यौन अपराधों में पीड़िता का एकमात्र साक्ष्य, यदि असंगतियों से भरा हुआ तो दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
Amir Ahmad
4 Feb 2025 12:04 PM IST

बलात्कार और अपहरण के मामले में निचली अदालत द्वारा पारित दोषसिद्धि आदेश रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि यह तथ्य कि अभियोक्ता को उस स्थान के बारे में पता था, जहां उसे अपहरण और बलात्कार के बाद रखा गया लेकिन जांच के दौरान उसने कभी उस स्थान की पहचान नहीं की, भौतिक विरोधाभास के रूप में महत्व रखता है।
इस तरह के विरोधाभास को देखते हुए न्यायालय ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि उसका साक्ष्य उत्कृष्ट गुणवत्ता का है, जिस पर अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराने के लिए भरोसा किया जा सकता है। अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य विश्वसनीय, ठोस नहीं हैं, जिसके परिणामस्वरूप अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराया जा सकता है।
जस्टिस रजनीश ओसवाल की पीठ ने आगे कहा कि अभियोक्ता का बयान शुरू से अंत तक (छोटी-मोटी विसंगतियों को छोड़कर) सुसंगत होना चाहिए। प्रारंभिक बयान से लेकर मौखिक गवाही तक अभियोजन पक्ष के मामले में कोई संदेह पैदा किए बिना।
यौन अपराध के मामलों के लिए आमतौर पर पीड़िता की गवाही पर्याप्त होती है। अभियोक्ता की ओर से एक अविश्वसनीय या अपर्याप्त विवरण, जिसमें पहचानी गई खामियां और अंतराल हों, दोषसिद्धि दर्ज करना मुश्किल बना सकता है।
इस मामले में अभियोक्ता ने आरोप लगाया कि उसका अपहरण किया गया और आरोपी व्यक्तियों अब्दुल गनी अखनूर और नूर मोहम्मद भट द्वारा उसके साथ बलात्कार किया गया। अभियोजन पक्ष द्वारा दिए गए सबूतों के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को बलात्कार, अपहरण और गलत तरीके से बंधक बनाने का दोषी ठहराया।
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है। अभियोक्ता के बयान विरोधाभासी हैं, जो आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। आगे यह तर्क दिया गया कि जिस स्थान पर अभियोक्ता के साथ कथित रूप से बलात्कार किया गया, उसकी न तो उसने पहचान की और न ही जांच एजेंसी को ऐसी जानकारी दी गई।
प्रतिवादी तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों का सही मूल्यांकन किया और उचित संदेह से परे आरोपी को उपरोक्त अपराध का दोषी पाया। आगे यह तर्क दिया गया कि पीड़िता का बयान आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त था।
कोर्ट ने कहा कि अभियोक्ता की गवाही के अलावा कोई ऐसा सबूत नहीं था, जो अपहरण और बलात्कार के तथ्य को स्थापित कर सके। संबंधित गवाहों यानी माता, पिता और पति के साक्ष्य अभियोक्ता द्वारा खुद दी गई जानकारी पर आधारित थे। अदालत के पास केवल अभियोक्ता का बयान बचा है, जो बलात्कार और अपहरण के आरोपों को साबित करने के लिए उत्कृष्ट गुणवत्ता का होना चाहिए।
उसके बयान का विश्लेषण करते हुए कोर्ट ने पाया कि अभियोक्ता ने यह आभास दिया कि जब उसे उस स्थान पर ले जाया गया तो उसकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी। हालांकि क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान यह स्पष्ट हो गया कि उसे अपहरण के समय जिस स्थान पर रखा गया, उसके बारे में उसे जानकारी थी जिसकी जानकारी जांच एजेंसी को नहीं दी गई।
इसके अलावा, अपनी FIR में उसने कहा कि उसके शरीर पर चोटें आई थीं लेकिन मेडिकल सर्टिफिकेट से यह दावा खारिज हो जाता है, जिसमें पता चलता है कि उसके शरीर पर हिंसा के कोई निशान नहीं पाए गए। कोर्ट ने कहा कि इन सभी विसंगतियों के साथ-साथ अन्य विसंगतियों से अभियोजन पक्ष के मामले की सत्यता पर संदेह होता है।
न्यायालय ने राय संदीप बनाम राज्य (एनसीटी ऑफ दिल्ली (2012) का संदर्भ दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाह को किसी भी लम्बाई और चाहे कितनी भी कड़ी क्रॉस एग्जामिनेशन क्यों न हो उसका सामना करने की स्थिति में होना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में घटना के तथ्य, इसमें शामिल व्यक्तियों और साथ ही इसके अनुक्रम के बारे में किसी भी संदेह की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। इस तरह के कथन का अन्य सहायक सामग्री जैसे कि बरामदगी, इस्तेमाल किए गए हथियार, अपराध का तरीका, वैज्ञानिक साक्ष्य और विशेषज्ञ की राय के साथ सह-संबंध होना चाहिए। उक्त कथन को हर दूसरे गवाह के कथन से लगातार मेल खाना चाहिए।
इसलिए हाईकोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित दोषसिद्धि कानून की दृष्टि में टिकने योग्य नहीं है और अपीलकर्ताओं को बरी कर दिया।
केस टाइटल: अब्दुल गनी अखनूर बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य, 2025