मानसिक रूप से अस्वस्थ आरोपी की जमानत और न्यायिक प्रक्रिया : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 369
Himanshu Mishra
22 Feb 2025 11:49 AM

भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) यह सुनिश्चित करती है कि हर व्यक्ति को न्याय मिले, चाहे वह मानसिक रूप से स्वस्थ हो या नहीं। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 - BNSS) में उन मामलों के लिए विशेष प्रावधान (Provision) हैं जहाँ आरोपी (Accused) मानसिक रूप से अस्वस्थ (Unsound Mind) हो या बौद्धिक अक्षमता (Intellectual Disability) से ग्रस्त हो।
धारा 367 और 368 (Section 367 and 368) में यह निर्धारित करने की प्रक्रिया दी गई है कि क्या कोई व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ है और मुकदमे (Trial) का सामना करने में सक्षम नहीं है। धारा 369 (Section 369) इन प्रावधानों को आगे बढ़ाते हुए यह तय करती है कि ऐसे व्यक्तियों को ज़मानत (Bail) दी जाए, उपचार (Treatment) के लिए भेजा जाए या मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (Mental Health Institution) में रखा जाए।
जब आरोपी मानसिक रूप से अस्वस्थ हो तो ज़मानत और रिहाई (Bail and Release of the Accused)
अगर किसी व्यक्ति को धारा 367 या 368 के तहत मानसिक रूप से अस्वस्थ पाया जाता है और वह अपना बचाव (Defense) नहीं कर सकता, तो कोर्ट (Court) यह तय करेगा कि उसे ज़मानत दी जा सकती है या नहीं।
धारा 369(1) के अनुसार, कोर्ट यह तय करेगा कि क्या आरोपी को ज़मानत (Bail) दी जा सकती है, चाहे अपराध ज़मानती (Bailable) हो या गैर-ज़मानती (Non-Bailable)। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जिन व्यक्तियों को अस्पताल में भर्ती (In-Patient) करने की आवश्यकता नहीं है, उन्हें अनावश्यक रूप से हिरासत (Custody) में न रखा जाए।
लेकिन इस रिहाई (Release) के लिए कुछ शर्तें होती हैं—
1. कोई दोस्त या रिश्तेदार यह जिम्मेदारी ले कि आरोपी को नज़दीकी मेडिकल सुविधा (Nearest Medical Facility) से नियमित रूप से मनोचिकित्सीय उपचार (Psychiatric Treatment) मिलेगा।
2. यह सुनिश्चित किया जाए कि आरोपी खुद को या किसी और को नुकसान नहीं पहुँचाएगा।
उदाहरण: मान लीजिए कि एक व्यक्ति पर अवैध रूप से किसी के घर में घुसने (Trespassing) का आरोप है, लेकिन जाँच के दौरान वह स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) से पीड़ित पाया जाता है। यदि उसका कोई रिश्तेदार यह जिम्मेदारी लेता है कि वह उसका नियमित इलाज कराएगा और वह किसी को नुकसान नहीं पहुँचाएगा, तो कोर्ट उसे ज़मानत पर रिहा कर सकता है।
जब ज़मानत नहीं दी जा सकती (When Bail Cannot Be Granted)
धारा 369(2) में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जहाँ आरोपी को ज़मानत देना उचित नहीं होगा। यदि—
1. कोर्ट यह मानता है कि आरोपी को ज़मानत देना सही नहीं होगा।
2. कोई दोस्त या रिश्तेदार आरोपी की देखभाल की जिम्मेदारी नहीं लेता।
तो ऐसे मामलों में आरोपी को एक ऐसे स्थान पर भेजा जाएगा जहाँ उसे नियमित रूप से मानसिक उपचार मिल सके। इस कार्रवाई की रिपोर्ट राज्य सरकार (State Government) को भी दी जाएगी।
इसके अलावा, यह सुनिश्चित किया गया है कि आरोपी को सार्वजनिक मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (Public Mental Health Institution) में तभी भेजा जाए जब मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 (Mental Healthcare Act, 2017) के तहत बने नियमों का पालन किया जाए।
उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति पर हत्या के प्रयास (Attempt to Murder) का आरोप है और वह बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) से ग्रस्त पाया जाता है, लेकिन उसका कोई भी रिश्तेदार उसकी देखभाल की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता, तो कोर्ट उसे किसी मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में भेज सकता है।
