क्या पूरी तरह से टूट चुके विवाह को हिंदू विवाह कानून के तहत क्रूरता माना जा सकता है?
Himanshu Mishra
8 May 2025 10:24 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने राकेश रमन बनाम कविता (Rakesh Raman v. Kavita) के निर्णय में एक महत्वपूर्ण सवाल का उत्तर दिया — क्या ऐसा विवाह जो पूरी तरह से टूट चुका हो और जिसमें पुनर्मिलन की कोई संभावना न बची हो, उसे 'क्रूरता' (Cruelty) के रूप में देखा जा सकता है, भले ही 'Irretrievable Breakdown of Marriage' (अवापसी योग्य विवाह विच्छेद) हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में एक स्वतंत्र आधार नहीं है?
कोर्ट ने कहा कि जब कोई विवाह केवल नाम मात्र का रह जाए और उसका जारी रहना दोनों पक्षों के लिए मानसिक पीड़ा का कारण बने, तो उसे क्रूरता माना जा सकता है।
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) की व्याख्या (Understanding Section 13(1)(ia) of the Hindu Marriage Act)
धारा 13(1)(ia) के अनुसार यदि कोई पक्ष दूसरे के द्वारा क्रूरता का शिकार हुआ हो, तो वह विवाह विच्छेद (Divorce) की मांग कर सकता है। हालांकि 'क्रूरता' (Cruelty) की कोई स्पष्ट परिभाषा अधिनियम में नहीं दी गई है, लेकिन समय-समय पर अदालतों ने इसे विभिन्न परिस्थितियों के आधार पर व्याख्यायित किया है।
अब यह माना जाता है कि क्रूरता केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक (Mental) भी हो सकती है, और इसे एक घटना के बजाय सम्पूर्ण वैवाहिक संबंध (Matrimonial Relationship) की दृष्टि से देखा जाना चाहिए।
मानसिक क्रूरता की सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्याख्या (Mental Cruelty and Its Interpretation by the Supreme Court)
सुप्रीम कोर्ट ने अपने प्रसिद्ध निर्णय समर घोष बनाम जया घोष (Samar Ghosh v. Jaya Ghosh) में मानसिक क्रूरता के विभिन्न पहलुओं को समझाया था। जैसे यदि पति-पत्नी लंबे समय से अलग रह रहे हों, साथ रहने से साफ इनकार हो, बार-बार झूठे केस चलाए गए हों या ऐसा माहौल हो जहाँ वैवाहिक जीवन असहनीय हो गया हो — तो यह मानसिक क्रूरता मानी जा सकती है।
राकेश रमन केस में कोर्ट ने माना कि जब पति-पत्नी पिछले 25 वर्षों से अलग हैं और उनके बीच कोई संपर्क नहीं है, तब विवाह का जारी रहना अपने आप में क्रूरता है। इसीलिए, भले ही 'Irretrievable Breakdown' कानून में नहीं लिखा हो, फिर भी उसे क्रूरता के रूप में देखा जा सकता है।
Irretrievable Breakdown और क्रूरता का संबंध (Connection Between Irretrievable Breakdown and Cruelty)
'Irretrievable Breakdown of Marriage' का मतलब है — ऐसा वैवाहिक संबंध जो पूरी तरह से खत्म हो गया है और जिसमें सुधार की कोई संभावना नहीं है। हालांकि यह हिंदू विवाह अधिनियम में स्वतंत्र आधार के रूप में नहीं जोड़ा गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में इसे Article 142 के तहत अपनाया है।
इस केस में कोर्ट ने कहा कि यदि विवाह सामाजिक और भावनात्मक रूप से समाप्त हो गया है, और केवल कानूनी रूप से जीवित है, तो वह दोनों पक्षों के लिए क्रूरता बन जाता है। लगातार अलगाव, शारीरिक संबंध का अभाव और मुकदमेबाज़ी मिलकर मानसिक पीड़ा पैदा करते हैं, जो कि Cruelty के अंतर्गत आता है।
महत्वपूर्ण पूर्व निर्णयों का उल्लेख (Important Precedents Cited by the Court)
कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण मामलों का हवाला दिया जैसे नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली (Naveen Kohli v. Neelu Kohli) और के. श्रीनिवास राव बनाम डी. ए. दीपा (K. Srinivas Rao v. D.A. Deepa), जहाँ बार-बार झूठे मुकदमे दायर करना और वर्षों तक खिंचता हुआ विवाद मानसिक क्रूरता माना गया।
