[NDPS Act] ट्रायल कोर्ट मुख्य मामले के निपटारे तक अंतरिम हिरासत से जब्त वाहन को छोड़ने का आदेश दे सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

Amir Ahmad

13 Aug 2024 2:22 PM IST

  • [NDPS Act] ट्रायल कोर्ट मुख्य मामले के निपटारे तक अंतरिम हिरासत से जब्त वाहन को छोड़ने का आदेश दे सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    दंड प्रक्रिया संहिता 1973: धारा 457 जब्त वाहन की रिहाई NDPS Act धारा 76 आर/डब्ल्यू 52(ए) याचिकाकर्ता वाहन के आरसी धारक ने विशेष अदालत के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें वाहन की रिहाई की मांग करने वाली उसकी अर्जी खारिज कर दी गई, क्योंकि प्रतिबंधित सामान रखने के आरोप में गिरफ्तार आरोपी चालक को भी जमानत पर रिहा कर दिया गया।

    सीआरएल.आरपी.सं.623/2020 में डिवीजन बेंच के फैसले का संदर्भ दिया गया। केंद्र सरकार द्वारा 23.12.2022 को जारी की गई नई अधिसूचना के मद्देनजर, हालांकि 16.01.2015 की पिछली अधिसूचना निरस्त कर दी गई। अंतरिम हिरासत के लिए वाहन की रिहाई के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं है। अंतरिम हिरासत के लिए वाहन की रिहाई के लिए डीबी निर्णय लागू है। न्यायालय के पास मुख्य मामले के निपटारे तक अंतरिम हिरासत के लिए वाहन की रिहाई का अधिकार हमेशा होता है (पैरा 11/15)। इसलिए याचिका स्वीकार की गई।

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक्स सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act) के प्रावधानों के तहत दर्ज मुख्य मामले के निपटारे तक आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 451, 457 के तहत अंतरिम हिरासत से वाहन को रिहा करने का अधिकार ट्रायल कोर्ट के पास है।

    जस्टिस के नटराजन की एकल न्यायाधीश पीठ ने वाहन की आरसी धारक कवल जीत कौर द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसे आबकारी रेंज कार्यालय ने अपने ड्राइवरों को गिरफ्तार करने के बाद जब्त कर लिया था, जिनके पास प्रतिबंधित पदार्थ पाए गए थे।

    वाहन मालिक ने वाहन की अंतरिम हिरासत के लिए विशेष न्यायालय के समक्ष सीआरपीसी की धारा 457 के तहत आवेदन दिया, जिसे खारिज कर दिया गया।

    फिर उन्होंने ड्रग्स डिस्पोजल कमेटी (DCC) के समक्ष और आवेदन दायर किया, जिसने भी अनुमति नहीं दी। अभियोजन पक्ष ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि यदि वाहन छोड़ा गया तो याचिकाकर्ता इसका उपयोग अन्य अपराधों के लिए कर सकता है, फरार हो सकता है या इसे बेच सकता है, जिससे कार्यवाही में देरी होगी।

    निष्कर्ष:

    ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर आवेदन खारिज किया था कि केंद्र सरकार ने 23.12.2022 को नई या ताजा अधिसूचना जारी की है, जिसके अनुसार, 16.01.2015 की अधिसूचना निरस्त की जाती है।

    पीठ ने सीआरएल.आरपी.सं.623/2020 में डिवीजन बेंच के फैसले का हवाला दिया, जिसमें उसने विस्तार से कहा कि अदालत के पास केंद्र सरकार द्वारा 16.01.2015 को जारी अधिसूचना के अनुसार संपत्तियों को छोड़ने का अधिकार है।

    फिर उन्होंने कहा,

    “इस न्यायालय की डिवीजन बेंच के आदेश के आधार पर न्यायालयों ने सीआरपीसी की धारा 451 और 457 के तहत आवेदनों का निपटारा करना शुरू कर दिया। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा दिनांक 23.12.2022 को जारी की गई नई अधिसूचना के मद्देनजर, हालांकि दिनांक 16.01.2015 की पिछली अधिसूचना निरस्त कर दी गई। अंतरिम हिरासत के लिए वाहन को छोड़ने के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं है।

    अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के पास NDPS Act की धारा 76 के तहत नियम बनाने की शक्ति है और धारा 52 (ए) जब्त की गई मादक दवाओं और मनोदैहिक पदार्थों के निपटान के लिए दिशानिर्देश प्रदान करती है। इसने आगे कहा कि केंद्र सरकार ने केवल आगे के स्पष्टीकरण के लिए एक नई अधिसूचना जारी की है। लेकिन अंतरिम हिरासत से वाहन को छोड़ने के संबंध में कोई स्पष्टीकरण नहीं था।

    इसके बाद अदालत ने कहा कि इस न्यायालय की खंडपीठ का उपरोक्त मामले में निर्णय वर्तमान अधिसूचना दिनांक 23.12.2022 पर भी लागू होता है। इसलिए विशेष न्यायालय/मजिस्ट्रेट के पास सीआरपीसी की धारा 451 और 457 के तहत अंतरिम हिरासत के लिए विचाराधीन वाहन को छोड़ने का अधिकार है। मालिक बचाव करेगा और वह साबित करेगा कि वाहन का इस्तेमाल उसकी जानकारी के बिना ड्रग्स ले जाने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया था।

    इसमें आगे कहा गया,

    "मुख्य मामले के निपटारे तक अंतरिम हिरासत के लिए वाहन को छोड़ने का अधिकार न्यायालय के पास हमेशा होता है।"

    तदनुसार, इसने याचिका स्वीकार कर ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और वाहन को छोड़ने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल- कवल जीत कौर और कर्नाटक राज्य

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