केरल हाईकोर्ट ने डॉक्टरों को नाबालिगों की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के बाद भ्रूण को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया

Amir Ahmad

20 Feb 2025 10:59 AM

  • केरल हाईकोर्ट ने डॉक्टरों को नाबालिगों की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के बाद भ्रूण को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया

    केरल हाईकोर्ट ने राज्य स्वास्थ्य विभाग के निदेशक को निर्देश दिया कि वह राज्य के सभी डॉक्टरों को नाबालिग पीड़ितों के भ्रूण को सुरक्षित रखने के लिए सूचित करें और इसे नष्ट करने के लिए जांच अधिकारी/जिला पुलिस अधीक्षक से लिखित अनुमति लें।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने कहा कि नाबालिग पीड़ितों के हितों की रक्षा के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि आरोपी महत्वपूर्ण साक्ष्य के अभाव में मुकदमे से भाग न जाए ऐसा करना आवश्यक है।

    “नाबालिग पीड़ितों के हितों की रक्षा करने तथा महत्वपूर्ण साक्ष्य के अभाव में अभियुक्तों को मुकदमे से भागने से रोकने के लिए केरल राज्य के स्वास्थ्य विभाग के निदेशक को यह निर्देश दिया जाएगा कि वे इस आदेश को राज्य के सभी डॉक्टरों को परिपत्र के रूप में संप्रेषित करें, जिसमें उन्हें नाबालिग पीड़ितों के भ्रूण को नष्ट किए बिना अनिवार्य रूप से संरक्षित करने का निर्देश दिया जाएगा तथा भ्रूण को नष्ट करने के लिए डॉक्टरों को जांच अधिकारी या संबंधित जिला पुलिस अधीक्षक से लिखित अनुमति लेनी होगी।”

    इस मामले पर विचार करते हुए न्यायालय ने पूछा कि क्या नाबालिग पीड़ितों से संबंधित MTP के मामले में भ्रूण को संरक्षित करने की आवश्यकता वाला कोई कानून है और सरकारी वकील ने नकारात्मक उत्तर दिया।

    न्यायालय ने राज्य और केंद्र को इस संबंध में उचित कानून पारित करने पर विचार करने का सुझाव दिया। तब तक न्यायालय का निर्देश लागू रहेगा।

    न्यायालय एक ऐसे मामले पर विचार कर रहा था, जिसमें डॉक्टर पर नाबालिग पीड़िता पर गर्भ का मेडिकल टर्मिनेशन (MTP) करने के बाद भ्रूण को संरक्षित न करने के लिए IPC की धारा 201 के तहत मामला दर्ज किया गया था। उन पर मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 5(3) के तहत भी मामला दर्ज किया गया। मामले में आगे की कार्यवाही रद्द करने के लिए डॉक्टर ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

    न्यायालय ने पाया कि डॉक्टर ने पीड़िता से मिलने के दिन ही पुलिस को मामले की जानकारी दी थी। अगले दिन MTP किया गया। MTP किए जाने के 3 दिन बाद ही पुलिस ने डॉक्टर को सूचित किया कि यदि DNA जांच के लिए MTP किया जाता है तो भ्रूण को संरक्षित किया जाए।

    न्यायालय ने कहा कि पुलिस द्वारा डॉक्टर को भ्रूण को संरक्षित करने के लिए सूचित किए जाने से पहले ही भ्रूण को नष्ट कर दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि जब भ्रूण को संरक्षित करने का कोई कानूनी आदेश नहीं है, तो याचिकाकर्ता पर अपराधी को बचाने के लिए सबूतों को गायब करने का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।

    MTP नियम अनुमोदन प्रमाणपत्र के लिए किसी वैधता अवधि का प्रावधान नहीं करते

    अस्पताल ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि उनके पास मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी नियम के नियम 5(6) के तहत अनुमोदन प्रमाणपत्र है। वे 16 सप्ताह तक की गर्भावस्था में MTP करने के लिए अधिकृत हैं। सरकारी वकील ने तर्क दिया कि स्वीकृति प्रमाण पत्र 18.07.2014 को जारी किया गया और तब से इसका नवीनीकरण नहीं किया गया। सरकारी वकील ने प्रस्तुत किया कि 12.04.2021 को जब एमटीपी किया गया था तब कोई स्वीकृति नहीं थी।

    कोर्ट ने MTP Act की धारा 4 और 5 तथा MTP नियमों के नियम 5 और 7 के प्रावधानों पर गौर करने के बाद पाया कि पहले से जारी प्रमाण पत्र की कोई वैधता अवधि नहीं होती है। नियम 7 के तहत प्रमाण पत्र को निलंबित या रद्द किया जा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि जब तक ऐसा निलंबन या रद्दीकरण नहीं होता है, तब तक प्रमाण पत्र वैध है।

    अधिनियम की धारा 5(1) के आधार पर MTP उचित

    याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप लगाया गया कि उसने पीड़िता पर अवैध रूप से MTP किया जबकि उसे पता था कि पीड़िता की प्रेग्नेंसी उम्र 17.2 सप्ताह है।

    अस्पताल के पास केवल 16 सप्ताह तक की गर्भावस्था में MTP करने का अधिकार था। प्रसूति सोनोग्राफी रिपोर्ट में पीड़िता की LMP (अंतिम मासिक धर्म अवधि) 25.12.2020 दर्ज की गई। LMP से गिनती करते हुए MTP 16 सप्ताह के भीतर किया गया। हालांकि, सोनोग्राफी रिपोर्ट के अनुसार अनुमानित गर्भावधि उम्र 15.3 सप्ताह और औसत गर्भावधि उम्र 17.2 सप्ताह दिखाई गई।

    अधिनियम की धारा 3 और 4 में प्रक्रिया का विवरण दिया गया और बताया गया कि MTP कानूनी रूप से कहां किया जा सकता है। हालांकि धारा 5(1) में कहा गया कि गर्भावस्था की अवधि से संबंधित ये मानदंड और कम से कम दो रजिस्टर्ड डॉक्टर की राय तब आवश्यक नहीं होगी, जब रजिस्टर्ड डॉक्टर सद्भावपूर्वक यह राय रखता हो कि प्रेग्नेंट महिला के जीवन को बचाने के लिए ऐसी प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करना आवश्यक है। इस मामले में, एक अन्य डॉक्टर ने मेडिकल राय दी कि पीड़िता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान से बचाने के लिए MTP आवश्यक है।

    न्यायालय ने माना कि हालांकि डॉक्टर ने यह नहीं कहा कि पीड़िता के जीवन को बचाने के लिए तत्काल MTP आवश्यक है और गर्भावधि उम्र के बारे में अलग-अलग अनुमान थे लेकिन धारा 5(1) के तहत MTP उचित है, खासकर यह देखते हुए कि इसे पुलिस को सूचित करने के बाद किया गया। इसलिए न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 5(3) के तहत अपराध भी नहीं बनता। न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि गर्भावधि उम्र की गणना करने की सामान्य विधि LMP से दिनों की गिनती करना है।

    तदनुसार याचिका की अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: डॉ. हफ़ीज़ रहमान पी.ए. बनाम केरल राज्य और अन्य

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