पत्नी ने संतान प्राप्ति के अधिकार से वंचित होने का किया दावा, हाईकोर्ट ने दोषी को पैरोल पर रिहा किया

Shahadat

6 Jun 2024 6:42 AM GMT

  • पत्नी ने संतान प्राप्ति के अधिकार से वंचित होने का किया दावा, हाईकोर्ट ने दोषी को पैरोल पर रिहा किया

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा दायर याचिका स्वीकार की। उक्त याचिका में उसने अपने पति के लिए पैरोल की मांग की थी, जो आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। इस याचिका में आरोप लगाया गया कि उसे संतान प्राप्ति के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।

    जस्टिस एस आर कृष्ण कुमार की एकल पीठ ने महिला की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार की और दोषी को 30 दिनों की अवधि के लिए सामान्य पैरोल दी, जो 05.06.2024 से 04.07.2024 तक लागू रहेगी।

    पति को वर्ष 2016 में दर्ज अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302, 201 के साथ धारा 34 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था। दोषी ने पांच साल और एक महीने की कैद की सजा काटी है। उसे इस न्यायालय की समन्वय पीठ द्वारा 05.04.2023 से 20.04.2023 तक 15 दिनों की अवधि के लिए पैरोल दी गई, जिस अवधि के दौरान याचिकाकर्ता ने बंदी से विवाह किया।

    उसकी याचिका में यह तर्क दिया गया कि वह अकेली है और अपनी सास यानी बंदी की मां के साथ रह रही है। वह संतान के अधिकार से वंचित है। उसकी सास विभिन्न बीमारियों से पीड़ित है और वह अपने पोते-पोतियों के साथ कुछ समय बिताना चाहती है, इसलिए याचिकाकर्ता चाहती है कि उसका पति उसके साथ रहे।

    पीठ ने अभिलेखों का अवलोकन करने के बाद कहा,

    "याचिकाकर्ता के पति ने बंदी की मां द्वारा किए गए आवेदन पर पहले ही 15 दिनों की अवधि के लिए पैरोल का लाभ उठाया और अब उसकी पत्नी केवल इस आधार पर पैरोल चाहती है कि उनकी शादी 11.04.2023 (पिछली पैरोल अवधि के दौरान) को हुई थी और वह संतान के अधिकार से वंचित है। इसलिए मैं याचिकाकर्ता के पति को 30 दिनों की अवधि के लिए सामान्य पैरोल प्रदान करना उचित समझता हूं।"

    याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि दोषी को अपने पैरोल की अवधि के दौरान सप्ताह में एक बार अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी और यदि दोषी सामान्य पैरोल की अवधि समाप्त होने के बाद जेल वापस जाने से बचता है तो उसे जेल ले जाना अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस की जिम्मेदारी होगी।

    जेल के मुख्य अधीक्षक सामान्यतः निर्धारित की गई शर्तों के अनुसार कठोर शर्तें निर्धारित करेंगे, जिससे बंदी की जेल में वापसी सुनिश्चित हो सके और यह सुनिश्चित हो सके कि पैरोल की अवधि के दौरान अपराधी कोई अन्य अपराध न करे।

    केस टाइटल: नीता जी और कर्नाटक राज्य और अन्य

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