पुलिस रिपोर्ट का हिस्सा बनने वाले गवाहों के बयानों को रद्द करने की याचिका पर फैसला लेने के लिए देखा जा सकता है: बीएस येदुरप्पा ने कर्नाटक हाईकोर्ट से POCSO मामले में कहा
Shahadat
20 Dec 2024 10:11 AM IST
पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने गुरुवार (19 दिसंबर) को कर्नाटक हाईकोर्ट से कहा कि जांच के दौरान एकत्र किए गए गवाहों के बयान, जो पुलिस रिपोर्ट का हिस्सा बनते हैं, उनको हाईकोर्ट अपराध रद्द करने की याचिका पर फैसला लेने के लिए देख सकता है।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना पूर्व सीएम की उस याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें उन्होंने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत उनके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की। कुछ समय तक मामले की सुनवाई करने के बाद कोर्ट ने इसे 7 जनवरी, 2025 को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और तब तक अंतरिम आदेश का संचालन जारी रखा।
हाईकोर्ट ने गुरुवार शाम करीब 5.03 बजे याचिका पर सुनवाई शुरू की। सीनियर एडवोकेट सी.वी. नागेश ने बुधवार को न्यायालय द्वारा पूछे गए इस प्रश्न पर अपनी दलीलें पेश कीं कि क्या कार्यवाही रद्द करने के लिए गवाहों के बयानों पर भरोसा किया जा सकता है या फिर उन्हें मुकदमे में परखा जाना चाहिए। नागेश ने अपनी दलीलों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 (2) का हवाला दिया और कहा कि जांच बिना देरी के की जानी चाहिए और धारा 2 (आर) के तहत परिभाषित पुलिस रिपोर्ट के आधार पर मजिस्ट्रेट संज्ञान लेता है।
उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में गवाहों के बयान शामिल हैं। उन्होंने कहा कि संज्ञान लेने के उद्देश्य से मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट पर विचार करने के लिए बाध्य है। उन्होंने कहा कि धारा 161 और 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयान पुलिस रिपोर्ट का हिस्सा बनेंगे।
उन्होंने कहा,
"मुक्ति का लाभ लेने या आरोप तय करने के आदेश की मांग करने के लिए मजिस्ट्रेट को पुलिस रिपोर्ट पर विचार करना होगा।"
इसके बाद उन्होंने कहा,
"यदि मजिस्ट्रेट/सेशन कोर्ट को इस पर गौर करने का अधिकार है तो क्या हम यह तर्क दे सकते हैं कि यह माननीय न्यायालय धारा 482 के तहत दायर याचिका खारिज करने का फैसला करते समय धारा 161 के तहत दर्ज गवाहों के बयानों सहित पुलिस रिपोर्ट पर गौर नहीं कर सकता।"
अदालत ने बुधवार को प्रथम दृष्टया यह राय व्यक्त की थी कि धारा 161 CrPC (जांच अधिकारी के समक्ष) के तहत दर्ज गवाहों के बयानों के आधार पर येदियुरप्पा के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही रद्द करना उसके लिए संभव नहीं है, जिन्होंने कथित घटना के बारे में पीड़िता के विपरीत राय दी है।
नागेश ने कहा,
"धारा 2 (आर) और 173 (2) CrPC के प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के संयुक्त अध्ययन से संकेत मिलता है कि गवाहों के बयान और वे बयान चाहे धारा 161 या 164 के तहत दर्ज किए गए हों, वे आईओ द्वारा रिकॉर्ड और राय का हिस्सा बनेंगे। उस राय को परखा जाता है। माननीय जज एकत्रित साक्ष्यों के आधार पर जांच करेंगे कि वह राय सही है या गलत। इसलिए मुझे मामला रद्द करने के लिए एकत्र किए गए साक्ष्यों की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है।
शाम करीब 5.40 बजे अदालत ने पूछा कि क्या पक्ष मामले की सुनवाई जारी रखने के लिए सहमति दे सकते हैं।
अदालत ने मौखिक रूप से कहा,
"अगर हमें सभी पक्षों की सहमति मिलती है तो हम जारी रखेंगे। अगर सुनवाई शाम 6.30 बजे तक चलती है तो मुझे कोई समस्या नहीं है। यह नहीं कहा जाना चाहिए कि अनुचित रुचि दिखाई गई।"
इस पर नागेश ने कहा,
"इसमें बहुत समय लगता है, माननीयों ने एक गंभीर मुद्दा उठाया है, कल मैंने अचानक रोक दिया था।"
इसके बाद पीठ ने मौखिक रूप से कहा,
"मुझे रात 9 बजे तक बैठने में कोई समस्या नहीं है। कल यह नहीं कहा जाना चाहिए कि अदालत के समय से परे इस मामले में अनुचित रुचि दिखाई गई।"
इसके बाद अदालत ने अपने आदेश में दर्ज किया,
"मामले की कल और आज विस्तार से सुनवाई हुई। सीनियर एडवोकेट सी वी नागेश ने कहा कि उन्हें 60 मिनट और चाहिए। एडवोकेट एस बालन ने भी कहा कि उन्हें एक घंटे का समय चाहिए। एसपीपी को भी नागेश के तर्क का खंडन करने के लिए 60 मिनट चाहिए। मामले की व्यापक सुनवाई के मद्देनजर अगली सुनवाई की तारीख (7 जनवरी, 2025) तक अंतरिम आदेश जारी रहेगा।"
केस टाइटल: बी एस येदियुरप्पा और आपराधिक जांच विभाग