कार्रवाई का नया कारण और राहत मांगने के लिए संशोधन के लिए धारा 80 के तहत पूर्व सूचना अनिवार्य: झारखंड हाईकोर्ट

Amir Ahmad

6 Dec 2024 11:45 AM IST

  • कार्रवाई का नया कारण और राहत मांगने के लिए संशोधन के लिए धारा 80 के तहत पूर्व सूचना अनिवार्य: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए अपने फैसले में कहा कि राज्य के खिलाफ कार्रवाई का नया कारण पेश करने और नई राहत मांगने वाले वाद में संशोधन सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 80 के तहत पूर्व सूचना के बिना स्वीकार्य नहीं।

    मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस सुभाष चंद ने कहा,

    "यह प्रस्तावित संशोधन कार्रवाई के नए कारण और नई राहत के संबंध में है। इस संशोधन की मांग करने से पहले वादी को CPC की धारा 80 के तहत राज्य को पूर्व सूचना देनी चाहिए थी, जिसमें मुकदमे में शामिल भूमि पर ट्रॉमा सेंटर के निर्माण के संबंध में कार्रवाई का नया कारण बताया गया हो। साथ ही उस भूमि का कब्जा भी दिया गया हो, जिस पर ट्रॉमा सेंटर को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया।"

    जस्टिस चंद ने कहा,

    "संशोधन आवेदन में वादी द्वारा कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया कि उसने CPC की धारा 80 के तहत राज्य को कोई नोटिस दिया। ट्रॉमा सेंटर के ध्वस्त होने के बाद संबंधित भूमि पर कब्जा दिलाने के लिए नई राहत के लिए कार्रवाई के नए कारण के संबंध में। वादी के लिए यह अनिवार्य था कि वह शिकायत में संशोधन की मांग करने से पहले कार्रवाई के नए कारण के आधार पर इस नई प्रार्थना के लिए राज्य को सी.पी.सी. की धारा 80 के तहत नोटिस दे।”

    न्यायालय ने माना कि वादी की ओर से दायर संशोधन आवेदन केवल इस आधार पर बनाए रखने योग्य नहीं था कि नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 80 के तहत पूर्व सूचना नहीं दी गई।

    उपर्युक्त निर्णय वादी की ओर से सिविल विविध याचिका (CMP) में आया, जो ट्रायल कोर्ट द्वारा सिविल अपील में पारित आदेश के खिलाफ थी, जिसके तहत सीपीसी की धारा 151 के साथ आदेश 6 नियम 17 के तहत याचिका को खारिज कर दिया गया।

    मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार नवादा गांव में 1.16 एकड़ जमीन पर विवाद था, जिसके बारे में वादी ने दावा किया कि उसे अपने दिवंगत पति के माध्यम से पंजीकृत किरायेदार के रूप में विरासत में मिली थी। वादी ने राज्य के खिलाफ मूल मुकदमा दायर किया, जिसमें उसने भूमि के स्वामित्व की घोषणा की मांग की, जबकि आरोप लगाया कि ट्रॉमा सेंटर के निर्माण के लिए उसकी जानकारी के बिना भूमि का अधिग्रहण किया गया। वहीं मूल दावे के लिए धारा 80 CPC के तहत पूर्व नोटिस जारी किया गया वादी प्रारंभिक मुकदमे में कब्जे की वसूली के लिए परिणामी राहत मांगने में विफल रही।

    ट्रायल कोर्ट ने मूल मुकदमे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 34 के तहत वर्जित था, जो आवश्यकता पड़ने पर परिणामी राहत मांगे बिना घोषणात्मक राहत देने पर रोक लगाता है।

    कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वादी को 2012 से ट्रॉमा सेंटर के निर्माण के बारे में पता था जैसा कि उसकी गवाही और प्लीडर कमिश्नर की रिपोर्ट से पता चलता है। इस जानकारी के बावजूद ध्वस्तीकरण और कब्जे की वसूली के लिए राहत को शामिल करने के लिए प्रस्तावित संशोधन धारा 80 CPC के तहत एक नया नोटिस जारी किए बिना दायर किया गया।

    न्यायालय ने कहा,

    “इस याचिका के अनुलग्नक नंबर 2 में दिए गए निर्णय के अवलोकन से यह पाया गया कि पी.डब्लू.1 आरती गुप्ता ने अपनी क्रॉस एग्जामिनेशन में स्वीकार किया कि वर्ष 2012 में सदर अस्पताल द्वारा भूमि पर भवन का निर्माण किया गया। पी.डब्लू.5 बिष्णु दयाल महतो ने यह भी कहा कि उन्होंने मुकदमे में संपत्ति का स्थानीय निरीक्षण किया और पाया कि 1.16 एकड़ क्षेत्रफल की संपत्ति, प्लॉट संख्या 149/255, खाता संख्या 1, गांव नवादा पर ट्रॉमा सेंटर मौजूद था।”

    अभियोगी का संशोधन आवेदन जिसमें ट्रॉमा सेंटर के ध्वस्तीकरण और कब्जे की वसूली के लिए प्रार्थना पेश करने की मांग की गई। धारा 80 सीपीसी के तहत नोटिस की प्रक्रियात्मक आवश्यकता को संबोधित किए बिना दायर किया गया।

    जस्टिस चंद ने जोर देकर कहा कि इस तरह के गैर-अनुपालन ने संशोधन आवेदन को अस्थिर बना दिया।

    न्यायालय ने कहा,

    "निचली अदालत द्वारा संशोधन आवेदन को अस्वीकार करना उचित है। हालांकि यह अलग निष्कर्ष पर आधारित है। इस न्यायालय द्वारा दिए गए निष्कर्षों के मद्देनजर, संशोधन आवेदन को अस्वीकार करने के लिए विवादित आदेश पारित करने की पुष्टि की जानी चाहिए।"

    इसलिए न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा पारित विवादित आदेश की पुष्टि करते हुए CMP को खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: दीपक कुमार बनाम झारखंड राज्य

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