X कॉर्प 'नागरिक केंद्रित' अनुच्छेद 19 का हवाला देकर सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाले भारतीय कानूनों को चुनौती नहीं दे सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

Shahadat

28 Sept 2025 6:22 PM IST

  • X कॉर्प नागरिक केंद्रित अनुच्छेद 19 का हवाला देकर सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाले भारतीय कानूनों को चुनौती नहीं दे सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि X कॉर्प, जिसे पहले ट्विटर कहा जाता था, एक विदेशी संस्था होने के नाते भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 का हवाला देकर सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाले भारतीय कानूनों को चुनौती नहीं दे सकता।

    जस्टिस एम. नागप्रसना ने कहा कि भारत में ऐसी कंपनी जिसका कोई चेहरा नहीं है, वह "निराधार आरोपों" के आधार पर आगे आकर देश के कानूनों को चुनौती नहीं दे सकती।

    अदालत ने कहा,

    "इसी तरह X कॉर्प देश में चेहराविहीन है और एक मध्यस्थ के रूप में काम कर रहा है, अनुच्छेद 19 के तहत देश के किसी भी कानून को चुनौती नहीं दे सकता। उसकी उपस्थिति वहां नहीं है। वह सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाले कानूनों को चुनौती नहीं दे सकता। अगर वह देश में काम करना चाहता है तो उसे कानूनों का पालन करना होगा, बस इतना ही।"

    जज ने यह टिप्पणी X कॉर्प की याचिका खारिज करते हुए की, जिसमें यह घोषित करने की मांग की गई थी कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 79(3)(बी) केंद्र सरकार के अधिकारियों को सूचना अवरोधन आदेश जारी करने का अधिकार नहीं देती है, जो केवल अधिनियम की धारा 69ए के तहत प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही जारी किए जा सकते हैं, जिसे IT नियमों के साथ पढ़ा जाए।

    अपने फैसले में अदालत ने कहा कि X कॉर्प किसी भी भारतीय कानून के तहत निगमित कंपनी नहीं है और न ही इसका यहां कोई चेहरा है। इसने आगे कहा कि X कॉर्प "चेहराविहीन कंपनी" है, जिसका भारत में कहीं भी कानूनी रूप से स्थापित कार्यालय भी नहीं है।

    अदालत ने कहा,

    "संविधान का अनुच्छेद 19 निस्संदेह केवल नागरिकों को ही अपना सुरक्षात्मक आवरण प्रदान करता है। अनुच्छेद 19 के तहत प्राप्त मौलिक अधिकार नागरिक केंद्रित हैं, व्यक्ति केंद्रित नहीं। याचिकाकर्ता एक व्यक्ति भी नहीं है, वह एक कंपनी है। याचिकाकर्ता एक कंपनी होने के नाते पहली नज़र में यह दावा नहीं कर सकता कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।"

    इस मुद्दे पर विभिन्न स्थापित निर्णयों का हवाला देते हुए जज ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपलब्ध होंगे, क्योंकि वे केवल देश के नागरिकों तक ही सीमित नहीं हैं। हालांकि, अनुच्छेद 19 केवल भारत के नागरिकों तक ही सीमित है। उन्होंने आगे कहा कि अनुच्छेद 14 और 21 का हवाला देकर कोई विदेशी अनुच्छेद 19 के तहत अधिकारों की मांग नहीं कर सकता।

    आगे कहा गया,

    “याचिकाकर्ता (X कॉर्प) यह दावा करता है कि उसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत इस अदालत के समक्ष लाए गए सभी मामलों को चुनौती देने का अधिकार है। मुद्दा नंबर 7 का उत्तर देते हुए इस चुनौती को खारिज किया जाता है। अन्यथा भी, अनुच्छेद 14 के तहत कोई विदेशी कंपनी ऐसी चुनौती नहीं दे सकती, जिससे अनुच्छेद 19 की व्याख्या हो, या संविधान के अनुच्छेद 19 से भी समर्थन प्राप्त हो। यही वह बात है, जो याचिकाकर्ता मांगना चाहता है, अनुच्छेद 14 का सहारा लेकर उन अधिकारों को लेना चाहता है, जो अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत नागरिकों को उपलब्ध नहीं हैं, भले ही अनुच्छेद 19(2) की कठोरता हो।"

