जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को गुमराह करने के लिए तथ्यों को छिपाने के लिए अनिवार्य रूप से रिटायर SBI कर्मचारी पर 25 हजार का जुर्माना लगाया

Amir Ahmad

25 Feb 2025 9:33 AM

  • जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को गुमराह करने के लिए तथ्यों को छिपाने के लिए अनिवार्य रूप से रिटायर SBI कर्मचारी पर 25 हजार का जुर्माना लगाया

    अनिवार्य रूप से रिटायर भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के कर्मचारी द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने न्यायालय को उसके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बारे में धोखा देने के इरादे से महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाने के लिए 25,000 का जुर्माना लगाया।

    उनकी याचिका खारिज करते हुए जस्टिस वसीम सादिक नरगल ने न केवल याचिकाकर्ता को राहत देने से इनकार किया, बल्कि कानूनी कार्यवाही में पारदर्शिता और ईमानदारी के सिद्धांतों को मजबूत करते हुए साफ-सुथरे हाथों से न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।

    जस्टिस नरगल ने टिप्पणी की,

    “जब कोई पक्ष महत्वपूर्ण तथ्यों को दबाता है तो यह कार्यवाही को अमान्य कर देता है। प्रत्येक वादी का यह कर्तव्य है कि वह सभी महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा करे, क्योंकि न्यायालय से महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाना न केवल न्याय की प्रक्रिया को कमजोर करता है बल्कि स्वच्छ हाथों से न्यायालय में आने के सिद्धांत का भी उल्लंघन है।

    ये टिप्पणियां मदन लाल गोरिया नामक व्यक्ति के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई से उपजी हैं, जो हिमाचल प्रदेश में SBI की भरमार शाखा के प्रबंधक के रूप में कार्यरत थे। भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद गोरिया को भारतीय स्टेट बैंक अधिकारी सेवा विनियम (SBIOSR) के नियम 67 (H) के तहत अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया गया। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में राज्य सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 और 13 (2) के तहत उनके खिलाफ FIR दर्ज की गई।

    धर्मशाला में कांगड़ा के विशेष न्यायाधीश ने गोरिया को सभी आपराधिक आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन SBI के भीतर अनुशासनात्मक कार्यवाही पहले ही उनकी बर्खास्तगी का कारण बन चुकी थी, जिसे बाद में अनिवार्य सेवानिवृत्ति में संशोधित किया गया।

    गोरिया का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट सुनील सेठी ने तर्क दिया कि अनुशासनात्मक कार्यवाही त्रुटिपूर्ण थी, क्योंकि उन्होंने आपराधिक मामले में उनके बरी होने पर विचार नहीं किया। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि अनिवार्य रिटायरमेंट का दंड कथित कदाचार की गंभीरता के अनुपात में नहीं था। अपीलीय और समीक्षा अधिकारी उनकी दलीलों पर उचित विचार करने में विफल रहे।

    याचिका की स्थिरता के संबंध में प्रारंभिक आपत्ति को संबोधित करते हुए जस्टिस नरगल ने कहा कि कार्रवाई के कारण को जन्म देने वाली कोई भी कार्रवाई जम्मू और कश्मीर के भीतर नहीं हुई।

    अनुशासनात्मक कार्यवाही, जांच और दंडात्मक आदेश सभी हिमाचल प्रदेश में निष्पादित किए गए, अदालत ने कहा,

    यह न्यायालय इस विचार पर है कि कार्रवाई का कोई कारण कार्रवाई के कारण का एक अंश भी इस न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में उत्पन्न नहीं हुआ। याचिकाकर्ता का यह तर्क कि उसे जम्मू में आरोपित आदेश दिए गए। इस न्यायालय में तत्काल याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं देता, क्योंकि इस न्यायालय के पास इस पर निर्णय लेने का अंतर्निहित अधिकार नहीं है।”

    तथ्यों को छिपाने पर प्रकाश डालते हुए न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता ने पहले हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में रिट याचिका के माध्यम से संपर्क किया, जिसे 01.03.2013 को खारिज कर दिया गया।

    न्यायालय ने रेखांकित किया कि वर्तमान याचिका में इस तथ्य का खुलासा न करना न्यायालय को गुमराह करने का जानबूझकर किया गया प्रयास है।

    न्यायालय ने प्रेस्टीज लाइट्स लिमिटेड बनाम एसबीआई और कुशा दुरूका बनाम ओडिशा राज्य का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि वादियों को सभी तथ्यों का खुलासा करना चाहिए और तथ्यों को छिपाने से याचिका खारिज हो सकती है भले ही वह अन्यथा योग्य हो। स्वच्छ हाथों के सिद्धांत पर जोर देते हुए जस्टिस नरगल ने दोहराया कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत, न्यायालय को गुमराह करने वालों को न्यायसंगत राहत उपलब्ध नहीं है।

    उन्होंने टिप्पणी की,

    "तथ्यों को छिपाने और न्यायिक प्रक्रिया को गुमराह करने का याचिकाकर्ता का आचरण कानूनी और नैतिक सिद्धांतों का गंभीर उल्लंघन है।"

    इस तरह के आचरण को रोकने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर 25,000 का जुर्माना लगाया। इस प्रकार याचिका को सभी संबंधित आवेदनों के साथ खारिज कर दिया गया। साथ ही निर्देश दिया गया कि निर्धारित समय सीमा के भीतर जुर्माना जमा किया जाना चाहिए। हालांकि न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस याचिका के खारिज होने से गोरिया को उचित अधिकार क्षेत्र वाले सक्षम न्यायालय के समक्ष उपाय करने से नहीं रोका जाएगा।

    केस टाइटल: मदन लाल गोरिया बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया

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