अपराध की गंभीरता और मानसिक स्थिति का विश्लेषण (Analyzing the Nature of Offense and Mental Condition)
धारा 369(3) के अनुसार, आरोपी की रिहाई (Release) या संस्थागत देखभाल (Institutional Care) का निर्णय लेने से पहले कोर्ट को दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार करना होगा—
1. अपराध की प्रकृति (Nature of the Offense): यदि अपराध मामूली (Minor) है, तो कोर्ट आरोपी को सही देखभाल के साथ रिहा कर सकता है। लेकिन यदि अपराध गंभीर (Serious) है, तो उसकी रिहाई जोखिम भरी हो सकती है।
2. आरोपी की मानसिक स्थिति (Mental Condition of the Accused): अगर मानसिक स्थिति बहुत गंभीर है और आरोपी को खुद की स्थिति का कोई अंदाज़ा नहीं है, तो उसे विशेष देखभाल (Special Care) की ज़रूरत होगी।
उदाहरण:
• यदि एक व्यक्ति दुकान से चोरी (Shoplifting) करने के आरोप में पकड़ा जाता है और उसे हल्की मानसिक समस्या (Mild Intellectual Disability) है, तो उसे सही देखभाल के साथ रिहा किया जा सकता है।
• लेकिन यदि कोई व्यक्ति हिंसक हमले (Violent Assault) का आरोपी है और गंभीर मानसिक रोग से ग्रस्त है, तो उसकी रिहाई खतरनाक हो सकती है और उसे मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में रखना उचित होगा।
आरोपी की रिहाई और अन्य व्यवस्थाएँ (Discharge and Alternative Arrangements)
धारा 369 के तहत दो संभावित परिणाम हो सकते हैं—
1. यदि मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार आरोपी को रिहा किया जा सकता है:
o अगर विशेषज्ञों की राय (Medical Opinion) में आरोपी को मानसिक रूप से इतना सक्षम माना जाता है कि वह समाज में रह सकता है, तो उसे रिहा किया जा सकता है।
o लेकिन उसे पर्याप्त सुरक्षा (Sufficient Security) दी जानी चाहिए ताकि वह खुद को या किसी और को नुकसान न पहुँचाए।
उदाहरण: अगर कोई व्यक्ति अवसाद (Depression) से ग्रस्त है और एक गैर-हिंसक अपराध में संलिप्त है, और विशेषज्ञों की राय है कि वह दवाइयों और काउंसलिंग (Counseling) के साथ सामान्य जीवन जी सकता है, तो कोर्ट उसे रिहा कर सकता है।
2. यदि आरोपी की रिहाई संभव नहीं है:
o यदि आरोपी को रिहा करना उचित नहीं है, तो उसे ऐसे संस्थान (Residential Facility) में भेजा जाएगा जहाँ उसे देखभाल, शिक्षा और प्रशिक्षण (Care, Education, and Training) मिल सके।
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति गंभीर मानसिक विकार (Severe Mental Disorder) से ग्रस्त है और उसे अपने कार्यों का कोई ज्ञान नहीं है, तो कोर्ट उसे जेल में रखने की बजाय किसी विशेष देखभाल केंद्र (Specialized Care Center) में भेजेगा।
कानूनी दुरुपयोग से सुरक्षा (Safeguards Against Misuse of Law)
कई बार आरोपी झूठा मानसिक बीमारी का दावा कर सकते हैं ताकि वे सज़ा से बच सकें। लेकिन धारा 369 यह सुनिश्चित करती है कि—
1. किसी भी निर्णय से पहले विशेषज्ञों की जाँच (Expert Evaluation) करवाई जाए।
2. आरोपी की मानसिक स्थिति की सुनिश्चित जाँच (Proper Examination) की जाए।
3. यदि कोई आरोपी डॉक्टर की रिपोर्ट से असहमत है, तो वह मेडिकल बोर्ड (Medical Board) के सामने अपील कर सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
धारा 369 मानसिक रूप से अस्वस्थ आरोपियों के साथ न्याय करने का एक संतुलित तरीका प्रस्तुत करती है। यह सुनिश्चित करता है कि—
1. जिन आरोपियों को ज़रूरत हो, उन्हें उचित चिकित्सा मिले।
2. जिन व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य संस्थान की आवश्यकता हो, उन्हें वहाँ भेजा जाए।
3. ऐसे आरोपी जो समाज में रह सकते हैं, उन्हें ज़रूरी देखभाल और सुरक्षा के साथ रिहा किया जाए।
इस प्रकार, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ने आधुनिक मानसिक स्वास्थ्य सिद्धांतों (Mental Health Principles) और मानवाधिकारों (Human Rights) को ध्यान में रखते हुए कानूनी व्यवस्था को और अधिक संवेदनशील और न्यायसंगत बनाया है।