क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला CrPC की धारा 125 के तहत Maintenance माँग सकती है, भले ही 1986 Act मौजूद हो?

Himanshu Mishra

29 Aug 2025 4:58 PM IST

  • क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला CrPC की धारा 125 के तहत Maintenance माँग सकती है, भले ही 1986 Act मौजूद हो?

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मोहम्मद अब्दुल समद बनाम स्टेट ऑफ तेलंगाना (2024) मामले में यह अहम सवाल तय किया कि क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला, Criminal Procedure Code, 1973 (CrPC) की धारा 125 के तहत Maintenance (भरण-पोषण) का दावा कर सकती है, जबकि Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986 (1986 Act) पहले से मौजूद है।

    यह मामला दो कानूनों के बीच सामंजस्य (Harmony) को लेकर था—एक ओर सेक्युलर (Secular) प्रावधान CrPC की धारा 125 और दूसरी ओर व्यक्तिगत (Personal) कानून के दायरे वाला 1986 Act। कोर्ट को तय करना था कि क्या 1986 Act, CrPC की धारा 125 को पूरी तरह हटा देता है या दोनों साथ-साथ लागू रह सकते हैं।

    CrPC की धारा 125: एक सेक्युलर (Secular) उपाय

    धारा 125 CrPC का उद्देश्य यह है कि कोई व्यक्ति, जिसके पास पर्याप्त साधन हों, अपने आश्रितों (Dependents) को बेसहारा न छोड़े। इसमें पत्नी (जिसमें तलाकशुदा पत्नी भी शामिल है), बच्चे और माता-पिता आते हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि यह प्रावधान दंडात्मक (Punitive) नहीं बल्कि निवारक (Preventive) है, ताकि कोई महिला या बच्चा भूखों न मरे। Shri Bhagwan Dutt v. Kamla Devi (1975) और Fuzlunbi v. K. Khader Vali (1980) में कोर्ट ने माना कि यह प्रावधान व्यक्तिगत कानूनों से स्वतंत्र है और सब पर समान रूप से लागू होता है।

    1986 Act और उसके प्रावधान

    1986 Act संसद ने Shah Bano Case (1985) के बाद बनाया। शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी CrPC की धारा 125 के तहत Maintenance मांग सकती है। इस फैसले पर विवाद हुआ और संसद ने मुस्लिम महिलाओं के लिए अलग कानून बना दिया।

    1986 Act की धारा 3 कहती है कि तलाकशुदा महिला को "Reasonable and Fair Provision and Maintenance" (उचित और न्यायपूर्ण प्रावधान और भरण-पोषण) मिलेगा, लेकिन यह सब iddat period के भीतर देना होगा। बाद में Danial Latifi v. Union of India (2001) में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इसका मतलब सिर्फ iddat तक Maintenance देना नहीं है, बल्कि पति को उस अवधि में महिला के भविष्य का भी इंतज़ाम करना होगा।

    न्यायिक विकास (Judicial Evolution)

    Shah Bano (1985) में कोर्ट ने साफ कहा कि CrPC की धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होती है और व्यक्तिगत कानून इसे सीमित नहीं कर सकते।

    Danial Latifi (2001) में संविधान पीठ (Constitution Bench) ने 1986 Act को बरकरार तो रखा, लेकिन इसकी ऐसी व्याख्या (Interpretation) की कि महिलाओं को iddat के बाद भी Maintenance मिले।

    बाद के फैसलों जैसे Shabana Bano v. Imran Khan (2010), Khatoon Nisa v. State of U.P. (2014) और Shamim Bano v. Asraf Khan (2014) में भी यही सिद्धांत दोहराया गया। Shamima Farooqui v. Shahid Khan (2015) में कोर्ट ने Family Courts के अधिकार (Jurisdiction) को मानते हुए कहा कि मुस्लिम महिलाएँ CrPC की धारा 125 में याचिका दायर कर सकती हैं।

    सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य प्रश्न

    मोहम्मद अब्दुल समद मामले में मुद्दा यह था कि क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला की CrPC धारा 125 की याचिका Maintainable (स्वीकार्य) है, या उसे सिर्फ 1986 Act का सहारा लेना होगा।

    पति का तर्क था कि 1986 Act एक विशेष (Special) कानून है और इसलिए वही लागू होगा। लेकिन कोर्ट और Amicus Curiae ने कहा कि CrPC की धारा 125 एक सेक्युलर और संवैधानिक (Constitutional) सुरक्षा है जिसे खत्म नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट की तर्कशक्ति (Reasoning)

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला CrPC की धारा 125 के तहत Maintenance मांग सकती है। इसके पीछे कोर्ट ने कई आधार दिए—

    1. दोनों उपाय साथ-साथ चल सकते हैं (Coexistence of Remedies): 1986 Act और CrPC अलग-अलग क्षेत्र (Domain) में लागू होते हैं। एक तलाक के बाद अधिकार तय करता है, दूसरा आर्थिक अक्षमता (Inability to maintain herself) पर केंद्रित है।

    2. Iddat की व्याख्या (Interpretation of Iddat): Danial Latifi के फैसले को मानते हुए कोर्ट ने कहा कि पति को iddat के भीतर इंतज़ाम करना है, लेकिन महिला की ज़रूरतें उससे आगे तक भी चलेंगी।

    3. दोहरा लाभ रोकना (Avoiding Double Payments): CrPC की धारा 127(3)(b) यह सुनिश्चित करती है कि अगर महिला को पहले ही पर्याप्त Maintenance मिल चुका है तो वही ध्यान में रखा जाएगा।

    4. संवैधानिक समानता (Constitutional Mandate): मुस्लिम महिलाओं को CrPC से बाहर करना Article 14 (समानता) और Article 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव निषिद्ध) का उल्लंघन होगा।

    5. नज़ीरों का पालन (Stare Decisis): पहले दिए गए संविधान पीठ के फैसले बाध्यकारी (Binding) हैं और उनका पालन करना ज़रूरी है।

    कोर्ट का अंतिम निर्णय (Final Holding)

    कोर्ट ने साफ कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला CrPC की धारा 125 के तहत Maintenance मांग सकती है। 1986 Act इसे खत्म नहीं करता, बल्कि दोनों कानून साथ-साथ चलते हैं।

    हालांकि, कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि अगर महिला को पहले ही पर्याप्त व्यवस्था (Provision) मिल चुकी है तो Maintenance की रकम घटाई जा सकती है ताकि दोहरा लाभ न मिले।

    व्यापक असर (Broader Implications)

    यह फैसला बहुत दूरगामी है। इससे यह सिद्ध हुआ कि मुस्लिम महिलाओं को भी वही अधिकार मिलते हैं जो अन्य महिलाओं को मिलते हैं। यह Article 21 (Right to live with dignity) को भी मज़बूती देता है।

    कोर्ट ने साफ किया कि महिलाओं को बेसहारा छोड़ना न तो समाज की भलाई (Social Justice) है और न ही संविधान के अनुरूप।

    Mohd. Abdul Samad v. State of Telangana (2024) का फैसला एक बार फिर इस सिद्धांत को पुष्ट करता है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को CrPC की धारा 125 के तहत Maintenance का अधिकार है।

    1986 Act और CrPC दोनों को साथ पढ़कर कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि समानता (Equality), गरिमा (Dignity) और न्याय (Justice) से समझौता न हो।

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