कृषि भूमि सुधार अधिनियम के तहत भूमि पर कब्जे के अधिकार के निर्धारण पर विवादों का निपटारा सिविल कोर्ट नहीं कर सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Amir Ahmad

23 April 2025 5:46 AM

  • कृषि भूमि सुधार अधिनियम के तहत भूमि पर कब्जे के अधिकार के निर्धारण पर विवादों का निपटारा सिविल कोर्ट नहीं कर सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि जहां किसी मुकदमे में कब्जे के अधिकार का दावा किया जाता है या उस पर विवाद होता है और इसे कृषि सुधार अधिनियम के तहत नियुक्त अधिकारी या प्राधिकारी को संदर्भित किया जा सकता है तो सिविल कोर्ट को ऐसे विवाद का निपटारा करने से रोक दिया जाता है।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि निचली अदालतों ने आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत मुकदमे को खारिज करने में गलती की है। इसने कहा कि कृषि सुधार अधिनियम का गलत इस्तेमाल किया गया और वादी के स्वामित्व और कब्जे के दावे को सिविल न्यायालय द्वारा संबोधित किया जाना चाहिए।

    जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि शिकायत की विषय-वस्तु के अवलोकन से ही पता चलता है कि वाद में उक्त भूमि पर कब्जे के अधिकार के निर्धारण की मांग की गई, क्योंकि याचिकाकर्ता ने इस हद तक स्वीकार किया कि उक्त भूमि पर उनका कब्जा नहीं है।

    इस प्रकार, अधिनियम की धारा 19(3)(ई) कलेक्टर को प्रतिकूल कब्जे और अन्य भूमि संबंधी विवादों सहित ऐसे मामलों को संभालने का अधिकार देती है।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया था कि भूमि सुधार अधिनियम की गलत व्याख्या की गई और इसलिए वर्तमान न्यायालय को भूमि अधिकारों की व्याख्या और कृषि कानून के तहत अधिकार क्षेत्र के प्रतिबंध से संबंधित कानून के प्रश्न का निर्णय करना पड़ा।

    प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि जम्मू-कश्मीर कृषि सुधार अधिनियम की धारा 25 के तहत वाद पर रोक लगाई गई, जो ऐसे विवादों पर सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को बाहर करती है, क्योंकि याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया कि वह कब्जे से बाहर है। केवल राजस्व अधिकारी धारा 19(3)(ई) को इस मुद्दे पर निर्णय लेने का अधिकार है।

    न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता न्यायालय ने विवाद को सही ढंग से समझा है तथा इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि वादी का वाद कानून द्वारा वर्जित है तथा इसे अस्वीकार किया जाना चाहिए।

    न्यायालय ने कहा कि वर्तमान द्वितीय अपील में कानून बहुत स्पष्ट है कि ऐसा तभी होता है, जब अपीलकर्ता किसी महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न के निर्धारण में अपीलकर्ता न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग करता है।

    न्यायालय ने कहा कि वर्तमान अपील में कोई कानूनी प्रश्न नहीं उठाया गया, कानूनी प्रश्न तो दूर की बात है।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि एक बार यह दर्शा दिया जाता है कि विचाराधीन भूमि कृषि भूमि सुधार अधिनियम की धारा 2(9) की परिभाषा के अंतर्गत आती है तो यह राजस्व अधिकारी (कलेक्टर) के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जो उपरोक्त अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत बनाया गया फोरम है।

    न्यायालय ने अपने निर्णय के लिए जगतू बनाम बद्री में पूर्ण पीठ के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें इस बात की पुष्टि की गई कि जहां कब्जे के विवाद कृषि कानून के अंतर्गत आते हैं, वहां सिविल कोर्ट के पास अधिकार क्षेत्र नहीं है।

    मामला

    अपीलकर्ताओं (वादी) ने ग्राम बंधन, तहसील गूल, जिला रामबन में 18 कनाल 18 मरला भूमि के स्वामित्व और कब्जे का दावा करते हुए सिविल मुकदमा दायर किया।

    उन्होंने आरोप लगाया कि प्रतिवादी (प्रतिवादी) भूमि के लिए अजनबी है, जिन्होंने राजस्व अभिलेखों में हेराफेरी की और भूमि के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया।

    हालांकि प्रतिवादियों के पक्ष में दाखिल खारिज को बाद में रद्द कर दिया गया लेकिन वादी ने दावा किया कि उन्हें अभी भी कब्जा वापस नहीं दिया गया।

    वादी ने स्वामित्व की घोषणा और कब्जा वापस पाने तथा प्रतिवादियों द्वारा निर्माण या अलगाव को रोकने के लिए अनिवार्य निषेधाज्ञा की मांग की, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि राजस्व मामले पर निर्णय लेने का अधिकार सिविल न्यायालय के पास नहीं है।

    याचिकाकर्ता ने एक अपील दायर की थी। उसे भी खारिज कर दिया गया और इसलिए वर्तमान दूसरी अपील है।

    केस टाइटल: गुलजार बेगम और अन्य बनाम राजा बेगम और अन्य, 2025

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