वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 23 | बुढ़ापे में बेटे ने भौतिक जरूरतों को पूरा करने से इनकार किया, कर्नाटक हाईकोर्ट ने मां को गिफ्ट डीड रद्द करने की अनुमति दी
LiveLaw News Network
22 Aug 2024 2:52 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि जब माता-पिता उपहार के रूप में संपत्ति हस्तांतरित करते हैं तो यह उचित अपेक्षा होती है कि उनकी संतानें उनके बुढ़ापे में उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखेंगी, जैसा कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम की धारा 23 के तहत दायर आवेदन में की गई दलीलों से यह अनुमान लगाया जा सकता है, भले ही गिफ्ट डीड में ऐसा उल्लेख न किया गया हो।
धारा 23 कुछ परिस्थितियों में संपत्ति के हस्तांतरण को निरस्त (void) करने से संबंधित है।
जस्टिस सूरज गोविंदराज की एकल न्यायाधीश पीठ ने सहायक आयुक्त की ओर से पारित एक आदेश को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। सहायक आयुक्त ने अपने आदेश में शोभा नामक एक महिला की ओर से अपने बेटे डॉ अनिल पी कुमार के पक्ष में निष्पादित गिफ्ट डीड को निरस्त करने की मांग संबंधित आवेदन को खारिज कर दिया था। महिला ने आरोप लगाया था कि बेटे ने महिला और उसके पति की भलाई को सुनिश्चित करने में अरुचि दिखाई थी और बुढ़ापे के दौरान बुनियादी सुविधाएं और शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया था।
अदालत ने गिफ्ट डीड को शून्य घोषित कर दिया और बेटे को गिफ्ट डीड में शामिल संपत्ति को साठ दिनों के भीतर मां को सौंपने का निर्देश दिया। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता और उसके पति ने अपने बेटे के प्रति प्रेम और स्नेह के कारण उसकी पढ़ाई के दौरान उसका भरण-पोषण किया, उसकी शिक्षा के दौरान उसका सहयोग किया और सभी शैक्षणिक खर्चों का भुगतान किया। शिक्षा पूरी करने के बाद, जब बेटे ने रायचूर में नर्सिंग होम खोलने की इच्छा व्यक्त की तो याचिकाकर्ता ने उसके नाम पर सभी अनुमतियां प्राप्त करके निर्माण को आसान बनाने के लिए एक गिफ्ट डीड के तहत अपनी संपत्ति हस्तांतरित कर दी।
याचिका के पैराग्राफ 6 में प्रस्तुत किया गया था कि बेटे ने वादा किया था कि वह अपनी मां को बुनियादी सुविधाएं और भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करेगा और इस प्रकार गिफ्ट डीड निष्पादित किया गया था।
यह कहते हुए कि बेटे की ओर से पेश किए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले वर्तमान मामले पर लागू नहीं होंगे, न्यायालय ने कहा, "माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा है कि बुनियादी सुविधाएं और बुनियादी शारीरिक आवश्यकताएं प्रदान करने की शर्त को गिफ्ट डीड और रिलीज डीड में शामिल किया जाना है, लेकिन उस मामले में जो माना गया है वह यह है कि दलीलों में अधिनियम की धारा 23 के तहत दायर आवेदन में दानकर्ता या रिलीज किए गए व्यक्ति की ओर से किए गए किसी भी दायित्व का संकेत नहीं दिया गया है।"
फिर उन्होंने कहा, "यह तर्क कि गिफ्ट डीड में कोई दायित्व नहीं लगाया गया है और इसलिए अधिनियम की धारा 23 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, उक्त निर्णय द्वारा समर्थित नहीं है।"
यह देखते हुए कि कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान पिता की मृत्यु हो गई थी, अदालत ने कहा, "मैं बेटे के इस रुख का समर्थन करने में असमर्थ हूं कि बेटे की ओर से अपनी मां की वृद्धावस्था के दौरान देखभाल करने का कोई दायित्व नहीं है, केवल इसलिए कि गिफ्ट डीड में ऐसा कोई दायित्व नहीं लगाया गया है।"
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 23 के तहत याचिका दायर करने वाले आवेदन की आयु को आवेदन की तिथि पर विचार करना होगा, इसलिए जब तक आवेदक उस दिन वरिष्ठ नागरिक होने की आवश्यकता को पूरा करता है, वही पर्याप्त होगा और यह आवश्यक नहीं है कि जिस दिन उपहार या रिलीज निष्पादित किया जाता है, उस दिन दाता या रिलीजर वरिष्ठ नागरिक हो।
इन्हीं टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने याचिका को अनुमति दी।
साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (कर) 374
केस टाइटल: शोभा और डॉ अनिल पी कुमार
केस नंबर: रिट पीटिशन नंबर 202832 ऑफ 2019