सिविल जज परीक्षा | झारखंड हाईकोर्ट ने संशोधित उत्तर कुंजी में 3 उत्तरों को गलत पाया; अंकों की पुनर्गणना और अंतिम मेरिट सूची प्रकाशित करने का आदेश

Amir Ahmad

28 April 2025 12:20 PM IST

  • सिविल जज परीक्षा | झारखंड हाईकोर्ट ने संशोधित उत्तर कुंजी में 3 उत्तरों को गलत पाया; अंकों की पुनर्गणना और अंतिम मेरिट सूची प्रकाशित करने का आदेश

    झारखंड हाईकोर्ट ने पाया कि झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) द्वारा सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद के लिए आयोजित प्रारंभिक परीक्षा की संशोधित उत्तर कुंजी में तीन उत्तर स्पष्ट रूप से गलत थे और स्थापित कानून व निर्णयों के विपरीत थे।

    सुप्रीम कोर्ट के निर्णय कानपुर यूनिवर्सिटी व अन्य बनाम समीर गुप्ता व अन्य का हवाला देते हुए चीफ जस्टिस एम.एस. रामचंद्र राव और जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि सामान्यतः उत्तर कुंजी को सही माना जाता है ,जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वह गलत है। इसे केवल अनुमान या तर्क-वितर्क के आधार पर गलत नहीं ठहराया जा सकता।

    खंडपीठ ने दोहराया कि यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होना चाहिए कि उत्तर गलत है, यानी विषय में अच्छी समझ रखने वाले किसी भी व्यक्ति का उसे सही मानना संभव न हो।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस मामले में भले ही उत्तर कुंजी के पुनर्मूल्यांकन की कोई प्रावधान न हो चूंकि परीक्षा अंग्रेजी भाषा और कानून जैसे विषयों से संबंधित थी (ना कि विज्ञान जैसे तकनीकी विषयों से जिसमें कोर्ट विशेषज्ञ नहीं मानी जाती) और चूंकि याचिकाकर्ताओं ने बिना किसी अनुमान या तर्क-वितर्क के उत्तरों को गलत साबित किया है, इसलिए हम JPSC की तकनीकी आपत्तियों को अस्वीकार करते हैं और उन प्रश्नों पर विचार करते हैं, जिनकी उत्तर-कुंजी को गलत ठहराया गया।"

    यह फैसला रिया सोनल और अन्य दस याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर रिट याचिकाओं के समूह में सुनाया गया, जिन्होंने JPSC द्वारा 13 मई 2024 की प्रेस रिलीज में जारी संशोधित उत्तर कुंजी को चुनौती दी थी।

    प्रमुख विवाद तीन प्रश्नों– प्रश्न संख्या 8, 74 और 96 (सीरीज A)– को लेकर था, जिनके उत्तर याचिकाकर्ताओं के अनुसार गलत या मनमाने ढंग से संशोधित किए गए।

    प्रश्न 8:

    यह प्रश्न सही अंग्रेजी वाक्य का चयन करने से संबंधित था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि विकल्प (A): "More than one boy was absent from the class." व्याकरण की दृष्टि से सही वाक्य है। जबकि JPSC ने संशोधित कुंजी में विकल्प (B): "More than one boy were absent from the class." को सही बताया।

    कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलील स्वीकार करते हुए कहा,

    "बिना किसी संदेह के विकल्प (A) सही उत्तर है और JPSC द्वारा दिया गया विकल्प (B) सही नहीं कहा जा सकता।"

    प्रश्न 74:

    यह प्रश्न सुप्रीम कोर्ट के निर्णय अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ (W.P. (C) No. 943/2021) पर आधारित था। इसमें पूछा गया था कि आदेश में IPC की कौन-कौन सी धाराओं का उल्लेख किया गया था।

    JPSC ने विकल्प (D) — धारा 153A, 153B, 295A और 506 — को सही उत्तर माना था। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में धारा 506 का उल्लेख नहीं था बल्कि धारा 505 का था।

    कोर्ट ने जाँच कर पाया,

    "सुप्रीम कोर्ट ने केवल धारा 153A, 153B, 295A और 505 का उल्लेख किया था। धारा 506 का उल्लेख नहीं था।"

    JPSC का यह तर्क भी कोर्ट ने खारिज कर दिया कि 'आदि (etc.)' शब्द से धारा 506 को शामिल माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि यदि 'आदि' को इस तरह पढ़ा जाए तो IPC की सभी धाराएं उसमें शामिल हो जाएंगी जो सुप्रीम कोर्ट का आशय नहीं हो सकता।

    प्रश्न 96:

    यह प्रश्न भारतीय अनुबंध अधिनियम के अंतर्गत एजेंसी कानून से जुड़ा था।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि JPSC ने पहले विकल्प (C) को सही माना था लेकिन बाद में विकल्प (A) को सही घोषित कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि विकल्प (A) वास्तव में सही था और विकल्प (B) और (C) गलत थे।

    कोर्ट ने कहा,

    "JPSC द्वारा दिया गया विकल्प (A) गलत है। याचिकाकर्ता सही हैं कि दोनों विकल्प (B) और (C) गलत हैं।"

    कोर्ट ने भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 184 और 186 का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया कि कोई भी व्यक्ति एजेंट बन सकता है (केवल बालिग ही नहीं) और एजेंसी प्राधिकरण लिखित रूप में आवश्यक नहीं है।

    कोर्ट का निष्कर्ष

    कोर्ट ने कहा कि संशोधित उत्तर कुंजी में JPSC द्वारा दिए गए उत्तर स्पष्ट रूप से त्रुटिपूर्ण थे और उन्हें सुधारना आवश्यक है।

    इसलिए हाईकोर्ट ने रिट याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आदेश दिया,

    "जिन अभ्यर्थियों ने प्रश्न संख्या 8 में विकल्प (A) चुना है उन्हें एक अंक दिया जाए। प्रश्न संख्या 74 और 96 को मूल्यांकन से हटा दिया जाए।"

    जब ये दो प्रश्न हटा दिए जाएंगे तो कुल 98 प्रश्न और 98 अंक रहेंगे।

    कोर्ट ने आगे निर्देश दिया,

    "JPSC प्रत्येक अभ्यर्थी के प्राप्तांक को इस निर्णय के अनुसार 98 अंकों के आधार पर पहले गणना करें। फिर इसे 100 अंकों के पैमाने पर पुनर्गणना करे और फिर कट-ऑफ अंक लागू करें। इसके बाद JPSC अंतिम मेरिट सूची प्रकाशित करें।"

    केस टाइटल: नमिता राजे बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य

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