क्या Chargesheet को सरकारी Websites पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जा सकता है?

Himanshu Mishra

18 April 2025 12:47 PM

  • क्या Chargesheet को सरकारी Websites पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जा सकता है?

    20 जनवरी 2023 को दिए गए एक अहम फैसले Saurav Das v. Union of India & Others में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर निर्णय दिया। याचिकाकर्ता ने संविधान के Article 32 के तहत एक याचिका दायर की थी, जिसमें मांग की गई थी कि Cr.P.C. (Code of Criminal Procedure) की धारा 173 के तहत दायर की गई सभी Chargesheet और Final Reports को सरकारी Websites पर जनता के लिए उपलब्ध कराया जाए।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि Chargesheet और उससे जुड़ी दस्तावेज Indian Evidence Act, 1872 के अनुसार Public Documents (सार्वजनिक दस्तावेज) नहीं माने जा सकते। इन्हें सार्वजनिक करना Cr.P.C. की Scheme (विधान) के विरुद्ध होगा और इससे Accused (आरोपी), Victim (पीड़ित) तथा Investigating Agency (जांच एजेंसी) के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

    Cr.P.C. की कानूनी व्यवस्था और सूचना प्रदान करने का दायित्व (Cr.P.C. Framework and Disclosure Obligations)

    Cr.P.C. की Sections 173 और 207 यह स्पष्ट करती हैं कि Chargesheet और संबंधित दस्तावेज केवल Accused (आरोपी) को प्रदान किए जाने चाहिए। Section 207 के अनुसार Magistrate का यह कर्तव्य है कि वह Accused को Police Report, गवाहों के बयान और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों की कॉपी प्रदान करे ताकि Accused अपना बचाव ठीक से कर सके।

    Section 173(4) कहता है कि Investigating Officer को Accused को Free of Cost (बिना शुल्क) Chargesheet और उससे जुड़े अन्य दस्तावेज़ देने होंगे। Section 173(5) के अनुसार, Prosecution (अभियोजन) को जिन दस्तावेजों पर भरोसा है, उन्हें Magistrate के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक है।

    इससे यह साफ होता है कि यह प्रक्रिया केवल Accused की सहायता के लिए है, न कि आम जनता के लिए। यदि इन्हें Public Domain में डाल दिया जाए, तो इससे Criminal Justice System (दंड प्रक्रिया तंत्र) की निष्पक्षता पर असर पड़ सकता है।

    FIR और Chargesheet में अंतर (Distinction Between FIR and Chargesheet)

    याचिकाकर्ता ने 2016 के Supreme Court के फैसले Youth Bar Association of India v. Union of India (2016) 9 SCC 473 पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि FIRs को उनकी Registration के 24 घंटे के अंदर Police या State Government की Website पर डालना अनिवार्य होगा। इसका उद्देश्य था कि निर्दोष व्यक्ति परेशान न हों और वे जल्दी से Court की मदद ले सकें।

    लेकिन Supreme Court ने स्पष्ट किया कि FIR और Chargesheet की प्रकृति बिल्कुल अलग होती है। FIR सिर्फ प्राथमिक सूचना होती है जिसमें आरोप लगाए जाते हैं, जबकि Chargesheet एक पूरी जांच के बाद तैयार होती है जिसमें साक्ष्य (Evidence), गवाहों के बयान और अन्य संवेदनशील जानकारी होती है। इसलिए FIR को Website पर डालना और Chargesheet को डालना समान नहीं माना जा सकता।

    Evidence Act और Chargesheet का कानूनी दर्जा (Evidence Act and Legal Status of Chargesheet)

    याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि Chargesheet को Section 74 और 76 के तहत Public Document माना जाना चाहिए क्योंकि यह Court में दायर होती है। लेकिन Supreme Court ने इस दलील को खारिज कर दिया।

    Section 74 में केवल कुछ निश्चित दस्तावेजों को ही Public Document माना गया है, जैसे सरकारी आदेश, संसद/विधानमंडल के रिकॉर्ड या न्यायालय के निर्णय। Section 75 कहता है कि जो दस्तावेज Section 74 में नहीं आते, वे Private Documents (निजी दस्तावेज) होते हैं। इसलिए Chargesheet और उससे जुड़े दस्तावेज Public Documents की श्रेणी में नहीं आते जब तक कि Court विशेष रूप से ऐसा निर्देश न दे।

    RTI Act और सार्वजनिक जानकारी का अधिकार (RTI Act and Right to Information)

    याचिकाकर्ता ने RTI Act, 2005 की Section 4 पर भी भरोसा किया, जिसमें कहा गया है कि Public Authorities (लोक प्राधिकरण) को कुछ सूचनाएं नियमित रूप से जनता को उपलब्ध करानी चाहिए। Section 4(1)(b) में कुछ विशेष श्रेणियों की जानकारी दी गई है जैसे सरकारी विभागों की संरचना, कार्य, नियम आदि।

    Supreme Court ने कहा कि Chargesheet और उससे जुड़े दस्तावेज इन श्रेणियों में नहीं आते। Section 4(2) में कहा गया है कि जितनी जानकारी संभव हो उतनी Public को दी जानी चाहिए, लेकिन यह अन्य कानूनों और गोपनीयता (Confidentiality) की सीमाओं के भीतर होनी चाहिए। इसीलिए RTI Act के तहत Chargesheet को स्वतः (Suo Moto) सार्वजनिक करने की मांग भी कानूनन गलत है।

    पारदर्शिता और कानूनी अधिकारों के बीच संतुलन (Balancing Transparency and Legal Rights)

    Supreme Court ने माना कि लोकतंत्र में पारदर्शिता (Transparency) जरूरी है, लेकिन यह पारदर्शिता आरोपी और पीड़ित के अधिकारों की कीमत पर नहीं हो सकती। Accused को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है और Victim को निजता (Privacy) और सुरक्षा का अधिकार है। यदि Chargesheet को सार्वजनिक किया जाए तो इससे गवाहों की सुरक्षा, जांच की गोपनीयता और Media Trial जैसी स्थितियों का खतरा बढ़ सकता है।

    इसलिए Court ने कहा कि जांच के दस्तावेज़ और Chargesheet केवल संबंधित पक्षों को ही उपलब्ध कराए जाने चाहिए। यदि कोई नागरिक जानकारी चाहता है तो वह RTI के माध्यम से या कोर्ट की अनुमति लेकर इसे प्राप्त कर सकता है, लेकिन उसे स्वतः Website पर डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    Saurav Das v. Union of India में Supreme Court ने यह स्पष्ट किया कि पारदर्शिता महत्वपूर्ण है लेकिन उसे न्याय की मूलभूत प्रक्रिया के विरुद्ध नहीं जाना चाहिए। Court ने यह मांग अस्वीकार की कि Chargesheet और उससे जुड़े दस्तावेज सरकारी Websites पर जनता के लिए उपलब्ध कराए जाएं। Court ने कहा कि ऐसा करना Cr.P.C. की Scheme के खिलाफ होगा, Evidence Act की गलत व्याख्या होगी और इससे Accused, Victim और Investigating Agency के अधिकारों का उल्लंघन होगा।

    यह फैसला यह दर्शाता है कि कौन सी जानकारी सार्वजनिक की जा सकती है और कौन सी नहीं। यह संविधान और न्याय प्रणाली के मूल सिद्धांतों – निष्पक्ष सुनवाई, गोपनीयता, और न्याय की गरिमा – की रक्षा करता है।

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