मध्यस्थता के दौरान समझौता होने के बाद पत्नी तलाक के लिए एकतरफा सहमति वापस नहीं ले सकती: केरल हाइकोर्ट

Amir Ahmad

16 March 2024 6:41 AM GMT

  • मध्यस्थता के दौरान समझौता होने के बाद पत्नी तलाक के लिए एकतरफा सहमति वापस नहीं ले सकती: केरल हाइकोर्ट

    केरल हाइकोर्ट ने तलाक के लिए दायर संयुक्त याचिका में दोनों पक्षकारों के बीच विवाह से अलग करने के फैमिली कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला बरकरार रखा भले ही पत्नी ने तलाक दाखिल करने के लिए अपनी सहमति वापस ले ली।

    जस्टिस अनु शिवरामन और जस्टिस सी प्रतीप कुमार की खंडपीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने बेनी बनाम मिनी (2021) के फैसले और प्रकाश अलुमल कलंदरी बनाम जाहन्वी प्रकाश कलंदरी (2011) में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए विवाह को भंग कर दिया। न्यायालय ने कहा कि एक पक्षकार दूसरे पक्षकार द्वारा समझौते की शर्तों का पालन करने के बाद मध्यस्थता समझौते के माध्यम से दर्ज की गई निपटान की शर्तों से एकतरफा रूप से पीछे नहीं हट सकता।

    अपीलकर्ता द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा,

    “दोनों पक्षकारों के बीच विभिन्न अदालतों में कई मुकदमे लंबित हैं, जिनमें तलाक, बच्चे की कस्टडी और पैतृक संपत्ति के लिए याचिका शामिल है। उन सभी मामलों को मध्यस्थता में सुलझाया गया और दोनों पक्ष आपसी सहमति से अपनी शादी तोड़ने पर सहमत हुए। तदनुसार, पक्षकार ने तलाक के लिए संयुक्त याचिका दायर की आंशिक भुगतान प्राप्त किया लंबित मामलों का निपटारा किया। उसके बाद अंतिम चरण में जब मामले को पक्षकार की सहमति दर्ज करने के लिए साक्ष्य के लिए लिया गया तो अपीलकर्ता ने अपनी सहमति वापस ले ली।

    मामले की पृष्ठभूमि

    यहां अपीलकर्ता प्रतिवादी की पत्नी थी। जिन पक्षकारों की 2014 में शादी हुई थी, वे 2018 से अलग-अलग रह रहे हैं। उनके बीच विभिन्न अदालतों में कई मुकदमे चल रहे हैं। पक्षकारों के बीच सभी विवादों को 2022 में समझौते की शर्तों को शामिल करते हुए मध्यस्थता समझौते में प्रवेश करके हल किया गया। समझौते की शर्तों के अनुसार- प्रतिवादी अपीलकर्ता को सोलह लाख रुपये का भुगतान करने के लिए सहमत हुआ, बच्चे की स्थायी कस्टडी अपीलकर्ता को दी गई और दोनों पक्ष आपसी सहमति से अपनी शादी तोड़ने पर सहमत हो गए।

    उन्होंने तलाक के लिए आपसी याचिका दायर की, लेकिन अपीलकर्ता ने तलाक के लिए अपनी सहमति वापस ले ली। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि मध्यस्थता समझौता उसकी स्वतंत्र इच्छा और सहमति के बिना निष्पादित किया गया। वह प्रतिवादी के साथ अपनी शादी को खत्म करने के लिए तैयार नहीं है। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि उसने मध्यस्थता समझौते के अनुसार निपटान राशि का आंशिक भुगतान पहले ही कर दिया। बेनी बनाम मिनी (2021) पर भरोसा करते हुए फैमिली कोर्ट ने शादी को खत्म करने का फैसला सुनाया।

    इससे व्यथित होकर अपीलकर्ता ने प्रतिवादी के साथ अपनी शादी को समाप्त करने के फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को चुनौती देते हुए हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    अपीलकर्ता ने जयराज आर. बनाम काया जी. नायर (2023) पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि डिक्री पारित होने से पहले पक्षकार किसी भी समय तलाक के लिए अपनी सहमति वापस ले सकती हैं।

    प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि पक्षकार द्वारा पारस्परिक रूप से समझौते की शर्तों को शामिल करते हुए मध्यस्थता समझौता करने के बाद अपीलकर्ता द्वारा अपनी सहमति वापस लेना उचित नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    "फैमिली कोर्ट ने बेनी (सुप्रा) और प्रकाश (सुप्रा) के फैसले पर भरोसा करते हुए तलाक को मंजूरी दे दी। इसमें कहा गया फैमिली कोर्ट ने माना कि समझौते के ज्ञापन में शर्तों का पालन करने के बाद दूसरे पक्ष द्वारा एकतरफा वापसी कठोर प्रथा है, जिसे एक पल के लिए भी अनुमति या बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। यह विश्वास को चकनाचूर कर देगा। न्याय वितरण प्रणाली में वादी वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र का मजाक उड़ाते हैं।''

    मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि पक्ष बेनी (सुप्रा) और प्रकाश (सुप्रा) के फैसले के दायरे में आते हैं। इस प्रकार इसमें कहा गया कि अपीलकर्ता द्वारा सहमति वापस लेने के बावजूद फैमिली कोर्ट द्वारा विवाह को खत्म करना उचित है।

    तदनुसार न्यायालय ने अपील खारिज कर दी।

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