क्या PMLA के अंतर्गत Special Court में पेश होना Custody या Bail की मांग करता है?
Himanshu Mishra
23 Aug 2025 4:52 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने Tarsem Lal v. Directorate of Enforcement (2024) में एक अहम सवाल तय किया कि यदि किसी आरोपी को जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया और बाद में उसे Special Court द्वारा Section 44(1)(b) PMLA के तहत Summons (समन) भेजा गया, तो क्या उसके कोर्ट में पेश होने पर उसे Custody (हिरासत) में लेना या Bail (जमानत) लेने के लिए बाध्य करना आवश्यक है?
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि CrPC (Code of Criminal Procedure) की धाराएँ PMLA मामलों में किस तरह लागू होंगी। इस फैसले ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) और Enforcement Directorate (ED) की Powers के बीच संतुलन स्थापित किया।
PMLA में Cognizance (संज्ञान) और CrPC की भूमिका
कोर्ट ने कहा कि जब Section 44(1)(b) PMLA के तहत Complaint (शिकायत) दायर होती है, तब CrPC की धाराएँ 200 से 205 तक लागू होंगी, क्योंकि वे PMLA से असंगत (inconsistent) नहीं हैं। Section 46 PMLA खुद कहता है कि Special Court में कार्यवाही CrPC के अनुसार चलेगी, सिवाय उन प्रावधानों के जो PMLA से टकराते हों।
इसलिए जब Complaint दायर होती है, तो Special Court को यह देखना होता है कि Prima Facie (प्रथम दृष्टया) Money Laundering का अपराध बनता है या नहीं। यदि नहीं, तो Complaint को CrPC Section 203 के तहत खारिज किया जा सकता है। यदि बनता है, तो Section 204 CrPC के तहत Summons या Warrant जारी किया जा सकता है।
Summons और Warrants: कोर्ट का विवेक (Discretion of the Court)
कोर्ट ने कहा कि Summons जारी करना सामान्य नियम है, जबकि Warrant (गिरफ़्तारी वारंट) अपवाद है। Inder Mohan Goswami v. State of Uttaranchal (2007) में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि पहले Summons भेजे जाएँ, यदि आरोपी बचने की कोशिश करे तो पहले Bailable Warrant और उसके बाद ही Non-Bailable Warrant जारी हो।
इसलिए यदि किसी आरोपी को जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया और वह Summons पर कोर्ट में हाज़िर हो जाता है, तो उसे Custody में लेने का कोई औचित्य नहीं है।
कोर्ट में पेश होना: Custody या मात्र Compliance?
एक बड़ा सवाल था कि क्या Summons पर कोर्ट में पेश होने वाला आरोपी "Deemed Custody" (कानूनी रूप से हिरासत) में माना जाएगा। कोर्ट ने इसे अस्वीकार किया और कहा कि Summons केवल उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए होते हैं, न कि Custody के लिए।
CrPC की Section 205, जो व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट (Exemption) देती है, यह दिखाती है कि Summons पर पेश होना Custody नहीं हो सकता। यदि इसे Custody माना जाए, तो Section 205 का कोई महत्व ही नहीं रहेगा।
इसलिए, Summons पर कोर्ट में पेश होने वाले आरोपी को Bail लेने की बाध्यता नहीं है।
Section 88 CrPC: Bond for Appearance (उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए बांड)
कोर्ट ने Section 88 CrPC की व्याख्या की, जिसके तहत कोर्ट आरोपी से भविष्य की तारीखों पर उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए Bond (बांड) भरवाने को कह सकती है। यह Bail नहीं है।
Pankaj Jain v. Union of India (2018) और Madhu Limaye v. Ved Murti (1970) जैसे मामलों में भी यही सिद्धांत स्थापित किया गया था। Section 88 केवल एक Undertaking (प्रतिबद्धता) है कि आरोपी नियमित रूप से कोर्ट में उपस्थित होगा।
इसलिए Bond under Section 88 और Bail Bond (Section 441 CrPC) अलग-अलग चीज़ें हैं।
अनुपस्थिति की स्थिति और कोर्ट की शक्ति
यदि आरोपी Summons मिलने के बाद भी उपस्थित नहीं होता, तो CrPC की Section 70 और Section 89 के तहत Court Warrants जारी कर सकती है। पहले Bailable Warrant और बाद में आवश्यकता होने पर Non-Bailable Warrant।
फिर भी, Warrant का उद्देश्य केवल आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करना है, न कि उसे स्वतः Custody में डालना। कोर्ट अपनी विवेकाधिकार (Discretion) से Warrant रद्द भी कर सकती है, यदि आरोपी Undertaking दे कि वह आगे नियमित रूप से उपस्थित होगा। यह Bail Application नहीं मानी जाएगी, इसलिए Section 45 PMLA की कठोर शर्तें लागू नहीं होंगी।
Enforcement Directorate (ED) की Arrest Powers की सीमा
सबसे अहम निर्णय यह था कि Section 19 PMLA के तहत ED की गिरफ्तारी शक्ति Complaint दायर होने के बाद सीमित हो जाती है।
एक बार Special Court Complaint पर Cognizance ले ले, उसके बाद ED उस आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती जिसे Complaint में पहले ही नामज़द किया गया है और जिसे जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया। अब आरोपी Special Court के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में है।
यदि ED को Custodial Interrogation (हिरासत में पूछताछ) चाहिए, तो उसे Special Court से अनुमति लेनी होगी और कारण बताने होंगे। यह सिद्धांत Satender Kumar Antil v. CBI (2021, 2022) में भी स्थापित हुआ था।
Section 45 PMLA और Bail का प्रश्न
Section 45 PMLA में Bail की कठोर शर्तें हैं। परन्तु कोर्ट ने कहा कि जब आरोपी केवल Summons पर उपस्थित होता है और Bond under Section 88 देता है, तब यह Bail नहीं माना जाएगा, इसलिए Section 45 लागू नहीं होगा।
इससे Liberty (स्वतंत्रता) और Bail Regime (जमानत प्रणाली) में महत्वपूर्ण अंतर बना रहता है।
संवैधानिक संरक्षण (Constitutional Protection of Liberty)
कोर्ट ने कहा कि कुछ Special Courts आरोपी को Summons पर पेश होने के बाद भी Custody में लेती हैं और Bail लेने को मजबूर करती हैं। इसे अवैध घोषित किया गया, क्योंकि यह Article 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है।
यह फैसला स्पष्ट करता है कि जब तक जरूरी न हो, Liberty छीनी नहीं जा सकती।
Tarsem Lal v. Directorate of Enforcement ने महत्वपूर्ण सिद्धांत तय किए:
• Summons केवल उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए हैं, Custody के लिए नहीं।
• Section 88 Bond Bail नहीं है।
• Warrant भी केवल उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए हैं।
• Complaint के बाद ED आरोपी को Section 19 से गिरफ्तार नहीं कर सकती।
• Section 45 PMLA तब लागू नहीं होता जब आरोपी Summons पर स्वयं उपस्थित हो।
यह फैसला बताता है कि Liberty नियम है और Custody अपवाद। अदालत ने स्पष्ट किया कि आपराधिक प्रक्रिया हमेशा संविधान द्वारा दिए गए स्वतंत्रता के अधिकार के अनुरूप होनी चाहिए।

