जब हाईकोर्ट द्वारा दोष सिद्ध किया जाए, तब सुप्रीम कोर्ट में अपील और अन्य विशेष अपील अधिकार – BNSS, 2023 की धारा 420 से 422
Himanshu Mishra
16 April 2025 2:00 PM

धारा 420 – हाईकोर्ट द्वारा दोषसिद्धि के मामलों में सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार (Appeal against conviction by High Court in certain cases)
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 420 यह बताती है कि अगर कोई व्यक्ति किसी अपराध में पहले निचली अदालत से बरी (Acquitted) कर दिया गया हो, लेकिन हाईकोर्ट (High Court) ने अपील पर उस बरी किए गए आदेश को पलट दिया हो और उस व्यक्ति को दोषी (Convicted) ठहराकर उसे मृत्युदंड (Death sentence), आजीवन कारावास (Imprisonment for life) या दस साल या उससे अधिक की सजा (Ten years or more imprisonment) दी हो—तो उस व्यक्ति को भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) में अपील करने का पूरा अधिकार होगा।
यह प्रावधान इसीलिए ज़रूरी है क्योंकि जब एक व्यक्ति पहले दोषमुक्त हो चुका हो और बाद में उसे गंभीर सजा मिलती है, तो न्याय की भावना के तहत उसे सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अवसर मिलना चाहिए। यह आरोपी को अपने बचाव में अंतिम स्तर तक कानूनी लड़ाई लड़ने का अवसर देता है।
उदाहरण (Illustration): मान लीजिए, रमेश को सत्र न्यायालय (Sessions Court) ने एक हत्या के आरोप से बरी कर दिया। लेकिन राज्य सरकार ने उस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने सत्र न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए रमेश को हत्या का दोषी माना और आजीवन कारावास की सजा दी। ऐसी स्थिति में रमेश धारा 420 के तहत सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है।
धारा 421 – कुछ विशेष मामलों में अपील का विशेष अधिकार (Special right of appeal in certain cases)
यह धारा विशेष परिस्थितियों में समूह में दोषसिद्ध व्यक्तियों को अपील करने का एक अतिरिक्त अधिकार प्रदान करती है। मान लीजिए कि एक ही मुकदमे में कई लोगों पर मुकदमा चला और उनमें से कुछ को ऐसी सजा मिली जो अपील योग्य (Appealable) है और कुछ को नहीं, तो सभी दोषी व्यक्ति अपील कर सकते हैं—even अगर किसी को मिली सजा अकेले में अपील योग्य न भी होती।
इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्याय एक समान हो। अगर एक ही मुकदमे में सभी दोषी व्यक्तियों की परिस्थितियाँ मिलती-जुलती हैं, तो किसी एक को मिले अपील के अधिकार से बाकी दोषियों को भी उसी मामले में समान अधिकार मिलना चाहिए।
उदाहरण (Illustration): एक ही केस में अर्जुन, राजू और विकास को दोषी ठहराया गया। अर्जुन को सात साल की सजा हुई, जबकि राजू और विकास को तीन-तीन साल की। अर्जुन की सजा अपील योग्य है लेकिन राजू और विकास की नहीं। फिर भी, चूंकि सभी का मुकदमा एक ही है और अर्जुन को अपील का अधिकार है, इसलिए राजू और विकास को भी धारा 421 के तहत अपील करने का अधिकार मिल जाएगा।
धारा 422 – सत्र न्यायालय में अपील की सुनवाई कैसे होगी (Appeal to Court of Session – How heard)
इस धारा में यह स्पष्ट किया गया है कि जब किसी व्यक्ति की अपील सत्र न्यायालय (Court of Session) में लगाई जाती है, तो उस अपील की सुनवाई कौन करेगा।
इसका पहला उपखंड (Sub-section 1) बताता है कि सामान्यतः सत्र न्यायाधीश (Sessions Judge) या अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (Additional Sessions Judge) ऐसे मामलों की सुनवाई करते हैं। लेकिन अगर किसी व्यक्ति को द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट (Magistrate of second class) द्वारा दोषी ठहराया गया हो, तो उस अपील की सुनवाई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate) भी कर सकता है।
दूसरा उपखंड (Sub-section 2) यह व्यवस्था करता है कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट केवल उन्हीं अपीलों की सुनवाई कर सकते हैं जो सत्र न्यायाधीश द्वारा उन्हें सौंप दी गई हों या हाईकोर्ट द्वारा उन्हें सुनवाई के लिए निर्देशित की गई हों।
इस धारा का महत्व (Significance): न्यायालयों में कार्यभार को संतुलित करने के लिए यह व्यवस्था की गई है ताकि केवल उपयुक्त न्यायिक अधिकारी ही अपील सुनें और सत्र न्यायालयों में मामलों का वितरण सुव्यवस्थित रूप से हो।
पिछली धाराओं से संबंधित संदर्भ (References to Previous Sections)
इससे पहले हमने धारा 415 से लेकर 419 तक विस्तार से देखा कि कैसे दोषसिद्ध व्यक्ति विभिन्न न्यायालयों में अपील कर सकते हैं, किन मामलों में अपील नहीं हो सकती (जैसे धारा 416 में जब व्यक्ति ने स्वयं दोष स्वीकार किया हो या धारा 417 में जब सजा बहुत छोटी हो), और कैसे राज्य सरकार या शिकायतकर्ता अभियोजन पक्ष की ओर से भी अपील कर सकते हैं (धारा 418 और 419)।
उसी क्रम में अब धारा 420 से यह सुनिश्चित किया गया है कि हाईकोर्ट द्वारा दोषसिद्ध किए गए गंभीर मामलों में भी आरोपी को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का अधिकार रहे। धारा 421 इस बात को और मजबूत करती है कि अपील का अधिकार केवल व्यक्तिगत न रहकर समूह में भी हो सकता है। और धारा 422 यह स्पष्ट करती है कि सत्र न्यायालय में अपील की प्रक्रिया कैसी होगी।
धारा 420, 421 और 422 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अपील संबंधी प्रावधानों को और भी व्यावहारिक और न्यायोचित बनाती हैं। ये धाराएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि हर दोषसिद्ध व्यक्ति को एक निष्पक्ष अपील प्रक्रिया मिले, खासकर तब जब उसकी सजा गंभीर हो या जब दोषसिद्धि पर संदेह हो। साथ ही, सत्र न्यायालय में अपील की संरचना को भी विधिवत निर्धारित किया गया है ताकि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और संतुलन बना रहे।