SC/ST Act के अंतर्गत आने वाले क्राइम में एंटीसिपेटरी बेल एप्लीकेशन

Shadab Salim

12 May 2025 7:07 AM

  • SC/ST Act के अंतर्गत आने वाले क्राइम में एंटीसिपेटरी बेल एप्लीकेशन

    इस एक्ट में एंटीसेप्टरी बेल निषेध है लेकिन इस पर जोर दिया गया है कि एंटीसेप्टरी बेल के लिए आवेदन पर विचार करते समय कोर्ट इसके बारे में मात्र जांच में न्यायसंगत होंगे कि क्या किसी व्यक्ति के विरुद्ध अधिनियम, 1989 की धारा 3 के अधीन मामले को पंजीकृत करने के लिए कोई अभिकथन है और जब एक बार प्रथम सूचना रिपोर्ट में अपराध के आवश्यक तत्व उपलब्ध हों, तब कोर्ट वाद डायरी अथवा कोई अन्य सामग्री मंगा करके इसके बारे में पुनः जांच करने में न्यायसंगत नहीं होंगे कि क्या अभिकथन सत्य अथवा मिथ्या है अथवा क्या ऐसा अपराध कारित करने के लिए संभावनाओं की कोई अधिसंभाव्यता है।

    ऐसा प्रयोग एंटीसेप्टरी बेल के लिए आवेदन स्वीकार करने के विरुद्ध पूर्ण रोक लगाने के लिए आशयित है, जो असंदिग्ध रूप से अधिनियम की धारा 18 के अधीन प्रतिपादित किया गया है।

    इस एक्ट की धारा 18 में अधिरोपित निर्बंन्धन की दृष्टि से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता को धारा 482 के अधीन एंटीसेप्टरी बेल के लिए आवेदन पोषणीय नहीं है और अपास्त किये जाने के योग्य है।

    आर० के० सिंह बनाम राज्य, 2007 (2) क्राइम्स 44 (छत्तीसगढ़) के प्रकरण में कहा गया है जहाँ कि प्रथम सूचना रिपोर्ट के प्रकथन यह तथ्य दर्शित नहीं करते थे कि अभियुक्त परिवादी की जाति को जानता था वहाँ अभियुक्त मात्र भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत ही दण्डित किया जायेगा और अधिनियम को धारा 18 के प्रावधान आकर्षित नहीं होंगे और ऐसी स्थिति में अभियुक्त एंटीसेप्टरी बेल में छोड़े जाने का हकदार था।

    दासिका राममोहन राव बनाम स्टेट आफ आन्ध्र प्रदेश, 2003 के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि चूँकि उप्पारा की जाति समूह "घ" की परिधि के भीतर आती है और प्रथम दृष्टया तथ्यतः परिवादी अनुसूचित जाति से सम्बन्धित नहीं है, इसलिए यह एंटीसेप्टरी बेल मंजूर करने के लिए उपयुक्त मामला है।

    एक मामले में, मृतक कालेज में परिचालक था। यह अभिकथन किया गया था कि उसने चेक की चोरी कारित की तथा उसे भुना लिया। जब मामले की पुलिस के पास रिपोर्ट को गयी, तो उसने आत्महत्या कारित कर ली। अन्वेषण के दौरान यह प्रकट हुआ कि मात्र इस संदेह पर कि मृतक ने चेक को चुराया था, याची सहित सभी अभियुक्त उसे मानसिक तथा शारीरिक रूप से परेशान कर रहे थे।

    मात्र यह तथ्य कि तथ्यतः परिवादी तथा मृतक अनुसूचित जाति से सम्बन्धित थे, स्वयं अत्याचार निवारण अधिनियम को आकर्षित नहीं कर सकता है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के अधीन आवेदन अपवर्जित नहीं किया गया था, परन्तु याचीगण के विरुद्ध मृतक को परेशान करने के भिन्न अभिकथन थे, अभिनिर्धारित, वह एंटीसेप्टरी बेल का हकदार नहीं था।

    बापू गोण्डा बनाम स्टेट आफ कर्नाटक, 1996 क्रि० लॉ ज० 1117 के मामले में कहा गया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 अधिनियम की धारा 3 (1) के अधीन अपराध कारित करने वाले व्यक्ति को उपलब्ध नहीं होती है। वर्तमान मामले में पुलिस ने याचीगण के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता को धारा 341, 323, 324, 504 और 506 के अधीन दण्डनीय अपराध के अलावा अधिनियम की धारा 3 के अधीन मामला पंजीकृत किया है। याचीगण ने एंटीसेप्टरी बेल को मंजूरी के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 348 के अधीन याचिका दाखिल की थी। इसलिए वर्तमान याचिका पोषणीय नहीं है।

    एंटीसेप्टरी बेल की मंजूरी की वैधानिकता:- बाचू दास बनाम स्टेट आफ बिहार 2014 के मामले में यह स्पष्ट हुआ कि मजिस्ट्रेट ने सावधानीपूर्वक परिवाद याचिका के साथ ही साथ परिवादी के कथन का अवलोकन किया और जांच के दौरान चार साक्षियों को परीक्षा की तथा अभियुक्तों के विरुद्ध प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकाला कि भारतीय दण्ड संहिता को धारा 147, 148, 149, 323, 448 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3 के अधीन अपराध बनता है।

    ऐसी परिस्थितियों में और अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 18 के अधीन रोक की दृष्टि में विलास पाण्डुरंग पवार बनाम स्टेट आफ महाराष्ट्र, के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर विश्वास व्यक्त करते हुए अधिवक्ता ने यह तर्क किया कि हाईकोर्ट एंटीसेप्टरी बेल मंजूर करने में न्यायसंगत नहीं है। समान परिस्थितियों में, सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3 (1) के साथ-ही-साथ धारा 18 के अधीन उपबंधित अपराध पर विचार किया है। सुप्रीम कोर्ट का यह समाधान हो गया था कि हाईकोर्ट ने एंटीसेप्टरी बेल मंजूर करने में त्रुटि कारित की है।

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