तय कर सकती है अर्थात राज्य सरकार बीमारी की रोकथाम में अधिक व्यय होता है तो उसकी प्रतिपूर्ति भी कर सकती है।
यात्रियों का निरीक्षण करने का अधिकार
अधिनियम की धारा 2 की उप धारा 2 के अनुसार राज्य सरकार हर तरह की यात्रा से आने वाले यात्रियों का निरीक्षण करने में जैसी चाहे वैसी प्रक्रिया विकसित कर सकती है तथा वह निरीक्षक नियुक्त कर सकती है। ऐसे निरीक्षक उन लोगों को गिरफ्तार करके ऐसे स्थान पर ले जा सकते हैं जो अस्पताल या अस्थाई केंद्र हैं, जिन लोगों पर निरीक्षक को यह संदेह होता है की वह लोग संक्रमित रोग से पीड़ित हैं।
अधिनियम की धारा 2(ए) केंद्र सरकार को शक्ति देती है कि केंद्र सरकार सभी बंदरगाह और हवाई अड्डों पर आने वाले यात्रियों का निरीक्षण कर सकती है। बीमारी की रोकथाम के लिए जैसी चाहे जैसी प्रक्रिया विहित करके व्यक्तियों को निरोध भी कर सकती है।
परंतु केंद्र सरकार इस अधिनियम के अंतर्गत अपनी शक्ति का प्रयोग उस समय ही करेगी जब तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन बीमारी की रोकथाम की जाना पर्याप्त नहीं है।
दंड
अधिनियम की धारा 3 के अनुसार इस अधिनियम के अनुसार विहित की गयी किसी भी प्रक्रिया का उल्लंघन करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के प्रावधान रखे गए हैं। इस अधिनियम के अधीन बनाए गए किसी भी आदेश की अवज्ञा करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 का मुकदमा दर्ज होगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अंतर्गत लोक सेवक द्वारा सम्यक रूप से अपेक्षित आदेश की अवज्ञा संबंधी नियम है। इस धारा के अंतर्गत 6 मास तक की अवधि का कारावास और जुर्माना भी है। इस धारा के अंतर्गत जुर्माना और कारावास दोनों से दंडित किया जा सकता है।
अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत इस अधिनियम के अंतर्गत सदभावना पूर्वक किए गए किसी भी कार्य के विरुद्ध कोई भी वाद या विधिक कार्यवाही नहीं हो सकेगी अर्थात इस अधिनियम के अंतर्गत दिए गए आदेशों को सदभावना पूर्वक पालन करवाते समय किसी भी निरीक्षक या अधिकारी के विरुद्ध कोई वाद या विधिक कार्यवाही नहीं हो सके।
महामारी अधिनियम केंद्र सरकार को सभी हवाई अड्डे और बंदरगाह तथा भारत में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिए जाने का अधिकार प्राप्त है व समस्त भारत में रेल इत्यादि को भी बंद कर देने का अधिकार रखती है।