झारखंड न्यूनतम वेतन अधिसूचना के तहत कुशल राजमिस्त्री को अर्ध-कुशल श्रमिक के रूप में वर्गीकृत करने में MACT ने गलती की: हाईकोर्ट
Amir Ahmad
20 Nov 2024 12:00 PM IST
झारखंड हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) बोकारो द्वारा दिए गए मुआवजे की गणना में गलती को सुधारा है, जिसमें मृतक राजमिस्त्री की आय को झारखंड न्यूनतम वेतन अधिसूचना में वर्गीकरण के विपरीत अर्ध-कुशल श्रमिक के रूप में आंका गया।
मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस सुभाष चंद ने कहा,
"ट्रिब्यूनल ने माना कि मृतक एक राजमिस्त्री था लेकिन मृतक की आय को 1 अक्टूबर 2019 से झारखंड न्यूनतम वेतन अधिसूचना के मद्देनजर अर्ध-कुशल श्रमिक के रूप में आंका गया, जो न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 है। झारखंड सरकार ने अधिसूचना संख्या 2/MW-2071/2010 एल एंड टी-1836 के तहत 1 अक्टूबर, 2019 से प्रभावी न्यूनतम मजदूरी परिवर्तनीय महंगाई भत्ता जारी किया, क्योंकि दुर्घटना 27.12.2019 को हुई थी। झारखंड सरकार द्वारा वर्ष 2019 के दौरान अर्ध-कुशल श्रमिक की कुल न्यूनतम मजदूरी 7008.14 रुपये प्रति माह निर्धारित की गई और आय का आकलन राउंड ऑफ फिगर में 7,000 रूपये प्रति माह किया गया था।"
जस्टिस चंद ने कहा,
“इसी राजपत्र अधिसूचना में राजमिस्त्री को कुशल श्रमिक की श्रेणी में दिखाया गया। इसी राजपत्र अधिसूचना में कुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी मासिक न्यूनतम मजदूरी 9238 दिखाई गई। इस प्रकार मृतक की आय, जिसे ट्रिब्यूनल द्वारा राजमिस्त्री को अर्ध-कुशल मानते हुए 7,000 आंका गया , गलत है और इसमें संशोधन की आवश्यकता है क्योंकि राजमिस्त्री कुशल श्रमिक है।”
मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार 2019 में घातक मोटर दुर्घटना हुई, जिसमें 35 वर्षीय मृतक की लापरवाही और तेज गति से चलाए जा रहे ट्रक की चपेट में आने से मौत हो गई। मृतक के परिवार में उसकी पत्नी, बच्चे और माता-पिता हैं, जिन्होंने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत एक याचिका दायर की, जिसमें 30,00,500 रुपये मुआवजे की मांग की गई। मृतक राजमिस्त्री था, जो उल्लेखनीय रूप से 15,000 रुपये प्रति माह कमा रहा था।
ट्रिब्यूनल ने माना कि मृतक राजमिस्त्री था लेकिन 1 अक्टूबर, 2019 से झारखंड न्यूनतम मजदूरी अधिसूचना के मद्देनजर उसकी आय को अर्ध-कुशल श्रमिक के रूप में आंका गया था, जो न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 है।
ट्रिब्यूनल ने दावेदारों को मुआवजे के रूप में 14,81,200 रुपये का भुगतान करने का निर्देश देते हुए विवादित अवार्ड पारित किया।
मुआवजे की मात्रा पर दिए गए फैसले से असंतुष्ट दावेदारों ने झारखंड हाईकोर्ट में विविध आवेदन दायर किया, जिसमें कहा गया कि उक्त अधिसूचना के तहत राजमिस्त्री को कुशल श्रमिक के रूप में वर्गीकृत किया गया, जिसका न्यूनतम मासिक वेतन 9,238 है। उन्होंने तर्क दिया कि मृतक को अर्ध-कुशल श्रमिक के रूप में वर्गीकृत करने वाला ट्रिब्यूनल का निर्णय गलत है। उन्होंने मुआवजे में वृद्धि की मांग की। उन्होंने आगे तर्क दिया कि मृतक के माता-पिता को संघ की हानि के मद में राशि नहीं दी गई।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में माता-पिता और संतान संघ के मुद्दे को भी संबोधित किया। नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी (2017) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने माना कि मृतक के माता-पिता इस मद के तहत 40,000 के हकदार थे।
इसके अलावा न्यायालय ने हर तीन साल में मुआवजे के पारंपरिक शीर्षों के लिए वैधानिक 10% वृद्धि लागू की तथा माता-पिता और संतान संघ के लिए अतिरिक्त 44,000 रुपये का निर्देश दिया, जिसमें हर तीन साल में देय 10% वृद्धि शामिल है। अपील को आंशिक रूप से अनुमति दी गई, जिसमें निर्णय को वार्षिक निर्भरता की हानि के लिए 18,62,400 और माता-पिता संघ के पारंपरिक शीर्ष के तहत 44,000 में संशोधित किया गया। ट्रिब्यूनल के बाकी निर्णय अपरिवर्तित रहे।
केस टाइटल: शकुंतला देवी और अन्य बनाम एम/एस नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य