गलत स्थान पर हुई कार्यवाही का प्रभाव : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 508 से 510
Himanshu Mishra
10 Jun 2025 5:26 PM IST

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में न्यायिक प्रक्रिया से संबंधित अनेक प्रावधान शामिल हैं, जिनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आपराधिक न्याय प्रणाली एक सुव्यवस्थित, निष्पक्ष और न्यायसंगत प्रणाली बनी रहे।
अध्याय 37 (Chapter XXXVII) “Irregular Proceedings” से संबंधित है, जिसमें बताया गया है कि किन परिस्थितियों में प्रक्रिया संबंधी त्रुटियाँ (Procedural Errors) न्यायिक निर्णय को प्रभावित करेंगी और किन परिस्थितियों में नहीं करेंगी।
धारा 508, 509 और 510 तीनों ही ऐसी परिस्थितियों से जुड़ी हुई हैं जहाँ न्यायिक प्रक्रिया में किसी न किसी प्रकार की चूक या त्रुटि हो जाती है—जैसे कि मामला गलत क्षेत्राधिकार (Wrong Jurisdiction) में चला, इकबालिया बयान (Confession) की प्रक्रिया में कोई त्रुटि हुई, या आरोप (Charge) न बनाया गया या उसमें गलती रह गई।
इस लेख में इन तीनों धाराओं को क्रमशः और सरल हिंदी में विस्तार से समझाया जाएगा। हर धारा को उदाहरणों के साथ स्पष्ट किया जाएगा, ताकि आम व्यक्ति और कानून के विद्यार्थी दोनों इसका सार्थक उपयोग कर सकें।
धारा 508 – गलत स्थान पर हुई कार्यवाही का प्रभाव (Proceedings in Wrong Place)
धारा 508 यह स्पष्ट करती है कि यदि किसी न्यायालय ने किसी मामले में कोई निष्कर्ष (Finding), सजा (Sentence) या आदेश (Order) पारित किया है, तो केवल इस आधार पर उसे रद्द (Set Aside) नहीं किया जाएगा कि वह मामला गलत क्षेत्र (Sessions Division, District, Sub-Division या अन्य स्थानीय क्षेत्र) में सुना गया था।
लेकिन, यदि यह सिद्ध हो जाए कि इस तरह की त्रुटि के कारण वास्तव में न्याय में विफलता (Failure of Justice) हुई है, तब यह आधार बन सकता है।
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए किसी अपराध के लिए सुनवाई जिला “A” में होनी चाहिए थी लेकिन गलती से मामला जिला “B” में चला गया और वहाँ पूरी सुनवाई के बाद आरोपी को सजा मिली। यदि आरोपी यह साबित नहीं कर सकता कि इससे उसे न्याय पाने में कोई वास्तविक हानि (Real Prejudice) हुई, तो केवल गलत क्षेत्राधिकार में सुनवाई हो जाने से सजा रद्द नहीं होगी।
इसका उद्देश्य यह है कि तकनीकी आधारों पर मुकदमों को रद्द करने या न्याय में देरी से बचा जा सके।
धारा 509 – धारा 183 या 316 के प्रावधानों का पालन न होने पर प्रभाव (Noncompliance with Provisions of Section 183 or Section 316)
धारा 509, आरोपी द्वारा दिए गए इकबालिया बयान (Confession) या अन्य किसी कथन (Statement) से संबंधित है, जो या तो धारा 183 या धारा 316 के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया हो। यदि ऐसे किसी बयान को सबूत के रूप में अदालत में प्रस्तुत किया गया है। यह संदेह उत्पन्न होता है कि बयान रिकॉर्ड करते समय कानून के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया, तो अदालत निम्नलिखित कदम उठा सकती है:
(1) अदालत इस गैर-अनुपालन (Noncompliance) की सच्चाई जानने के लिए स्वतंत्र रूप से साक्ष्य ले सकती है, और यदि उसे संतोष होता है कि
(i) गैर-अनुपालन के कारण आरोपी के बचाव में कोई हानि (Injury to Defence) नहीं हुई है, और
(ii) बयान वास्तव में आरोपी द्वारा अपनी इच्छा से (Voluntarily) दिया गया था,
तो वह बयान को साक्ष्य (Evidence) के रूप में स्वीकार कर सकती है।
(2) यह धारा न केवल ट्रायल कोर्ट (Trial Court), बल्कि अपीलीय (Appellate), पुनरीक्षण (Revision) और संदर्भ (Reference) की अदालतों पर भी लागू होती है।
धारा 183 और 316 का सन्दर्भ (Reference to Sections 183 and 316):
धारा 183 और 316 दोनों आरोपी द्वारा दिए गए बयान को रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया से संबंधित हैं। इसमें यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है कि बयान बिना किसी दबाव, बलपूर्वक या धोखे से न लिया गया हो, और मजिस्ट्रेट को विशेष सावधानियाँ बरतनी होती हैं।
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए कि एक आरोपी ने मजिस्ट्रेट के समक्ष अपना अपराध स्वीकार किया, लेकिन मजिस्ट्रेट ने यह नहीं पूछा कि वह बयान बिना दबाव के दे रहा है या नहीं। बाद में यह बयान साक्ष्य के रूप में कोर्ट में पेश किया गया। आरोपी यह आपत्ति उठाता है कि बयान सही प्रक्रिया से नहीं लिया गया।
