मिलावट रहित भोजन प्राप्त करना मौलिक अधिकार : केरल हाईकोर्ट ने केंद्र से खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम में खामियों की जांच करने को कहा

Amir Ahmad

21 Sept 2024 12:17 PM IST

  • मिलावट रहित भोजन प्राप्त करना मौलिक अधिकार : केरल हाईकोर्ट ने केंद्र से खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम में खामियों की जांच करने को कहा

    केरल हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 और उसके विनियमों में खामियों की जांच करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि नागरिकों को मिलावट रहित भोजन उपलब्ध कराने के लिए पूर्ण प्रमाण अधिनियम और नियम बनाना सरकार का कर्तव्य है।

    इस मामले में न्यायालय इस बात पर विचार कर रहा था कि क्या पेप्सिको इंडिया होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ़ असुरक्षित और गलत ब्रांड वाली मिंट और लेमन फ्लेवर्ड ग्रीन आइस टी बेचने के आरोप में मुकदमा चलाया जा सकता है, जबकि खाद्य विश्लेषक और खाद्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट अलग-अलग थीं।

    जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने कहा कि अधिनियम में खामियों के कारण अभियोजन केवल तभी शुरू किया जा सकता है, जब खाद्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट की पुष्टि करती है न कि तब जब रिपोर्ट भिन्न हों।

    इस प्रकार न्यायालय ने कार्यवाही रद्द करते हुए कहा,

    “यह एक तथ्य है कि इस मामले में रेफरल लैब ने पाया कि सैंपल असुरक्षित और गलत ब्रांड का है। फिर भी यह न्यायालय अब FSS एक्ट और नियमों में खामियों के कारण याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने के लिए मजबूर है। यह देखना राज्य और संघ का कर्तव्य है कि बाजार में केवल शुद्ध खाद्य पदार्थ ही उपलब्ध हों। मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचने वाले व्यक्ति को परिणाम भुगतने चाहिए। ऐसे व्यक्ति तकनीकी आधार पर कानून के शिकंजे से बच नहीं सकते। एक पूर्णतया सुरक्षित अधिनियम और नियम समय की मांग है। शुद्ध खाद्य पदार्थ प्राप्त करने का अधिकार प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।”

    मामले की पृष्ठभूमि

    पेप्सिको इंडिया होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड चौथा आरोपी है, जिस पर खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 के तहत दंडनीय अपराध करने का आरोप लगाया गया, जिसे खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य उत्पाद मानक और खाद्य योजक) विनियम, 2011 और खाद्य सुरक्षा और मानक (पैकेजिंग और लेबलिंग) विनियम, 2011 के विनियमन संख्या 2.12 के साथ पढ़ा गया।

    शिकायतकर्ता ने हाइपरमार्केट से मिंट और लेमन फ्लेवर्ड ग्रीन आइस टी की 4 समान और सीलबंद बोतलें खरीदीं। सीलबंद पैकेट में खरीदे गए सैंपल के एक हिस्से को FSS एक्ट और विनियमों के प्रावधानों के अनुसार जांच के लिए भेजा गया।

    नमूने की जांच करने पर खाद्य विश्लेषक ने राय दी कि सैंपल में सोडियम सैकरीन के रूप में सैकरीन था। यह FSS एक्ट और विनियमों के अनुसार असुरक्षित था। आरोपी की अपील पर रेफरल खाद्य लैब के निदेशक ने सैंपल की समीक्षा की और निष्कर्ष निकाला कि यह कैफीन की उपस्थिति के कारण असुरक्षित और गलत ब्रांड का था जिसका लेबल पर खुलासा नहीं किया गया। इस प्रकार यह एफएसएस अधिनियम और विनियमों का उल्लंघन करता है।

    इसके आधार पर खाद्य सुरक्षा आयुक्त ने असुरक्षित और गलत ब्रांड वाली मिंट और लेमन फ्लेवर्ड ग्रीन आइस टी के उत्पादन और बिक्री के लिए आरोपी 1 से 4 के खिलाफ मुकदमा शुरू किया। पहला आरोपी दूसरे आरोपी का विक्रेता है जिसके पास उस हाइपरमार्केट का FSS लाइसेंस है जहां से उत्पाद खरीदा गया। तीसरा आरोपी वितरक है, जबकि चौथा आरोपी निर्माता और विपणक है।

    चौथे आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि खाद्य विश्लेषक और रेफरल खाद्य प्रयोगशाला से अलग-अलग निष्कर्षों के अस्तित्व के कारण अभियोजन अस्थिर है।

    यह तर्क दिया गया कि रिपोर्ट ने संकेत दिया कि सैंपल में सोडियम सैकरीन के रूप में सैकरीन था जबकि दूसरी रिपोर्ट में कैफीन की उपस्थिति दिखाई गई।

