Arbitration And Conciliation Act में Arbitral Institution द्वारा Arbitrator नियुक्त किया जाना
Shadab Salim
5 July 2025 10:18 AM IST

इस नए मध्यस्थता अधिनियम 2019 के अन्तर्गत संस्थागत मध्यस्थता को वैधानिक मान्यता प्राप्त है। अतः अब स्थायी मध्यस्थता संस्थाओं की सहायता से मध्यस्थों को नियुक्ति कराई जा सकती है। पक्षकारों के अनुरोध पर यह संस्था विशेषज्ञों की पेनल (नामावली) में विवाद की विषय वस्तु के क्षेत्र में अनुभवी विशेषज्ञ व्यक्तियों में से मध्यस्थ नियुक्त किये जाने हेतु पक्षकारों को परामर्श देते हैं।
यह स्थायी मध्यस्थता संस्थायें केवल मध्यस्थता कार्यवाही का संचालन नहीं करती अपितु इस हेतु प्रशासनिक सहायता उपलब्ध कराती हैं। भारतीय मध्यस्थता परिषद (इंडियन कौंसिल ऑफ आबॉट्रेशन) भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त स्थायी संस्था दिल्ली में स्थित है जो पक्षकारों को मध्यस्थता हेतु प्रबंधकीय व्यवस्था सुनिश्चित कराती है।
जहां मध्यस्थ को नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के मुख्य कोर्ट या नामित व्यक्ति या संस्था द्वारा की जाती है वहाँ उपरोक्त व्यक्ति मध्यस्थ की नियुक्ति करते समय मध्यस्थता करार में उल्लिखित मध्यस्थ की योग्यताओं को ध्यान में रखेगा। अन्य उचित तथा आवश्यक प्रक्रिया का पालन करेंगे।
यह प्रावधान स्पष्ट करते हैं कि मध्यस्थ की नियुक्ति में मध्यस्थ करार को पूर्ण रूप में महत्व दिया जाना चाहिये। यदि मध्यस्थता करार दो भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के नागरिकों के बीच है तब सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश या नामित व्यक्ति या संस्था उस व्यक्ति को मध्यस्य नियुक्त करेगा, जिसकी नागरिकता पक्षकारों की नागरिकता से भिन्न हो।
जहाँ एक से अधिक उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के समक्ष या एक से अधिक नामित व्यक्तियों के समक्ष मध्यस्थ की नियुक्ति के लिये आवेदन किया गया है तब जिस न्यायाधीश के समक्ष प्रथम अनुरोध किया गया है वही न्यायाधीश मध्यस्थ की नियुक्ति सम्बन्धी आदेश पारित करेगा।
एएस प्राइवेट लिमिटेड बनाम पी के होल्डिंग लिमिटेड एआईआर 1999 एससी 3246 के मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि जहाँ धारा 11(6) के अन्तर्गत हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा मध्यस्थ की नियुक्ति की गई है वहाँ ऐसी नियुक्ति के विरुद्ध विशेष अनुमति याचिका प्रस्तुत की जा सकती है।
कॉकण रेलवे कारपोरेशन लिमिटेड बनाम मेहुल कंपनी लिमिटेड (2000) 7 एसएससी 201 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने जहाँ धारा 11 (6) के अन्तर्गत आदेश पारित किया हो वहाँ वह आदेश प्रशासनिक होगा तथा उसके विरुद्ध अनुच्छेद 136 के तहत आवेदन नहीं किया जा सकता है। मामले में ऐसा आदेश वाणिज्यिक विवादों के मामलों को शीघ्रतर निबटाने के लिये कहा गया था।
जहाँ मध्यस्थता की विषय वस्तु अन्तर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता से सम्बन्धित है, तब मध्यस्थ की नियुक्ति का अनुरोध पक्षकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष किया जाना चाहिये। यदि मध्यस्थता करार की विषय वस्तु देशी है तब आवेदन हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष किया जाना चाहिए।
एक अन्य मामले में कहा गया है कि जहाँ पर सब जज ने स्वयं मध्यस्थ को नियुक्ति कर दी परन्तु रिकार्ड में यह कही नहीं पाया गया कि ने सह न्यायाधीश को नियुक्ति करने के लिए प्राधिकृत किया था अतः यह नियुक्ति सर्वथा अविधिक (Illegal) पायी गई। जहाँ मध्यस्थ का पद, उसकी मृत्यु या उपरोक्त सहमति वापस लेने के कारण रिक्त हो जाता है तब अधिनियम की धारा 14 के प्रावधान लागू होंगे।