मस्जिद के अंदर 'जय श्रीराम' का नारा लगाने से धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होतीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
Shahadat
16 Oct 2024 9:39 AM IST
मस्जिद में कथित तौर पर 'जय श्रीराम' के नारे लगाने के लिए आईपीसी की धारा 295ए के तहत आरोपी दो लोगों के खिलाफ मामला खारिज करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि नारे से किसी वर्ग की धार्मिक भावनाएं कैसे आहत होंगी।
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी इस बात पर गौर करने के बाद की कि मामले में शिकायतकर्ता ने खुद कहा कि संबंधित क्षेत्र में हिंदू और मुसलमान सौहार्दपूर्ण तरीके से रह रहे हैं। न्यायालय ने आगे कहा कि चूंकि कथित अपराधों के कोई भी तत्व सामने नहीं आए। इसलिए याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे की कार्यवाही की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। दोनों लोगों पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया, जिनमें धारा 447, 505, 506, 34 और 295ए शामिल हैं।
आईपीसी की धारा 295ए का संज्ञान लेते हुए जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा,
"धारा 295ए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों से संबंधित है, जिसका उद्देश्य किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करना है। यह समझ से परे है कि अगर कोई 'जय श्रीराम' का नारा लगाता है तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावना कैसे आहत होगी। जब शिकायतकर्ता खुद कहता है कि इलाके में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के साथ रह रहे हैं, तो किसी भी तरह से इस घटना का परिणाम एंटीमनी नहीं हो सकता।"
हाई कोर्ट ने महेंद्र सिंह धोनी बनाम येरागुंटला श्यामसुंदर (2017) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कोई भी और हर कृत्य आईपीसी की धारा 295ए के तहत अपराध नहीं बनेगा और जिन कृत्यों का "शांति स्थापित करने या सार्वजनिक व्यवस्था को नष्ट करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता" वे प्रावधान के तहत अपराध नहीं बनेंगे।
धारा 505 के आरोप के संबंध में हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि कथित घटना से सार्वजनिक उपद्रव या कोई दरार पैदा हुई। धारा 506 पर हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायत में ही यह कहा गया कि शिकायतकर्ता ने उस व्यक्ति को नहीं देखा, जिसने कथित तौर पर आईपीसी की धारा 506 के तहत आपराधिक धमकी का अपराध किया।
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि 24 सितंबर, 2023 को रात करीब 10.50 बजे कुछ अज्ञात व्यक्ति मस्जिद में घुस आए और 'जय श्रीराम' के नारे लगाए और कथित तौर पर धमकी दी कि वे समुदाय को नहीं छोड़ेंगे। शिकायत में अज्ञात व्यक्तियों का नाम था, लेकिन जांच करते समय याचिकाकर्ताओं को मामले में आरोपी के रूप में शामिल किया गया।
याचिकाकर्ताओं ने अपराध पंजीकरण रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि आरोपों के लिए आवश्यक कोई भी तत्व मामले में मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि आईपीसी की धारा 447 के तहत अपराध, जो आपराधिक अतिक्रमण से संबंधित है, नहीं बनता है क्योंकि मस्जिद सार्वजनिक स्थान है और इसमें प्रवेश का मतलब आपराधिक अतिक्रमण नहीं हो सकता है।
अभियोजन पक्ष ने यह कहते हुए याचिका खारिज करने की मांग की कि याचिकाकर्ता मस्जिद में प्रवेश नहीं कर सकते और 'जय श्रीराम' का नारा नहीं लगा सकते या मुथवल्ली को धमकी नहीं दे सकते। यह तर्क दिया गया कि मामले में कम से कम जांच की आवश्यकता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायत में कहा गया कि संबंधित पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में "हिंदू और मुसलमान" "बहुत सद्भाव से रह रहे हैं और 'जय श्रीराम' का नारा लगाने वाले ये लोग समुदायों के बीच दरार पैदा कर रहे हैं।" धारा 503 और 447 के तहत कथित अपराधों के संबंध में हाई कोर्ट ने कहा कि शिकायत मामले में दो अपराधों के तत्वों को "दूर से भी छूती नहीं है"।
इसके बाद उसने कहा,
"इस तरह के किसी भी कथित अपराध के तत्व न पाए जाने पर इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे की कार्यवाही की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और न्याय की विफलता होगी।"
याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द की।
केस टाइटल: कीर्तन कुमार और अन्य तथा कर्नाटक राज्य