ट्रायल कोर्ट के निर्धारित समय में आरोप तय करने में विफल रहने पर अपराध की प्रकृति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए आरोपी को जमानत का अधिकार नहीं मिल जाता: केरल हाईकोर्ट

Shahadat

25 March 2024 6:27 AM GMT

  • ट्रायल कोर्ट के निर्धारित समय में आरोप तय करने में विफल रहने पर अपराध की प्रकृति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए आरोपी को जमानत का अधिकार नहीं मिल जाता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि कोई आरोपी केवल इसलिए जमानत का हकदार नहीं है, क्योंकि ट्रायल कोर्ट निर्धारित समय के भीतर आरोप तय करने में विफल रही। मामले के तथ्यों के अनुसार, हाईकोर्ट ने आरोपी की पूर्व जमानत याचिका को ट्रायल कोर्ट को एक महीने के भीतर आरोप तय करने और उसके बाद छह महीने के भीतर मामले का निपटारा करने का निर्देश देते हुए खारिज कर दिया।

    जस्टिस सोफी थॉमस ने कहा कि आरोपी जमानत का हकदार नहीं है, क्योंकि उसके खिलाफ समवर्ती निष्कर्ष हैं। इसमें कहा गया कि आरोपी को उसके खिलाफ कथित अपराधों की प्रकृति और गंभीरता के कारण विचाराधीन कैदी के रूप में मुकदमे का सामना करना होगा।

    कोर्ट ने कहा,

    "चूंकि ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ इस कोर्ट के समवर्ती निष्कर्ष हैं कि अपराध की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए याचिकाकर्ता को विचाराधीन कैदी के रूप में मुकदमे का सामना करना होगा, सिर्फ इस तथ्य के कारण कि मुकदमा अदालत बीए नंबर 11649/2023 में आदेश की तारीख से एक महीने के भीतर आरोप तय करने में विफल रही, यह जमानत आवेदन स्वीकार करने योग्य नहीं है। ट्रायल कोर्ट के पास तय समय में आरोप तय नहीं करने के पर्याप्त कारण हैं।

    याचिकाकर्ता पर बलात्कार और गंभीर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया। उस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(1), 376(2)(एफ), 376(2)(एन), 376(3), 376 एबी और 506(i), POCSO Act की धारा 4(2) 3(ए), 3(डी), 6 आर/डब्ल्यू 5(एल), 5(एम), 5(एन), 8 आर/डब्ल्यू 7 और धारा 10 सपठित 9(एल) और आईटी अधिनियम की धारा 9(एम), 9(एन) के तहत आरोप लगाए गए।

    याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित अपराधों की गंभीरता और प्रकृति को ध्यान में रखते हुए ट्रायल ने उसकी जमानत याचिका खारिज की। कोर्ट ने कहा कि उसे एक विचाराधीन कैदी के रूप में मुकदमे का सामना करना होगा।

    जब याचिकाकर्ता ने जमानत के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो हाईकोर्ट ने उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी। इसने ट्रायल कोर्ट को आरोप तय होने के छह महीने के भीतर मामले का निपटारा करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को यह भी निर्देश दिया कि यदि आरोप तय नहीं किए गए तो आदेश जारी होने की तारीख से एक महीने के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए।

    ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित समय के भीतर आरोप तय करने में विफलता के कारण याचिकाकर्ता ने फिर से जमानत याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के पहले के निर्देश के बावजूद आरोप तय नहीं किए गए। यह भी तर्क दिया गया कि यह साबित करने के लिए कोई मेडिकल साक्ष्य नहीं है कि पीड़िता पर प्रवेशन यौन हमला किया गया।

    कोर्ट ने कहा कि इन सभी दलीलों पर ट्रायल कोर्ट को सबूत लेकर विचार करना होगा। इसमें यह भी कहा गया कि हाईकोर्ट के पहले के निर्देशानुसार निर्धारित समय के भीतर आरोपियों के खिलाफ आरोप तय नहीं करने के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा पर्याप्त स्पष्टीकरण दिया गया।

    कोर्ट ने कहा कि रजिस्ट्री ने सत्यापित किया कि ट्रायल कोर्ट ने आरोप तय कर दिए। इस प्रकार, अदालत ने ट्रायल कोर्ट को आरोप तय होने की तारीख से छह महीने के भीतर मामले का निपटारा करने का निर्देश देते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल: YYY बनाम केरल राज्य

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