तथ्य की गलत धारणा के बिना सहमति से यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं: केरल हाईकोर्ट ने दोहराया

Amir Ahmad

17 July 2024 12:40 PM GMT

  • तथ्य की गलत धारणा के बिना सहमति से यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं: केरल हाईकोर्ट ने दोहराया

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में महिला के साथ बलात्कार के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी, क्योंकि उसने पाया कि यौन संबंध स्वैच्छिक था और तथ्य की गलत धारणा का परिणाम नहीं था।

    इस मामले में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता, जो टेम्पो वैन चालक है, उसने 2005, 2011, 2015 और 2016 में उसके साथ बलात्कार किया।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने कहा कि 2017 तक कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई और बलात्कार का आरोप लगाते हुए अपराध 13 साल की लंबी अवधि के बाद ही दर्ज किया गया। न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता के बीच यौन संबंध उसकी सहमति से स्वैच्छिक थे और तथ्य की किसी गलत धारणा पर आधारित नहीं थे।

    न्यायालय ने कहा,

    "इस प्रकार यह संक्षेप में कहा जाना चाहिए कि जब प्रथम दृष्टया, सामग्री से पता चलता है कि अभियोक्ता को बिना किसी सद्भावना के तथ्य की गलत धारणा के तहत विवाह के वादे पर यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया तो सहमति को दूषित माना जाता है। यदि सामग्री से पता चलता है कि संबंध पूरी तरह से सहमति से है और तथ्य की गलत धारणा के तत्व के बिना है तो यह बलात्कार नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कार्यवाही रद्द करने पर विचार करते समय न्यायालय द्वारा विचार किए जाने वाला प्रश्न यह है कि क्या शुरू में ही यौन संबंध बनाने के लिए आपसी सहमति थी या यह तथ्य की गलत धारणा के तहत विवाह के वादे पर है।"

    मामले के तथ्यों में याचिकाकर्ता टेम्पो वैन चालक है और वह शिकायतकर्ता से तब मिला जब उसके परिवार ने अप्रैल 2005 में कोडईकनाल की यात्रा के लिए उसकी वैन किराए पर ली थी। आरोप है कि वे फोन के माध्यम से करीब आए और जुलाई 2005 में आरोपी ने अपनी वैन में उसके साथ बलात्कार किया।

    यह भी आरोप है कि उसने उसकी तस्वीरें खींची और उसकी शील भंग की। इसके बाद शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने नवंबर 2011, अक्टूबर 2015 और नवंबर 2016 में अलग-अलग जगहों पर उसके साथ बलात्कार किया। याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 376, 342 और आईटी एक्ट की धारा 66ई के तहत दंडनीय अपराध करने का आरोप लगाया गया।

    याचिकाकर्ता के वकील ने बलात्कार के आरोपों से इनकार किया और कहा कि वे सहमति से यौन संबंध में थे। यह कहा गया कि शिकायतकर्ता ने 2005 में बलात्कार का आरोप लगाते हुए कभी शिकायत दर्ज नहीं कराई और प्रथम दृष्टया साक्ष्य से पता चलता है कि वे पूरी तरह से सहमति से संबंध में थे।

    न्यायालय ने उदय बनाम कर्नाटक राज्य (2003), दिलीप सिंह बनाम बिहार राज्य (2005), येदला श्रीनिवास राव बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2006), प्रशांत भारती बनाम राज्य (दिल्ली एनसीटी) (2013), उत्तर प्रदेश राज्य बनाम नौशाद (2013), दीपक गुलाटी बनाम हरियाणा राज्य (2013), ध्रुवरन मुरलीधरन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2019), अनुराग सोनी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2019) और सोनू @ सुभाष कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2021) में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की एक श्रृंखला पर अपना भरोसा रखा, जिसमें चर्चा की गई कि शादी करने का वादा और उसके बाद के उल्लंघन को अकेले बलात्कार नहीं माना जाएगा।

    उन्होने कहा कि महज एक वादे के उल्लंघन और शादी करने के झूठे वादे के बीच अंतर है। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने 'सहमति से यौन संबंध' और 'बलात्कार' के बीच अंतर करने का प्रयास किया। यह कहा गया कि विवाह करने का वादा केवल अभियोक्ता को यौन क्रियाओं में शामिल होने के लिए बहकाने के इरादे से किया गया होगा, जिससे बलात्कार का अपराध हो सके।

    न्यायालय ने नईम अहमद बनाम राज्य (दिल्ली के एनसीटी), 2023 का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह करने के प्रत्येक वादे के उल्लंघन को झूठा वादा मानना ​​और धारा 376 के तहत बलात्कार के अपराध के लिए किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाना मूर्खता होगी।

    ऊपर उल्लिखित उदाहरणों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि पीड़िता से विवाह करने के किसी भी इरादे या इच्छा के बिना किया गया विवाह करने का वादा धारा 90 के तहत दी गई सहमति को अमान्य कर देगा और आईपीसी की धारा 376 के तहत अभियोजन को आकर्षित करेगा। इसने कहा कि किसी रिश्ते की शुरुआत से ही शादी करने के झूठे वादों के माध्यम से प्राप्त सहमति को वैध सहमति नहीं माना जा सकता है।

    न्यायालय ने कहा,

    "कानूनी स्थिति स्पष्ट रूप से स्पष्ट है कि पीड़िता से विवाह करने का कोई इरादा या झुकाव न रखते हुए विवाह करने का वादा आईपीसी की धारा 90 के अनुसार सहमति को नष्ट कर देगा। साथ ही यदि सहमति चोट के डर या तथ्य की गलत धारणा के तहत दी गई तो प्राप्त की गई ऐसी सहमति को वैध सहमति नहीं माना जा सकता। इसी तरह जब अभियोक्ता ने अभियुक्त द्वारा किए गए सद्भावपूर्ण प्रतिनिधित्व पर अभियुक्त के साथ यौन संबंध बनाए कि वह उससे विवाह करेगा तो यह अभियुक्त के कहने पर किया गया झूठा वादा था और यह धारा 90 के अंतर्गत आता है।"

    मामले के तथ्यों में न्यायालय ने नोट किया कि अभियोजन पक्ष का मामला यह स्थापित नहीं करता कि शिकायतकर्ता की सहमति तथ्य की किसी गलत धारणा से प्राप्त की गई।

    तदनुसार, न्यायालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ सभी कार्यवाही रद्द कर दी।

    केस टाइटल: सुजीत बनाम केरल राज्य

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