Hindu Marriage Act में मैरिज के लिए सपिंड नहीं होना और विवाह के लिए ज़रूरी संस्कार का होना

Shadab Salim

17 July 2025 10:03 AM

  • Hindu Marriage Act में मैरिज के लिए सपिंड नहीं होना और विवाह के लिए ज़रूरी संस्कार का होना

    इस एक्ट की धारा 5 के अधीन किसी भी हिंदू विवाह के संपन्न होने के लिए विवाह के पक्षकारों का आपस में सपिंड संबंध का नहीं होना चाहिए। यदि विवाह के पक्षकार आपस में सपिंड संबंध के होते हैं तो इस प्रकार का विवाह अधिनियम की धारा 11 के अनुसार शून्य होता है। सपिंडा रिलेशनशिप का हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत कड़ाई से पालन किए जाने का प्रयास किया गया है।

    सपिंड नातेदारी के अंदर वाले दो हिंदू पक्षकारों के बीच विवाह प्रारंभ से ही कोई भी वजूद नहीं रखता है तथा इस प्रकार का विवाह किए जाने पर तो अधिनियम के अंतर्गत ही दंड का भी प्रावधान रखा गया है। अर्थात हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत इस विवाह को दंड का रूप दिया गया है। शास्त्रीय प्राचीन हिंदू विवाह में भी सपिंड नातेदारी के भीतर विवाह किए जाने को अत्यंत बुरा और राक्षसी कृत्य समझा जाता है।

    हिंदू विवाह के लिए संस्कार

    अधिनियम के अनुसार किसी भी हिंदू विवाह के संपन्न किए जाने के लिए उसके संस्कारों का होना अति आवश्यक होता है। इन संस्कारों का उल्लेख अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत प्राप्त होता है। इस धारा के अनुसार कोई भी हिंदू विवाह उस प्रकार से अनुष्ठापित किया जा सकता है जिस परंपरा और रीति-रिवाज के अनुसार हिंदू विवाह को अनुष्ठापित्त किया जाता है।

    यदि किसी समाज में सप्तपदी की परंपरा है तब सातवें पग के होने पर विवाह संपन्न होगा।

    आर्य समाज के भीतर होने वाले विवाहों में भी अग्नि के फेरे लिए जाते हैं परंतु अग्नि के फेरे चार होते हैं यदि आर्य समाज में 4 अग्नि के फेरे लिए जाने की परंपरा रही है तो हिंदू विवाह अधिनियम के अधीन इस परंपरा को भी स्वीकार किया गया है और चार फेरों में भी हिंदू विवाह स्थापित हो जाएगा तथा जयमाला अंगूठी इत्यादि पहना देने से भी हिंदू विवाह के कर्मकांड संपन्न हो जाएंगे।

    किसी भी हिंदू विवाह के संपन्न होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वहां कोई पंडित या पुरोहित उपस्थित हो, कोई भी हिंदू विवाह लोगों की मौजूदगी में वर वधु के द्वारा एक दूसरे को माला पहनाकर अंगूठी पहना कर और ताली बजाकर भी संपन्न किया जा सकता है।

    सामान्यतया माना जाता है कि जब भी कोई हिंदू विवाह संपन्न किया जाए तब कम से कम सप्तपदी जैसी प्रक्रिया को पूरी कर लिया जाना चाहिए बगैर सप्तपदी के विवाह संपन्न करने पर विवाह को सिद्ध करने में अत्यधिक परेशानी का सामना करना होता है।

    यदि सप्तपदी कर ली जाए तो यह विवाह का आदर्श रूप होगा या फिर उस रूढ़ि या प्रथा का पालन कर लिया जाए जिस रूढ़ि या प्रथा से विवाह के दोनों में से कोई पक्षकार आते हैं, जैसे कई समाजों में मात्र पुष्प माला से भी विवाह संपन्न हो जाता है। ऐसी कोई भी रूढ़ि या प्रथा होना चाहिए जिससे विवाह होता हो।

    किसी हिंदू विवाह को सामान्य तौर पर तो रजिस्ट्रेशन की कोई आवश्यकता नहीं होती है परंतु इस प्रकार के विवाह को सुविधाजनक बनाने हेतु अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत हिंदू विवाह को रजिस्टर किए जाने हेतु प्रावधान कर दिए गए हैं। इस हेतु अलग-अलग राज्यों को अपने नियम बनाने की शक्ति दी गई है। मध्य प्रदेश, पंजाब, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक केरल और राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस प्रकार के नियम बना चुके हैं।

    हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह का पंजीयन अनिवार्य न होकर वैकल्पिक प्रावधान है। विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अंतर्गत सभी प्रकार के विवाह के पंजीकरण का प्रावधान है। एक हिंदू विवाह को भी विशेष विवाह अधिनियम के अधीन पंजीकृत कराया जा सकता है किंतु पंजीकरण के उपरांत हिंदू विवाह सिविल विवाह के रूप में माना जाएगा।

    ऐसा विवाह वर्तमान अधिनियम के प्रावधानों से शासित नहीं होगा यदि किसी विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत रजिस्टर कराया जाता है तब ही वह विवाह के प्रावधानों के संबंध में हिंदू विवाह अधिनियम के नियम लागू होंगे यदि किसी विवाह को विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत रजिस्टर करा दिया गया तो फिर तलाक के नियम भी उसी अधिनियम के अंतर्गत लागू होंगे।

    हिंदू विवाह के लिए पक्षकारों की न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है। बाल विवाह निरोधक संशोधन अधिनियम के बाद सभी प्रकार के विवाह में न्यूनतम आयु तय कर दी गई है। दो हिंदुओं के मध्य हिंदू विवाह तभी अनुष्ठापित किया जा सकता है जब वर 21 वर्ष की आयु और वधु ने 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है। यदि किन्हीं पक्षकारों का विवाह इस शर्त की अवहेलना करके कर दिया गया है तो कोर्ट द्वारा इस प्रकार के विवाह को पक्षकारों में से किसी एक के द्वारा याचिका लाए जाने पर शून्य घोषित किया जा सकता है।

    Next Story