सक्षम न्यायालय वसीयतकर्ता के नाम को रिकॉर्डों में तभी बदल सकता है, जब वसीयत साबित हो गई हो: कर्नाटक हाईकोर्ट
Avanish Pathak
6 Feb 2025 9:49 AM

कर्नाटक हाईकोर्ट ने दोहराया कि वसीयत के आधार पर अपने पक्ष में एक्सक्लूसिव टाइटल का दावा कर रहे भाई-बहन रिकॉर्ड में अपना नाम तब तक नहीं बदलवा सकते, जब तक कि वसीयत प्रमाणित न हो जाए।
सिंगल जज जस्टिस सचिन शंकर मगदुम ने उल्लास कोटियन याने उल्लास के.वी. की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया, जिन्होंने सहायक आयुक्त के आदेश को खारिज करने वाले उपायुक्त के आदेश को चुनौती दी थी और तहसीलदार को मूल मलिक, यानि याचिकाकर्ता की मां, कमलाम्मा का नाम रिकॉर्डों में बहाल करने का निर्देश दिया था।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उपायुक्त ने सहायक आयुक्त के आदेश को पलटने में गलती की है। सूरज भान और अन्य बनाम वित्तीय आयुक्त और अन्य (2007) 6 एससीसी 186 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले और डब्ल्यू.ए. नंबर 4429/2011 में खंडपीठ की ओर से दिए गए फैसले पर भरोसा किया गया।
निष्कर्ष
न्यायालय ने सी.एन.नागेंद्र सिंह बनाम विशेष उपायुक्त, बेंगलुरु आईएलआर 2002 केएआर 2750 के मामले में पूर्ण पीठ के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि राजस्व न्यायालयों को पक्षों के बयान दर्ज करने से रोका जाता है और इसलिए, वसीयत की वास्तविकता को स्थापित करने का सवाल म्यूटेशन कार्यवाही में नहीं उठाया जा सकता है और इसे सक्षम सिविल न्यायालय के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि "भले ही प्रतिवादी संख्या 5 ने विभाजन में मुकदमा दायर किया हो, लेकिन यह अपने आप में याचिकाकर्ता के नाम को उसकी मां, कमलम्मा द्वारा निष्पादित की गई वसीयत के आधार पर बनाए रखने का आधार नहीं बन सकता है।"
इसके अलावा कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता और प्रतिवादी संख्या 5 (भाई-बहन) अपनी मां के माध्यम से विरासत के अधिकारों का पता लगा रहे हैं, लंबित विभाजन के मुकदमे में पक्षों के अधिकारों का पूरी तरह से न्यायनिर्णयन होने तक मां के नाम को बनाए रखना अधिक प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो जाता है।"
इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि "वसीयत पंजीकृत हो या न हो, इससे वसीयतकर्ताओं के पक्ष में कोई अधिकार नहीं बनता। वसीयतकर्ता, जो वसीयत के तहत लाभार्थी होने का दावा करता है, उसे इसे प्रमाणित करना होगा और साबित करना होगा। जब तक प्रतिवादी संख्या 5 विभाजन के मुकदमे में अयोग्य नहीं है, तब तक याचिकाकर्ता राजस्व अभिलेखों में अपना नाम दर्ज नहीं करवा सकता।" इस प्रकार, इसने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें कोई दम नहीं है।