आईपीसी की धारा 304बी के तहत दहेज हत्या के अपराध से बरी हुए पति को तथ्यों के आधार पर धारा 498ए के तहत वैवाहिक क्रूरता का दोषी ठहराया जा सकता है: केरल हाईकोर्ट
Shahadat
13 Jun 2024 12:01 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने माना कि सिर्फ इसलिए कि किसी व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304बी के तहत दहेज हत्या का आरोप लगाया गया और उसे बरी कर दिया गया, इसका मतलब यह नहीं है कि उसे वैवाहिक क्रूरता के लिए अधिनियम की धारा 498-ए के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
जस्टिस जॉनसन जॉन ने सेशन जज के निर्णय के खिलाफ आपराधिक अपील पर निर्णय लेते हुए उक्त फैसला दिया। सेशन जज ने अपने फैसले में अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 498ए के तहत दोषी पाया था। सेशन कोर्ट ने आरोपी को धारा 304बी के तहत दोषी नहीं पाया और धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी पाया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी ने शादी के 5 महीने बाद अपनी पत्नी से दहेज मांगना शुरू कर दिया। इसके लिए उसे पीटता था। वह पत्नी के माता-पिता द्वारा दिए गए कम दहेज पर राजी नहीं हुआ। इसके बाद झगड़ा हुआ और आरोपी ने उसे पीटा। उसने फॉर्मिक एसिड पी लिया। उसने अपने माता-पिता को बताया कि जब वे उसे अस्पताल में देख रहे थे, जहां उसे इलाज के लिए भर्ती कराया गया तो उसके साथ क्या हुआ था। इलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मौत हो गई।
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि आरोप सही नहीं है, क्योंकि आरोपी और मृतक के बीच विवाह वैध नहीं था। अपीलकर्ता मुस्लिम है और मृतक हिंदू थी। उन्होंने सब रजिस्ट्री ऑफिस में अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराया और मालाओं का आदान-प्रदान हुआ।
ट्रायल कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता मुसलमान है और मुसलमान पुरुष और हिंदू महिला के बीच विवाह अमान्य नहीं है, बल्कि सुन्नी कानून के अनुसार अनियमित है। चूंकि याचिकाकर्ता के शिया समुदाय से होने का कोई तर्क नहीं है, इसलिए विवाह को अमान्य नहीं माना जा सकता।
हाईकोर्ट ने इस दृष्टिकोण को सही पाया। इसके अलावा, न्यायालय ने रीमा अग्रवाल बनाम अनुपम और ए. सुभाष बाबू बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि 498-ए तब लागू होगा, जब पक्षकारों के बीच वैवाहिक संबंध होगा। विवाह की कानूनी वैधता मायने नहीं रखती।
मृतका को 16/02/2002 को अस्पताल में भर्ती कराया गया और 29/05/2002 को उसकी मृत्यु हो गई। मृतका के सौतेले पिता ने 29/05/2002 को एफआईआर दर्ज कराई। अपीलकर्ता ने आरोप लगाया कि एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई। आरोप उसकी मृत्यु के बाद ही लगाया गया। उनकी मृत्यु तक कोई शिकायत नहीं थी और इसलिए उनके साक्ष्य पर भरोसा नहीं किया जा सकता। मृतका के सौतेले पिता और मां ने साक्ष्य दिया कि मृतका का गहन उपचार चल रहा था और उनकी मदद करने वाला कोई और नहीं था।
न्यायालय ने इसे देरी के लिए स्पष्टीकरण के रूप में स्वीकार किया। अपीलकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि उत्पीड़न केवल 498 ए के अंतर्गत नहीं आता है। केवल तभी जब उत्पीड़न किसी महिला या उसके किसी अन्य संबंधित व्यक्ति को दहेज की अवैध मांग को पूरा करने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से किया जाता है तो यह धारा 498 ए के तहत क्रूरता के अंतर्गत आएगा। यहां कोई सबूत नहीं है कि मृतका को उसकी मृत्यु से ठीक पहले क्रूरता का सामना करना पड़ा था।
न्यायालय ने माना कि मृतका के सौतेले पिता और मां की ओर से दहेज की मांग और उसके बाद उसके साथ हुई क्रूरता के बारे में सबूत हैं। उसके साथ मारपीट की गई और उसे घर से निकाल दिया गया। उसे यह भी बताया गया कि उसे वहां तभी रहने दिया जाएगा, जब वह अपीलकर्ता द्वारा की गई दहेज की मांग को पूरा करेगी।
न्यायालय ने कलियापेरुमल बनाम तमिलनाडु राज्य का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि क्रूरता अपने आप में धारा 498ए के तहत अपराध है। इसे धारा 304बी से अलग किया गया है, जहां मृत्यु एक आवश्यक तत्व है।
इसलिए न्यायालय ने यह जरूरी नहीं समझा कि यह साबित किया जाना चाहिए कि उसकी मृत्यु से ठीक पहले क्रूरता हुई थी। यह साबित हो जाना ही काफी है कि मृतका के साथ क्रूरता की गई थी।
अपील खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: एन. अंसारी बनाम केरल राज्य