    निष्कर्ष

    न्यायालय ने कहा कि खाद्य विश्लेषक के कार्यों से निपटने वाले FSS एक्ट की धारा 46 (4) के अनुसार खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट के खिलाफ अपील नामित अधिकारी को प्रस्तुत की जा सकती है। नामित अधिकारी अपने विवेक पर इसे राय के लिए खाद्य प्रयोगशाला को संदर्भित कर सकता है।

    “धारा 46 (4): खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट के खिलाफ अपील नामित अधिकारी के समक्ष होगी, जो यदि वह ऐसा निर्णय लेता है, तो मामले को खाद्य प्राधिकरण द्वारा राय के लिए अधिसूचित रेफरल खाद्य प्रयोगशाला को संदर्भित करेगा।”

    FSS विनियमनों का नियम 3.1 न्यायनिर्णयन कार्यवाही से संबंधित है तथा नियम 3.1.1 न्यायनिर्णयन अधिकारी द्वारा जांच करने से संबंधित है।

    न्यायालय ने कहा कि नियमों के अनुसार नामित अधिकारी केवल तीन स्थितियों में ही जांच करेगा एक जब खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट के खिलाफ धारा 46 (4) के तहत अपील खारिज कर दी गई हो दूसरा जब खाद्य लैब धारा 46 (4) के तहत अपील में खाद्य विश्लेषक के निष्कर्षों की पुष्टि करती है तीसरा जब धारा 46 (4) के तहत कोई अपील नहीं की गई हो।

    न्यायालय ने आगे कहा कि यदि नामित अधिकारी को लगता है कि खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट गलत है, तो वह FSS नियमों के नियम 2.4.3 के अनुसार इसे खाद्य लैब को संदर्भित कर सकता है।

    उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में FSS विनियमों के तहत अभियोजन शुरू किया जा सकता है भले ही खाद्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट से भिन्न हो।

    न्यायालय ने कहा,

    "यदि नामित अधिकारी की राय है कि खाद्य विश्लेषक द्वारा दी गई रिपोर्ट त्रुटिपूर्ण है तो वह सैंपल के एक हिस्से को रेफरल प्रयोगशाला को अग्रेषित कर सकता है। भले ही रेफरल प्रयोगशाला की रिपोर्ट खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट से भिन्न हो, नियम 3.1 के प्रावधान लागू होंगे।"

    न्यायालय ने कहा कि नियमों के अनुसार, अभियोजन तभी शुरू किया जा सकता है जब खाद्य लैब की रिपोर्ट खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट की पुष्टि करती है, न कि तब जब रिपोर्ट भिन्न हों।

    न्यायालय ने कहा,

    "यदि खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट को नियम 3.1.1: (1) में उल्लिखित व्यक्तियों द्वारा FSS एक्ट की धारा 46 (4) के तहत अपील के माध्यम से चुनौती दी जाती है। रेफरल लैब की रिपोर्ट खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट की पुष्टि करती है, तभी अभियोजन की कार्यवाही शुरू की जा सकती है। दूसरे शब्दों में यदि रेफरल लैब की रिपोर्ट खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट की पुष्टि करने के बजाय खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट से भिन्न है तो कोई अभियोजन संभव नहीं है।"

    न्यायालय ने FSS एक्ट और विनियमों में इस कमी की ओर ध्यान दिलाया और कहा,

    "यदि रेफरल प्रयोगशाला की रिपोर्ट खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट की पुष्टि करने के बजाय खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट से भिन्न है तो कोई अभियोजन संभव नहीं है। ऐसा नियम इस कारण से बनाया जा सकता है कि यदि रेफरल लैब की रिपोर्ट खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट से भिन्न है तो आरोपी के पास उसे चुनौती देने के लिए कोई और अपील नहीं है। मेरा विचार है कि नियमों में कमी है।"

    सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया का संदर्भ देते हुए न्यायालय ने कहा कि नागरिकों को सुरक्षित भोजन उपलब्ध कराना राज्य और अधिकारियों का सर्वोपरि कर्तव्य है।

    इसने कहा कि सुरक्षित भोजन का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित एक मौलिक अधिकार है।

    इस प्रकार न्यायालय ने कहा कि कानून में कमी पर केंद्र सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए और उचित संशोधनों को शामिल करना होगा।

    इस प्रकार इसने रजिस्ट्री को आवश्यक कदम उठाने के लिए इस निर्णय की एक प्रति सक्षम प्राधिकारी को भेजने का निर्देश दिया।

    "केंद्र सरकार को अधिनियम और नियमों में इस कमी के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। रजिस्ट्री इस आदेश की एक प्रति केंद्र सरकार के सक्षम प्राधिकारी को भेजेगी ताकि अधिनियम और नियमों में आवश्यक संशोधन करने के लिए उचित कदम उठाए जा सकें, यदि विधानमंडल और नियम बनाने वाला प्राधिकारी ऐसा सोचता है।"

    इस प्रकार न्यायालय ने चौथे आरोपी के खिलाफ कार्यवाही को रद्द कर दिया।

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