भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी केवल इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड प्रस्तुत करने से संबंधित है, भौतिक दस्तावेजों से नहीं: झारखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया
Shahadat
15 July 2024 11:27 AM IST
झारखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65-बी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य प्रस्तुत करने पर लागू होती है, भौतिक दस्तावेजों पर नहीं।
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद ने कहा,
"भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 मुख्य रूप से उसमें उल्लिखित शर्तों की उपलब्धता के आधार पर दस्तावेज़ को द्वितीयक साक्ष्य के रूप में मानने के उद्देश्य से है। अधिनियम की धारा 65-बी इलेक्ट्रॉनिक सामान को साक्ष्य के रूप में मानने के उद्देश्य से है। धारा 65-बी के प्रावधानों में से एक विशेष रूप से धारा 65-बी(4) के तहत, यह है कि इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस स्वीकार करते समय उसके संरक्षक द्वारा प्रमाणन दिया जाना चाहिए।"
संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की गई, जिसमें अधिनियम की धारा 65 के तहत दायर याचिका खारिज करने वाले अतिरिक्त सिविल जज के आदेश को चुनौती दी गई।
इस मामले में एडिशनल सिविल जज ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम (AIE) की धारा 65 के तहत बैंक ड्राफ्ट और धन रसीदों की फोटोकॉपी को द्वितीयक साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने के लिए दायर याचिका खारिज कर दी। अस्वीकृति वादी द्वारा उनकी प्रामाणिकता साबित करने में असमर्थता के आधार पर थी, क्योंकि वह जारीकर्ता बैंक से प्रमाणन प्रदान नहीं कर सकी थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अस्वीकृति अनुचित थी। यह तर्क दिया गया कि याचिका अधिनियम की धारा 65-बी के तहत दायर नहीं की गई, जो इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड से संबंधित है, बल्कि धारा 65 के तहत दायर की गई, जो दस्तावेजों के द्वितीयक साक्ष्य से संबंधित है। यह दावा किया गया कि अदालत ने गलत तरीके से याचिका को धारा 65-बी के तहत दायर की गई याचिका के रूप में माना और धारा 65 के अनुसार कानूनी मुद्दों पर विचार नहीं किया। इसलिए आदेश में त्रुटि है और यह कानूनी रूप से टिकने योग्य नहीं है।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा,
"इन प्रावधानों का संदर्भ देने का उद्देश्य यह है कि न्यायालय ने 20.12.2022 की याचिका खारिज करते समय यह कारण बताए कि वादी उस बैंक से कोई प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं कर सका, जहां से वस्तुएं जारी की गईं।"
न्यायालय ने कहा कि उपरोक्त निष्कर्ष इस आधार पर बनाए गए प्रतीत होते हैं कि इस प्रकार दायर की गई याचिका भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी के तहत थी। न्यायालय ने आगे कहा कि चूंकि धारा 65-बी का प्रावधान इलेक्ट्रॉनिक सामान के उत्पादन के संबंध में था, लेकिन याचिका में की गई प्रार्थना के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक सामान विषय वस्तु नहीं थे, बल्कि यह दस्तावेजों के रूप में थे, अर्थात बैंक द्वारा जारी किए गए चार डिमांड ड्राफ्ट और दो धन रसीदों की फोटोकॉपी, जिन्हें द्वितीयक साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने की मांग की गई, जिसका अर्थ है, "उक्त दस्तावेज धारा 65 के दायरे में आएंगे और यही कारण है कि याचिका भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 के तहत भी दायर की गई है, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने गलत धारणा के आधार पर उक्त याचिका को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 के दायरे से बाहर होने के कारण खारिज कर दिया है।"
न्यायालय ने याचिका का निपटारा करते और आदेश रद्द करते हुए कहा,
“इसलिए यह न्यायालय भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए इस विचार पर है कि यह ऐसा मामला है, जहां दिनांक 22.12.2022 के आदेश से स्पष्ट त्रुटि है, जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65-बी की प्रयोज्यता के आधार पर याचिका अस्वीकार करने के कारण है।”
न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को कानून के अनुसार सख्ती से नया आदेश पारित करने का भी निर्देश दिया।
केस टाइटल- मीना कुमारी सिन्हा बनाम मेसर्स मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड और अन्य।