अब यदि अदालत यह पाती है कि
(i) बयान स्वेच्छा से दिया गया था, और
(ii) उस त्रुटि से आरोपी को अपनी रक्षा में कोई वास्तविक नुकसान नहीं हुआ,
तो अदालत उस बयान को स्वीकार कर सकती है।
यह धारा न्यायिक व्यावहारिकता का परिचायक है, जिससे तकनीकी त्रुटियों के कारण साक्ष्य को खारिज न किया जाए जब तक उससे कोई वास्तविक अन्याय न हुआ हो।
धारा 510 – आरोप से संबंधित चूक, त्रुटि या अनुपस्थिति का प्रभाव (Effect of Omission to Frame, or Absence of, or Error in, Charge)
धारा 510 न्यायिक प्रणाली में आरोप (Charge) की प्रक्रिया से संबंधित है। कोई भी आरोपी तब तक मुकदमे का सामना नहीं करता जब तक कि उस पर स्पष्ट रूप से आरोप न लगे हों कि उसने कौन-सा अपराध किया है। लेकिन कभी-कभी कोई आरोप बनाया ही नहीं जाता या उसमें कोई गलती रह जाती है।
(1) इस उपधारा में यह कहा गया है कि यदि किसी सक्षम न्यायालय (Court of Competent Jurisdiction) ने किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया या सजा सुनाई है, तो केवल इस आधार पर उसका निर्णय रद्द नहीं किया जाएगा कि
(i) आरोप बनाया नहीं गया था, या
(ii) आरोप में कोई त्रुटि, चूक (Omission), या असंगतता (Irregularity) थी,
जब तक कि उच्चतर न्यायालय यह न माने कि इससे वास्तव में न्याय में विफलता (Failure of Justice) हुई है।
(2) यदि अपीलीय, पुनरीक्षण या पुष्टि की अदालत यह मानती है कि न्याय में विफलता हुई है, तो वह निम्नलिखित आदेश दे सकती है:
(a) यदि आरोप बनाया ही नहीं गया था, तो वह आदेश दे सकती है कि आरोप बनाया जाए और मुकदमा उस चरण से फिर शुरू किया जाए जहाँ आरोप तय किए जाने के बाद की प्रक्रिया आरंभ होती है।
(b) यदि आरोप में त्रुटि, चूक या असंगतता थी, तो अदालत नया ट्रायल (New Trial) करवाने का आदेश दे सकती है, और नया आरोप अपनी उपयुक्तता अनुसार तय कर सकती है।
परंतु: यदि अदालत यह मानती है कि प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर आरोपी के खिलाफ कोई वैध आरोप बनता ही नहीं, तो वह दोषसिद्धि (Conviction) को समाप्त कर देगी।
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए एक व्यक्ति पर चोरी (Theft) का आरोप लगाया गया और मुकदमा चलाया गया, लेकिन आरोप पत्र (Charge) में लिखा गया “डकैती” (Robbery)। पूरे ट्रायल के बाद व्यक्ति को डकैती के लिए दोषी ठहराया गया।
अब, यदि पुनरीक्षण की अदालत यह पाती है कि यह त्रुटि आरोपी को भ्रमित करने वाली थी और उसने अपनी रक्षा उचित तरीके से नहीं कर पाई, तो वह नया ट्रायल करने का आदेश दे सकती है।
लेकिन, यदि आरोपी ने स्पष्ट रूप से समझ लिया था कि उस पर किस अपराध का आरोप है और उसने ठीक से बचाव किया, तो दोषसिद्धि को केवल आरोप की तकनीकी गलती के आधार पर रद्द नहीं किया जाएगा।
इन धाराओं का महत्व (Significance of Sections 508 to 510)
धारा 508, 509 और 510 यह दिखाती हैं कि भारतीय न्यायिक प्रणाली केवल तकनीकी प्रक्रिया पर आधारित नहीं है, बल्कि उसका उद्देश्य वास्तविक न्याय (Substantive Justice) प्रदान करना है।
कभी-कभी मामूली चूक या त्रुटि को आधार बनाकर पूरा ट्रायल रद्द करने से न केवल समय और संसाधनों की बर्बादी होती है, बल्कि अपराधी छूट भी सकता है। इसी को रोकने के लिए इन धाराओं का निर्माण किया गया है।
साथ ही, यह धाराएँ यह भी सुनिश्चित करती हैं कि यदि त्रुटियों के कारण आरोपी को वास्तविक हानि हुई हो, तो उसे न्याय मिले और दोषसिद्धि या प्रक्रिया को पुनः प्रारंभ किया जाए।
धारा 508 से 510 तक के प्रावधान न्याय प्रक्रिया की उस सूक्ष्मता को दर्शाते हैं जहाँ न्यायपालिका को यह संतुलन साधना होता है कि क्या तकनीकी त्रुटि को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है या क्या उससे न्याय में वास्तविक हानि हुई है।
इन धाराओं के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया है कि केवल प्रक्रिया के नाम पर अन्याय न हो, लेकिन साथ ही प्रक्रिया की अवहेलना करके न्याय को भी कमजोर न किया जाए।
इनका व्यावहारिक उपयोग ट्रायल कोर्ट से लेकर उच्च न्यायालयों तक होता है और यह न्याय के उस दर्शन को प्रस्तुत करती हैं जिसमें न्याय का उद्देश्य केवल कानून का पालन करना नहीं, बल्कि सत्य और निष्पक्षता के आधार पर निर्णय देना होता है।