Constitution में यूनियन और स्टेट के बीच एडमिनिस्ट्रेशन रिलेशन
Shadab Salim
24 Dec 2024 8:22 PM IST
संघात्मक कांस्टीट्यूशन दो सरकारों की स्थापना करता है केंद्र और राज्य इनके बीच शक्तियों का विभाजन देता है। संघीय शासन व्यवस्था की शक्ति और सफलता संघ और राज्यों के बीच अधिकतम सहयोग और समन्वय पर निर्भर करती है। केंद्र और राज्यों में प्रशासनिक संबंधों का समायोजन एक कठिन कार्य होता है। सरकारों में मतभेद की अधिक संभावना रहती है। केंद्रीय और राज्य अपने अपने क्षेत्र में प्रभुत्व संपन्न होते हैं पर
केंद्र को कांस्टीट्यूशन में राज्यों की अपेक्षा अधिक कर्तव्य दिए गए हैं। एक दृष्टि से देखें तो केंद्र राज्यों के मुकाबले में बड़ा है। देश में विधि व्यवस्था बनाए रखने का उत्तरदायित्व केंद्र सरकार का है। ऐसी स्थिति में भी केंद्र को कुछ आर्थिक शक्ति न प्राप्त हो तो प्रशासन तंत्र का सुचारू रूप से संचालन नहीं किया जा सकता है। कठिनाइयों को दूर करने के लिए कांस्टीट्यूशन निर्माताओं ने कांस्टीट्यूशन में आवश्यक गुणों का समावेश किया है और सभी विषयों के लिए राज्यों के ऊपर आवश्यक नियंत्रण की शक्ति प्रदान की है। आपातकालीन स्थिति में तो राज्य सरकार केंद्र सरकार के अधीन कार्य करती हैं, सामान्य परिस्थितियों में भी कांस्टीट्यूशन राज्यों के ऊपर केंद्र के नियंत्रण करता है, जैसे-
संघ द्वारा राज्यों को निर्देश आर्टिकल 256, 257, 339 में दिया जाता है।
अखिल भारतीय लोक सेवाएं (आर्टिकल 312)
केंद्रीय अनुदान (आर्टिकल 275)
केंद्र और राज्यों को केंद्र द्वारा राज्यों को निर्देश देने की व्यवस्था संग सिद्धांत के सार्थक प्रतिकूल है और एक किसी भी परिसंघ कांस्टीट्यूशन में नहीं पाई जाती है हमारे कांस्टीट्यूशन निर्माताओं ने भारत की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए कुछ व्यवस्था को कांस्टीट्यूशन में शामिल करना उचित समझा है आर्टिकल 256 यह कहता है कि प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति किस प्रकार प्रयोग किया जाएगा, जिसमें संसद द्वारा बनाई गई विधियों का पालन सुनिश्चित रहे तो संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को निर्देश देने तक विस्तृत होगा।
इसे भारत सरकार उस प्रयोजन के लिए आवश्यक समझे केंद्रीय वीडियो के अनुपालन में कोई बाधा उत्पन्न ना हो इसलिए केंद्र सरकार को ऐसी शक्ति प्रदान की गई है आर्टिकल 200 शक्ति का प्रयोग करेगा जिससे संघ की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में कोई प्रतिकूल प्रभाव ना पड़े इस प्रयोजन के लिए केंद्र राज्यों का आवश्यक निर्देश देगा इसके अतिरिक्त केंद्र राज्यों को राष्ट्रीय सैनिक महत्व के संसाधनों के अंदर की रक्षा के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में भी आवश्यक निर्देश दे सकता है
आर्टिकल 258 ए के अधीन संसद किसी राज्य सरकार की सहमति से संघ में कार्यपालिका शक्ति से संबंधित किसी विषय को उस सरकार को या उसके पदाधिकारियों को सशर्त सौंप सकती है। खंड 2 के अधीन संसद को संघ के विधायकों क्रियान्वयन के लिए राज्य के प्रशासन तंत्र का प्रयोग करने की शक्ति भी है। इस प्रयोजन के लिए संसद राज्य अथवा उसके पदाधिकारियों को ऐसी शक्ति प्रदान कर सकती है जिससे उसकी विधियों को उस राज्य में समुचित रूप से लागू किया जा सके।