    इसके अलावा, अदालत ने कहा कि X कॉर्प को IT Act, 2000 के तहत मध्यस्थ का दर्जा प्राप्त है और इससे आगे कुछ भी नहीं। अदालत ने कहा कि कंपनी न तो भारत की नागरिक है और न ही एक प्राकृतिक व्यक्ति जिसे अनुच्छेद 19 के तहत मुकदमा करने की अनुमति दी जा सकती है।

    अदालत ने कहा,

    "देश के प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 19 के तहत अधिकार प्रदान किए गए। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया, याचिकाकर्ता एक मात्र कृत्रिम न्यायिक इकाई है। इसलिए भारतीय कानून के तहत किसी प्रावधान या क़ानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने की अनुमति नहीं दी जा सकती, विशेष रूप से अनुच्छेद 19 के तहत गारंटीकृत अधिकार के उल्लंघन की आड़ में।"

    अपनी याचिका में X कॉर्प ने भारत संघ के विभिन्न मंत्रालयों को IT Act की धारा 69ए के अनुसार जारी किए गए 'सूचना अवरोधन आदेशों' के अलावा जारी किए गए किसी भी 'सूचना अवरोधन आदेशों' के संबंध में X के विरुद्ध बलपूर्वक या पूर्वाग्रहपूर्ण कार्रवाई न करने का निर्देश देने की मांग की।

    इसने अपनी याचिका के अंतिम निर्णय तक सेंसरशिप पोर्टल 'सहयोग' से न जुड़ने पर कंपनी, उसके प्रतिनिधियों या कर्मचारियों के विरुद्ध किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा की भी मांग की थी।

    'सहयोग' पोर्टल, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79(3)(बी) के तहत मध्यस्थों को हटाने संबंधी नोटिस भेजने की प्रक्रिया को स्वचालित करने के लिए विकसित किया गया ताकि किसी भी गैरकानूनी कार्य को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल की जा रही किसी भी जानकारी, डेटा या संचार लिंक को हटाया या अक्षम किया जा सके।

    X ने तर्क दिया था कि सोशल मीडिया मध्यस्थों को उपयोगकर्ताओं की सामग्री की जांच करने और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79(3)(बी) के तहत 'गैरकानूनी' पाए जाने पर उसे हटाने के लिए बाध्य करना, श्रेया सिंघल मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के विरुद्ध है। यह प्रस्तुत किया गया कि सरकार ने श्रेया सिंघल मामले में धारा 79 को कभी भी सशक्त बनाने वाली धारा के रूप में नहीं बताया। इस प्रकार, एक छूट प्रावधान शक्ति का स्रोत नहीं बन सकता।

    इस बीच केंद्र सरकार ने कहा कि अवैधता या गैरकानूनी सामग्री को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समान संवैधानिक सुरक्षा नहीं मिल सकती। बिचौलियों को सेफ हार्बर की सुरक्षा के संबंध में केंद्र ने कहा कि सेफ हार्बर हमेशा एक सशर्त सुरक्षा होती है, जो तभी उपलब्ध होती है जब किसी भी मध्यस्थ द्वारा उचित सावधानी बरती जाती है।

    केंद्र ने आगे तर्क दिया कि "चिलिंग इफेक्ट" ऐसी सामग्री प्रसारित करने का बचाव नहीं है, जो 'समाज के हित में नहीं' है। दूसरा, X अपने उपयोगकर्ताओं की ओर से चिलिंग इफेक्ट का दावा नहीं कर सकता। यह तर्क दिया गया कि सहयोग पोर्टल सरकार के किसी अधिकृत अधिकारी को किसी भी गैरकानूनी सामग्री के संबंध में मध्यस्थ को नोटिस भेजने का अधिकार देता है और यह मध्यस्थ के हित में एक प्रशासनिक प्रक्रिया है।

    Case Title: X CORP AND Union of India & Others

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