झारखंड हाइकोर्ट ने भूमि आवंटन विवाद मामले में फिल्म निर्माता प्रकाश झा के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द की

Amir Ahmad

9 Feb 2024 11:57 AM GMT

  • झारखंड हाइकोर्ट ने भूमि आवंटन विवाद मामले में फिल्म निर्माता प्रकाश झा के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द की

    झारखंड हाइकोर्ट ने भूमि आवंटन विवाद के संबंध में फिल्म निर्माता प्रकाश झा और अन्य आरोपियों के खिलाफ सभी आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।

    जस्टिस संजय द्विवेदी ने कहा,

    “आईपीसी की धारा 415 धोखाधड़ी की परिभाषा है। उक्त परिभाषा के आलोक में किसी व्यक्ति को धोखाधड़ी का दोषी ठहराने के लिए यह दिखाना आवश्यक है कि वादा करते समय उसका इरादा कपटपूर्ण और बेईमानी का था। प्रश्नगत ड्राफ्टों को न भुनाने के परिणाम से पता चलता है कि शुरू से ही इरादा ऐसा नहीं था, जो आईपीसी की धारा 415 के तहत धोखाधड़ी के संबंध में अन्य धाराएं उत्पन्न होने वाले मामले में सर्वोपरि सुनवाई योग्य है।”

    जस्टिस द्विवेदी ने कहा,

    “यह अच्छी तरह से स्थापित है कि कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन धोखाधड़ी के लिए आपराधिक मुकदमे को जन्म देता है जब तक कि लेनदेन की शुरुआत में धोखाधड़ी और बेईमानी का इरादा न हो। केवल परिसर बनाए रखने में विफलता का आरोप आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।”

    झा ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रांची की अदालत में लंबित शिकायत मामले के संबंध में दिनांक 10-01-2018 को संज्ञान लेने के आदेश सहित पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की।

    दर्ज की गई शिकायत में दावा किया गया कि शिकायतकर्ता के चैयरमैन-कम-मैनिजिंग डिरेक्टर का क्लासिक मल्टीप्लेक्स प्राइवेट लिमिटेड का विधिवत अधिकृत एजेंट था। शिकायत के अनुसार, झा और अन्य आरोपी होली काउ पिक्चर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। कंपनी के दिन-प्रतिदिन के संचालन के लिए कथित तौर पर जिम्मेदार थे।

    आरोप है कि झा की मंशा जमशेदपुर में मल्टीप्लेक्स स्थापित करने की थी। इसे आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने कथित तौर पर 3-4 एकड़ भूमि के आवंटन के लिए राज्य सरकार से मांग की। इसके बाद राज्य सरकार और टाटा स्टील लिमिटेड की सहमति से उन्हें जमशेदपुर के अधिसूचित क्षेत्र वार्ड संख्या VI के अंतर्गत अकाउंट नंबर 2 में 13, 14 और 17 प्लॉट नंबर के तहत 3.12 एकड़ जमीन आवंटित की गई।

    आगे आरोप लगाए गए कि झा ने शिकायतकर्ता-कंपनी के चैयरमैन-कम-मैनिजिंग डिरेक्टर पवन कुमार सिंह से संपर्क किया और उन्हें जमशेदपुर में निर्माण के लिए 10,000 वर्ग फुट का सुपर बिल्ट-अप क्षेत्र प्रदान करने का वादा किया।

    वहीं 13-06- 2006 को सिविल कोर्ट, रांची में लिखित समझौता किया गया। शिकायतकर्ता के चैयरमैन-कम-मैनिजिंग डिरेक्टर ने झा के पक्ष में 20-20 लाख रुपये के तीन बैंक ड्राफ्ट तैयार किए, जो अन्य आरोपी पक्षों की उपस्थिति में उन्हें सौंप दिए गए। झा ने ये बैंक ड्राफ्ट स्वीकार कर लिए।

    आगे आरोप लगाया गया कि 28-05- 2009 को क्लासिक मल्टीप्लेक्स प्रा. लिमिटेड ने उनके द्वारा बुक किए गए परिसर की जांच करने के लिए निर्माण स्थल का दौरा किया, लेकिन प्रवेश से इनकार कर दिया। साइट पर मौजूद सुपरवाइजर से पूछताछ करने पर पता चला कि उसके नाम से कोई बुकिंग ही नहीं थी।

    इसके बाद 23-06-2009 को शिकायतकर्ता के चैयरमैन-कम-मैनिजिंग डिरेक्टर ने झा का सामना किया, जिन्होंने पुष्टि की कि वास्तव में उनके नाम पर कोई बुकिंग नहीं थी।

    याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर वकील उमेश प्रसाद सिंह ने तर्क दिया कि शिकायत का मामला शुरू में सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत एफआईआर दर्ज करने और जांच के लिए अदालत द्वारा भेजा गया। इसके बाद पुलिस द्वारा मामले को दीवानी प्रकृति का मानने के बावजूद अदालत ने विरोध याचिका पर 10 जनवरी, 2018 को आईपीसी की धारा 418 लागू की।