इसके अलावा कोर्ट ने आर. श्रीनिवास कुमार बनाम आर. शमिता, मुनीश कक्कड़ बनाम निधि कक्कड़ और नेहा त्यागी बनाम लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक त्यागी जैसे मामलों का भी उल्लेख किया, जहाँ कोर्ट ने Article 142 के तहत विवाह को समाप्त किया, क्योंकि वह पूरी तरह से टूट चुका था।
कानून आयोग की सिफारिशें (Role of Law Commission Reports)
कोर्ट ने 71वीं और 217वीं Law Commission Reports का भी उल्लेख किया, जिनमें यह सिफारिश की गई थी कि 'Irretrievable Breakdown of Marriage' को कानून में तलाक का स्वतंत्र आधार बनाया जाए। भले ही संसद ने अब तक यह संशोधन न किया हो, कोर्ट ने माना कि सामाजिक यथार्थ के सामने कानून को भी बदलना चाहिए।
लॉ कमीशन का मानना था कि जब कोई विवाह पूरी तरह खत्म हो चुका हो, तो दोनों पक्षों को उसमें बनाए रखना अनावश्यक पीड़ा देना है। सुप्रीम कोर्ट ने इस भावना को स्वीकार किया और कहा कि न्याय का अर्थ यह है कि कानून केवल शब्दों का नहीं, मानवीय संवेदनाओं का भी ध्यान रखे।
क्रूरता का व्यापक दृष्टिकोण (Holistic View of Cruelty)
कोर्ट ने कहा कि क्रूरता केवल हिंसा नहीं होती। भावनात्मक दूरी, तिरस्कार, अपमान और उपेक्षा भी मानसिक क्रूरता होती है। यदि कोई पति या पत्नी खुद को उस रिश्ते में असुरक्षित, तनावग्रस्त और अकेला महसूस करता है, तो वह भी Cruelty मानी जाएगी।
कोर्ट ने Halsbury's Laws of England का हवाला दिया जिसमें यह कहा गया था कि Cruelty का मूल्यांकन पूरे वैवाहिक संबंध की पृष्ठभूमि में किया जाना चाहिए — किसी एक घटना से नहीं, बल्कि संबंध के प्रभाव से।
वैवाहिक मामलों में न्यायालय की जिम्मेदारी (Judicial Responsibility in Matrimonial Cases)
सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि वैवाहिक विवाद अन्य सामान्य नागरिक मामलों से अलग होते हैं, क्योंकि वे भावनाओं, विश्वास और निजी संबंधों से जुड़े होते हैं। इसलिए कोर्ट को तथ्यों का सूक्ष्म विश्लेषण करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि विवाह अब भी वास्तविक रूप से जीवित है या नहीं।
राकेश रमन केस में कोर्ट ने माना कि ऐसा विवाह जो केवल कागज़ पर बचा है, और जिसमें कोई सामाजिक या मानसिक जुड़ाव नहीं है, उसे जारी रखना अन्यायपूर्ण है। यह न केवल पति या पत्नी के लिए पीड़ा है, बल्कि कानून की आत्मा के विरुद्ध भी है।
संवैधानिक मूल्य और सामाजिक न्याय (Constitutional Values and Social Justice)
भले ही Hindu Marriage Act में 'Irretrievable Breakdown' का उल्लेख नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के Article 142 के तहत क्रूरता की परिभाषा को इतना विस्तृत किया कि वह ऐसे मामलों को भी शामिल कर सके जहाँ विवाह पूरी तरह समाप्त हो चुका है।
इस निर्णय से यह संदेश मिला कि कानून में जो लिखा गया है, वह अंतिम नहीं है। अगर किसी स्थिति में न्याय की मांग है, तो अदालतें उस दिशा में कदम उठा सकती हैं, ताकि मानवता और न्याय को प्राथमिकता दी जा सके।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय राकेश रमन बनाम कविता यह बताता है कि विवाह को तबरदस्ती बनाए रखना, जब वह पूरी तरह खत्म हो चुका हो, मानसिक क्रूरता है। जब पति-पत्नी के बीच भावनात्मक, शारीरिक और सामाजिक जुड़ाव पूरी तरह समाप्त हो गया हो, तो उस विवाह को जारी रखना केवल मानसिक यातना है।
यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि अब समय आ गया है कि संसद 'Irretrievable Breakdown' को एक स्वतंत्र आधार के रूप में माने, ताकि ऐसे विवाहित लोगों को न्याय, शांति और नई शुरुआत का अवसर मिल सके।