मृत्यु पूर्व कथन दर्ज करने का कोई निर्धारित प्रारूप नहीं, लेकिन न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह स्वस्थ मनःस्थिति में किया गया: झारखंड हाईकोर्ट

Amir Ahmad

26 Jun 2024 9:13 AM GMT

  • मृत्यु पूर्व कथन दर्ज करने का कोई निर्धारित प्रारूप नहीं, लेकिन न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह स्वस्थ मनःस्थिति में किया गया: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि मृत्यु पूर्व कथन दर्ज करने का कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है और यह मौखिक या लिखित हो सकता है। हालांकि इस पर भरोसा करने वाले किसी भी न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह घोषणाकर्ता द्वारा स्वस्थ मनःस्थिति में किया गया।

    जस्टिस सुभाष चंद और जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने कहा,

    "यह स्थापित कानून है कि मृत्यु पूर्व कथन मौखिक या लिखित हो सकता है। लेकिन मृत्यु पूर्व कथन पर भरोसा करते समय न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह 'स्वस्थ मनःस्थिति' में किया गया। मृत्यु पूर्व कथन दर्ज करने का कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है। यदि मृत्यु पूर्व कथन मौखिक है और बहुत संक्षिप्त है तो इससे भी इसकी सत्यता के बारे में विश्वास पैदा होता है।”

    यह टिप्पणी आजीवन कारावास की सजा पाए व्यक्ति द्वारा धारा 302 आईपीसी के तहत हत्या के लिए दोषी ठहराए जाने के खिलाफ दायर अपील खारिज करते हुए की गई। उस पर 2012 में अपनी प्रेमिका इंफॉर्मेंट की पत्नी के पेट में चाकू घोंपने का आरोप था। मृतक ने घायल अवस्था में ग्रामीण रुदन सिंह के समक्ष मृत्यु पूर्व कथन किया।

    न्यायालय ने पाया कि चाकू घोंपने के बावजूद मृतक ने आरोपी को पकड़ लिया और शोर मचाया। इसलिए यह निष्कर्ष निकाला गया कि वह मृत्यु पूर्व कथन करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ थी। इसने यह भी पाया कि कथन करते समय डॉक्टर के पास उसकी मानसिक स्थिति का प्रमाण पत्र देने का कोई अवसर नहीं था लेकिन रुदन सिंह ने उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति को स्वस्थ माना, जिसने उसे कथन करते देखा था।

    न्यायालय ने कहा,

    "मृतक द्वारा घायल अवस्था में दिया गया मृत्यु-पूर्व कथन तुरन्त तथा मानसिक रूप से स्वस्थ था तथा मृत्यु-पूर्व कथन करते समय घोषणाकर्ता के आचरण से ही, जिसने उसे भुजाली से वार करने वाले अपराधी को पकड़ लिया, उसकी शारीरिक तथा मानसिक स्थिति के संबंध में पर्याप्त साक्ष्य है। इसलिए डॉक्टर के किसी प्रमाणीकरण के बिना भी ऐसा मृत्यु-पूर्व कथन स्वीकार्य तथा विश्वसनीय होगा।"

    परिणामस्वरूप न्यायालय ने माना कि रुदन सिंह की गवाही घटना के प्रत्यक्षदर्शी के रूप में आंशिक रूप से स्वीकार्य थी तथा मृतक द्वारा घायल अवस्था में दिए गए मृत्यु-पूर्व कथन के साक्षी के रूप में आंशिक रूप से स्वीकार्य थी। न्यायालय ने दोषी के वकील द्वारा उठाई गई इस दलील को खारिज कर दिया कि मृत्यु-पूर्व कथन के बारे में उसे समझाया नहीं गया।

    न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता-दोषी से धारा 313 के तहत बयान दर्ज करते समय पूछे गए प्रश्न और उसके द्वारा दिए गए उत्तर से यह स्पष्ट है कि मृत्यु पूर्व बयान रूदन सिंह की गवाही का हिस्सा था साथ ही अन्य गवाहों के बयान भी थे जिन्हें निचली अदालत ने दोषी को समझाया था, जिसमें सभी अपराध सिद्ध करने वाली परिस्थितियां भी शामिल थीं।

    मुकदमे के दौरान हत्या के हथियार को पेश न किए जाने के बारे में न्यायालय ने कहा कि यह मामले के लिए घातक नहीं था, क्योंकि खून से सने भुजाली के जब्ती ज्ञापन को अभियोजन पक्ष के गवाहों द्वारा अच्छी तरह से साबित किया गया।

    तदनुसार न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया।

    केस टाइटल- संदीप कुमार त्रिपाठी @ संदीप त्रिपाठी बनाम झारखंड राज्य

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