कर्नाटक हाईकोर्ट ने श्रीरंगपटना में जामिया मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने का दावा करने वाली जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया

Shahadat

29 May 2024 5:30 AM GMT

  • कर्नाटक हाईकोर्ट ने श्रीरंगपटना में जामिया मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने का दावा करने वाली जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), राज्य सरकार और अन्य प्रतिवादियों को जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया। उक्त याचिका में दावा किया गया कि श्रीरंगपटना में स्थित जामिया मस्जिद की वर्तमान संरचना का निर्माण टीपू सुल्तान ने मूडाला बगीलू अंजनेया स्वामी मंदिर के स्थल पर किया था।

    चीफ जस्टिस एन वी अंजारिया और जस्टिस के वी अरविंद की खंडपीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि विचाराधीन संरचना संरक्षित स्मारक है। इसलिए इसे रिट क्षेत्राधिकार में बदलना "बहुत मुश्किल होगा।" फिर भी इसने सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया, जिसका जवाब 11 जुलाई को दिया जाना है।

    यह जनहित याचिका बजरंग सेना नामक संगठन द्वारा दायर की गई। संगठन ने प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार विवादित मूडाला बगीलू अंजनेया स्वामी मंदिर का पुरातत्व अध्ययन, सर्वेक्षण और उत्खनन करने और स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए ASI को निर्देश देने की मांग की।

    कहा गया कि उक्त मंदिर को टीपू सुल्तान ने अवैध रूप से आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया था, जिन्होंने 1786 से 1789 तक अपने निरंकुश शासन के दौरान श्रीरंगपटना की जामिया मस्जिद नामक विवादित संरचना का निर्माण किया था।

    याचिकाकर्ता ने दावा किया कि प्रत्येक भारतीय नागरिक को अपने धर्म का शांतिपूर्वक पालन करने का अवसर है। प्रस्तुत किया कि आक्रमणकारियों द्वारा की गई "ऐतिहासिक भूलों" को सुधारना और सही करना धर्मनिरपेक्ष सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है।

    यह भी दावा किया गया कि याचिकाकर्ता ने आवश्यक जांच की है और उसके पास ऐतिहासिक तथ्य हैं कि कैसे टीपू सुल्तान ने जानबूझकर धार्मिक घृणा के साथ बलपूर्वक भगवान को क्षतिग्रस्त, परिवर्तित और धर्मांतरित किया। वर्ष 1786 से 1789 के दौरान श्रीरंगपटना में अंजनेया मंदिर को एक गैरकानूनी इस्लामिक जामिया मस्जिद में बदल दिया गया।

    दावे के समर्थन में याचिकाकर्ता ने मैसूर पुरातत्व सर्वेक्षण के मैसूर राज्य के दस्तावेज, 1912 की वार्षिक रिपोर्ट खंड IV और मैसूर यूनिवर्सिटी-मैसूर पुरातत्व विभाग की वर्ष 1935 की वार्षिक रिपोर्ट पर भरोसा किया।

    इसके अलावा यह भी कहा गया कि मस्जिद में अवैध मदरसा है, जो प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के विरुद्ध है, जिसे आज तक संशोधित किया गया है।

    याचिका में प्रतिवादियों को सामूहिक रूप से वर्तमान स्थिति का जायजा लेने, "दृश्यमान हिंदू विरासत और सांस्कृतिक पहचान" को संरक्षित करने के निर्देश देने की मांग की गई, जो कथित तौर पर अभी भी साइट पर मौजूद हैं, "जैसे गरुड़ कम्ब, कल्याणी, स्तूप, स्तंभ, हिंदू देवी-देवताओं की पत्थर की नक्काशी और भूमिगत मंदिर क्षेत्र, मंदिर वास्तु शिल्प, मंदिर लेआउट, योजना और दफन छिपी मूर्तियों की खुदाई।"

    याचिका में मदरसा आदि के कथित अवैध कब्जेदारों को उक्त विवादित स्थल को खाली करने और विरासत स्थलों पर लागू कानून के अनुसार 100% नियंत्रण लेकर कथित ऐतिहासिक मंदिर स्थल को सुरक्षित करने के निर्देश जारी करने की भी मांग की गई।

    केस टाइटल: बजरंग सेने और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और अन्य

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