बिना चेक नंबर, तारीख और राशि वाले बैंक स्लिप को NI Act की धारा 146 के तहत साक्ष्य नहीं माना जा सकता: केरल हाईकोर्ट

Amir Ahmad

18 Jun 2025 6:59 AM

  • बिना चेक नंबर, तारीख और राशि वाले बैंक स्लिप को NI Act की धारा 146 के तहत साक्ष्य नहीं माना जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (NI Act) की धारा 146 के अंतर्गत यदि किसी चेक के अनादरण (डिशऑनर) को साबित करना है तो बैंक द्वारा जारी की गई स्लिप में चेक की संख्या, तारीख और राशि स्पष्ट रूप से उल्लेखित होनी चाहिए।

    यदि ये महत्वपूर्ण विवरण अनुपस्थित हैं तो उस मेमो को चेक अनादरण के प्रारंभिक साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने यह टिप्पणी उस समय की, जब उन्होंने चेक बाउंस मामले में दिए गए एक बरी करने के आदेश को रद्द किया।

    शिकायतकर्ता ने NI Act की धारा 138 के तहत 1,46,000 की राशि वाले चेक के बाउंस होने पर मामला दर्ज किया था। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया कि सूचना पत्र या अनादरण पत्र (dishonor memo) में उस चेक की संख्या का उल्लेख नहीं था, जो अनादरित हुआ।

    हाईकोर्ट ने यह पाया कि शिकायतकर्ता ने बैंक मैनेजर को समन भेजकर उचित दस्तावेज़ों के माध्यम से चेक अनादरण को साबित करने की कोशिश की थी, परंतु ट्रायल कोर्ट ने उसे यह अवसर नहीं दिया।

    अदालत ने कहा,

    "NI Act की धारा 146 के तहत बैंक की स्लिप को चेक अनादरण का प्रारंभिक साक्ष्य माना जा सकता है, लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि उस स्लिप में चेक की संख्या, तारीख और राशि का उल्लेख हो। तभी यह माना जा सकता है कि प्रस्तुत की गई स्लिप वास्तव में उसी चेक से संबंधित है, जो अनादरित हुआ है।"

    इस निर्णय में यह स्पष्ट किया गया कि केवल बैंक मेमो प्रस्तुत कर देना पर्याप्त नहीं है, जब तक कि उसमें उस विशेष चेक के बारे में पूर्ण जानकारी ना हो। यदि विवरण उपलब्ध नहीं है तो शिकायतकर्ता को बैंक मैनेजर को गवाही के लिए बुलाने का उचित अवसर मिलना चाहिए।

    इस निष्कर्ष पर पहुंचते हुए कि शिकायतकर्ता को अपने मामले को साबित करने का न्यायसंगत अवसर नहीं मिला, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का बरी करने का आदेश रद्द कर दिया और मामले को वापस ट्रायल कोर्ट को भेजा ताकि शिकायतकर्ता को बैंक मैनेजर को तलब करने और साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर दिया जा सके।

    टाइटल: अब्दुल रहीम बनाम सुखू एस एवं अन्य (Abdul Rahim v. Suku S & Anr.)

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