    सिंह ने आरोपों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि क्लासिक मल्टीप्लेक्स प्राइवेट लिमिटेड ने कथित तौर पर झा को 20 लाख रुपये के तीन बैंक ड्राफ्ट जारी किए। उन्होंने भारतीय स्टेट बैंक एसएमई शाखा, रांची के दस्तावेज़ का संदर्भ देते हुए याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर पूरक हलफनामे पर जोर दिया। इस दस्तावेज़ के अनुसार उल्लिखित ड्राफ्ट अभी तक जारी या भुनाए नहीं गए।

    सिंह ने तर्क दिया कि अगर कोई समझौता हुआ भी तो यह भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 (Indian Contract Act, 1872) की धारा 25 के तहत अमान्य होगा, क्योंकि वादा किया गया भुगतान पूरा नहीं हुआ था। उन्होंने शिकायत याचिका में स्वीकारोक्ति की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह मुख्य रूप से समझौते के उल्लंघन के बारे में था।

    इसके अलावा, सिंह ने कहा कि क्लासिक मल्टीप्लेक्स प्राइवेट लिमिटेड ने पहले ही सिविल जज (सीनियर डिवीजन)-IX, जमशेदपुर की अदालत में लंबित विशिष्ट प्रदर्शन शीर्षक मुकदमा शुरू किया। उन्होंने तर्क दिया कि मामला दीवानी प्रकृति का प्रतीत होता है, इसलिए आईपीसी की धारा 418 के तहत कार्यवाही करने का अदालत का निर्णय गलत था।

    इंद्र मोहन गोस्वामी बनाम उत्तरांचल राज्य (2007) 12 एससीसी 1 के मामले का हवाला देते हुए सिंह ने तर्क दिया कि वर्तमान मामले में धोखा देने के इरादे के आवश्यक तत्व की कमी थी। उन्होंने मुरारी लाल गुप्ता बनाम गोपी सिंह (2005) 13 एससीसी 699 का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि केवल समझौते के अस्तित्व में आपराधिक कार्यवाही की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।

    इन तर्कों के आधार पर सिंह ने अदालत से पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने का आग्रह किया।

    हालांकि, राज्य के सीनियर वकील प्रभु दयाल अग्रवाल ने तर्क दिया कि पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें कहा गया कि मामला दीवानी प्रकृति का था, लेकिन अदालत ने विरोध याचिका पर संज्ञान लेने का फैसला किया।

    न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के सीनियर वकील द्वारा प्रस्तुत तर्क में योग्यता पाई, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि कॉन्ट्रैक्ट की धारा 25 लागू थी, जो दर्शाती है कि बिना विचार किए कॉन्ट्रैक्ट को शून्य माना जाता है। नतीजतन, अदालत इस बात पर सहमत हुई कि इंद्र मोहन गोस्वामी और मुरारी लाल गुप्ता के मामलों में याचिकाकर्ताओं के वकीलों द्वारा उद्धृत निर्णय याचिकाकर्ताओं के रुख का समर्थन करते हैं।

    इसके अतिरिक्त न्यायालय ने जोर देकर कहा,

    ''एक और तथ्य रिकॉर्ड पर है, जो बताता है कि 2009 का टाइटल सूट नंबर 107 ओपी नंबर 2 द्वारा स्थापित किया गया, जो अभी भी लंबित है। आपराधिक अदालतें हिसाब-किताब निपटाने या विवाद निपटाने के लिए पक्षकारों पर दबाव डालने के लिए नहीं हैं। जब भी आपराधिक अपराधों के तत्व सामने आते हैं तो आपराधिक अदालतें संज्ञान ले सकती हैं।”

    अदालत ने आगे कहा,

    “उक्त मामले में एफआईआर पहले ही दर्ज किया जा चुका है और अदालत के निर्देश के अनुसार पुलिस ने मामले की जांच की। मामला दीवानी प्रकृति का है। इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने पाया कि अंतिम प्रपत्र यह कहते हुए सही ढंग से प्रस्तुत किया गया कि मामला दीवानी प्रकृति का है। हालांकि, न्यायालय ने विरोध याचिका के आधार पर संज्ञान लिया।"

    इसके अलावा, अदालत ने संज्ञान लेने के आदेश में कहा कि मामला समझौते के उल्लंघन से उत्पन्न हो रहा है, इसके बावजूद उसने संज्ञान लिया।

    इन कारकों पर विचार करते हुए न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसलिए इसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रांची के समक्ष लंबित 2011 के शिकायत मामले नंबर 1499 से संबंधित संज्ञान के आदेश दिनांक 10-01-2018 सहित सभी आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।

    तदनुसार न्यायालय ने याचिका मंजूर कर ली।

    अपीयरेंस

    याचिकाकर्ताओं के लिए वकील- उमेश प्रसाद सिंह, जितेंद्र एस. सिंह और सुरभि ।Jharkhand High CourtFilmmaker-Producer Prakash JhaPrakash JhaBollywood filmmaker Prakash JhaJustice Sanjay Dwivedi2024 LiveLaw (Jha) 25

    राज्य के लिए वकील- प्रभु दयाल अग्रवाल।

    केस नंबर- सी.आर.एम.पी. 2018 का नंबर 1647

    केस टाइटल- प्रकाश झा और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य

    एलएल साइटेशन- लाइवलॉ (झा) 25 202

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