केरल हाइकोर्ट ने ED को CMRL अधिकारियों से पूछताछ के सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया

Amir Ahmad

8 Jun 2024 12:41 PM IST

  • केरल हाइकोर्ट ने ED को CMRL अधिकारियों से पूछताछ के सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया

    केरल हाइकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कोचीन मिनरल्स एंड रूटाइल लिमिटेड (CMRL) के अधिकारियों से पूछताछ के सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया, जिन्हें ED ने तलब किया था।

    यह आरोप लगाया गया कि CMRL ने धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (PMLA Act) के तहत जांच के लिए संज्ञेय अपराध किए। इसके अधिकारियों को समन जारी किया गया। ED का आरोप है कि CMRL सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी होने के नाते ED जांच के लिए कुछ व्यक्तियों के लाभ के लिए 1.72 करोड़ रुपये के फर्जी फंड बनाने में शामिल थी।

    CMRL के अधिकारियों द्वारा याचिका दायर की गई। सीनियर प्रबंधक एन सी चंद्रशेखरन, सीनियर अधिकारी अंजू राचेल कुरुविला, मुख्य वित्तीय अधिकारी के एस सुरेश कुमार और प्रबंध निदेशक एस एन शशिधरन कार्था को प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ECIR) के आधार पर ED द्वारा शुरू की गई कार्यवाही रद्द करने के लिए याचिका दायर की गई। अधिकारियों के खिलाफ जारी समन पर रोक लगाने सहित कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग करते हुए याचिका भी दायर की गई।

    CMRL रिश्वतखोरी और मनी लॉन्ड्रिंग के कई आरोपों में शामिल था। यह आरोप लगाया गया कि CMRL ने मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की बेटी वीना थाईकांडियिल (वीना विजयन) और उनकी कंपनी एक्सालॉजिक सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के साथ-साथ अन्य लोक सेवकों को रिश्वत दी है और अवैध वित्तीय लेनदेन किए हैं।

    जस्टिस टी आर रवि ने इस प्रकार निर्देश दिया,

    “आरोप है कि याचिकाकर्ताओं को प्रतिवादियों द्वारा देश के कानून द्वारा अनुमत समय से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया था। इसलिए पूछताछ के सीसीटीवी फुटेज को संरक्षित और बनाए रखने के लिए अंतरिम निर्देश दिया जाएगा। यह आदेश केवल यह सुनिश्चित करने के लिए जारी किया गया कि इस न्यायालय के समक्ष सुनवाई में देरी के कारण मामला लंबित न रहे। इस आदेश को तर्क के गुण-दोष के आधार पर आदेश नहीं समझा जाएगा।"

    यह आदेश इसलिए पारित किया गया, क्योंकि आरोप था कि ED द्वारा 14 और 15 अप्रैल, 2024 को बुलाए गए याचिकाकर्ताओं को हिरासत में लिया गया और आवश्यकता से अधिक समय तक हिरासत में पूछताछ की गई।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा पेश हुए और संविधान के अनुच्छेद 22 के उल्लंघन का आरोप लगाया। प्रार्थना की कि जब तक कार्यवाही न्यायालय के समक्ष लंबित है उन्हें पूछताछ के लिए नहीं बुलाया जाना चाहिए।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि सीसीटीवी फुटेज को संरक्षित किया जाना चाहिए, जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि याचिकाकर्ताओं को आवश्यकता से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया था या नहीं। उनसे पूछताछ की गई या नहीं। यह भी प्रस्तुत किया गया कि ED जांच नहीं कर सकता, क्योंकि पुलिस ने अनुसूचित अपराध दर्ज नहीं किया।

    ED की ओर से पेश हुए विशेष वकील एडवोकेट जोहेद हुसैन ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि अगली पोस्टिंग तिथि तक अधिकारियों को जांच के लिए नहीं बुलाया जाएगा। न्यायालय ने इस प्रस्तुति को दर्ज किया।

    ED के वकील ने प्रस्तुत किया कि PMLA के तहत जांच को रोका नहीं जा सकता और याचिका समय से पहले और सुनवाई योग्य नहीं है। यह कहा गया कि एफआईआर के विपरीत ECIR ED का आंतरिक दस्तावेज है। इसे सीआरपीसी की धारा 482 के तहत रद्द नहीं किया जा सकता। यह भी कहा गया कि ED केवल समन जारी करके प्रारंभिक जांच कर रहा था और समन किए गए व्यक्ति को समन रद्द करने की मांग करने के लिए 'पीड़ित व्यक्ति' भी नहीं कहा जा सकता। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता इस स्तर पर मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप नहीं लगा सकते।

    इसके अलावा यह तर्क दिया गया कि ED बिना एफआईआर के भी जांच कर सकता है, जब प्रथम दृष्टया मामला हो। यह कहा गया कि अनुसूचित अपराध के संबंध में पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज न करना ED को PMLA के तहत जांच करने से नहीं रोकेगा, यदि उन्होंने अधिकार क्षेत्र वाली पुलिस को सूचना भेजी। यह प्रस्तुत किया गया कि ED ने PMLA की धारा 66(2) के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए केरल पुलिस को सूचना भेजी और पुलिस कोई कार्रवाई करने में विफल रही।

    यह कहा गया कि यदि क्षेत्राधिकार वाली पुलिस (यहां, केरल पुलिस) एफआईआर दर्ज करने या उचित कार्रवाई करने में विफल रहती है तो ED कानून के तहत उचित उपायों का सहारा ले सकता है, जैसे साक्ष्य दर्ज करना और संपत्ति कुर्क करना।

    विजय मंडनलाल चौधरी बनाम भारत संघ (2022) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए यह तर्क दिया गया,

    “2002 के अधिनियम द्वारा परिकल्पित विशेष सिस्टम के मद्देनजर, ECIR को 1973 की संहिता के तहत एफआईआर के बराबर नहीं माना जा सकता। ECIR, ED का आंतरिक दस्तावेज है। यह तथ्य कि अनुसूचित अपराध के संबंध में एफआईआर दर्ज नहीं की गई, धारा 48 में संदर्भित अधिकारियों द्वारा अपराध की आय के रूप में संपत्ति की अनंतिम कुर्की की सिविल कार्रवाई शुरू करने के लिए जांच/जांच शुरू करने के रास्ते में नहीं आता है।”

    इसके अलावा, ED के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता आयकर अधिनियम की धारा 245एच के तहत छूट की मांग नहीं कर सकते। धारा 245एच निपटान आयोग की अभियोजन और दंड से छूट देने की शक्ति से संबंधित है। यह तर्क दिया गया कि आयकर अधिनियम के तहत निपटान आयोग पीएमएलए, आईपीसी या अन्य केंद्रीय कानूनों के तहत अभियोजन से छूट नहीं दे सकता। यदि ऐसा आवेदन 01 जून, 2007 को या उसके बाद किया गया हो। यह कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने निपटान आयोग के समक्ष वर्ष 2020 में ही आवेदन किया।

    मामले की अगली सुनवाई 21 जून, 2024 को निर्धारित की गई।

    केस टाइटल- कोचीन मिनरल्स एंड रूटाइल लिमिटेड बनाम प्रवर्तन निदेशालय

    Next Story