संघीय कांस्टीट्यूशन में केंद्र और राज्यों को अलग-अलग सेवाएं दी गई हैं, उनकी सेवाएं अलग-अलग होती है पर भारतीय कांस्टीट्यूशन में इन सेवाओं के अतिरिक्त एक संघ और राज्यों के सम्मिलित सेवाओं का भी उपबंध है जिसे अखिल भारतीय सेवाएं कहा जाता है। आर्टिकल 312 के अंतर्गत राज्यसभा अपने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा यह घोषित कर देती है कि राष्ट्रहित में ऐसा करना आवश्यक या इस प्रकार है तो संसद विधि द्वारा संघ और राज्यों के लिए सम्मिलित एक या अधिक अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन कर सकती है और उन सेवाओं की भर्ती तथा उक्त व्यक्ति की सेवाओं के शर्तों का विनियमन कर सकती है।
कांस्टीट्यूशन के अंतर्गत राज्यों के राजस्व के स्त्रोत अत्यंत सीमित है जबकि नीति निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत पूर्ण समाज उत्थान में अनेक कार्य करने पड़ते हैं। इन सब कार्यों के लिए उसे प्राप्त होने वाला राजस्व कम होता है। इस प्रकार निरंतर बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार राज्य सरकारों को अनुदान प्रदान करती है।
केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के सहायता में अनुदान से दो उद्देश्यों की पूर्ति होती है। इसके माध्यम से केंद्र सरकार राज्य सरकारों पर नियंत्रण रखती है, कृपया अनुदान प्राप्त कुछ शर्तों के अधीन प्रदान किए जाते हैं जिन शर्तों को राज्य पूरा नहीं करता है तो उसका अनुदान रोका जा सकता है। इसके द्वारा केंद्र और राज्यों में सहयोग और समन्वय की भावना पैदा होती है। कोई राज्य अपनी जनता के कल्याण हेतु योजनाओं का विकास करना चाहता है तो केंद्र से अनुदान मांग सकता है।
एक संघात्मक कांस्टीट्यूशन में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन देता है तथा प्रत्येक सरकार कांस्टीट्यूशन द्वारा सीमा में ही कार्य करती है पर इसका यह अर्थ नहीं है कि उनका एक दूसरे से कोई संबंध नहीं होता है क्योंकि दोनों सरकारें एक ही नागरिक पर प्रशासन करती है और उनके कल्याण के लिए कार्यों को संपादित करती है, इसलिए इनमें आपस में सहयोग और समन्वय आवश्यक होता है। एक दूसरे से अलग अलग रहते हुए भी परस्पर सहयोगी होते हैं।
संघात्मक कांस्टीट्यूशन की स्थापना के प्रारंभिक काल में विभिन्न सरकारों में प्रतियोगिता और स्पर्धा की भावना में सम्मिलित हुए थे। कहीं केंद्र सरकार अधिक शक्तिशाली न हो जाए और उनके क्षेत्र में हस्तक्षेप न करें इसी उद्देश्य से शक्तियों के विभाजन की योजना भी अपनाई गई थी जिसमें किसी को कम से कम शक्ति और किसी को अधिक शक्ति प्रदान की गई थी। अनेक देशों में विवाद भी उत्पन्न हो गए हैं इन विवादों का कारण क्या कारण यही था।
भविष्य में कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिनके कारण यह प्रतियोगिता की भावना कम होती गई और उनके बीच सहयोग के संबंध में बढ़ता गया और एक दूसरे के सहयोगी व सहायक के रूप में हो गए। केंद्रीय और राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय की भावना के उत्पन्न होने के कारण आज हम इसे सहकारी संघ कहते हैं।