दो वयस्कों का एक-दूसरे को विवाह के लिए चुनना संवैधानिक अधिकार, परिवार या जाति की सहमति आवश्यक नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Amir Ahmad
24 April 2025 8:19 AM

व्यक्तिगत स्वायत्तता और संवैधानिक स्वतंत्रता को मजबूती से दोहराते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने नवविवाहित जोड़े द्वारा दायर सुरक्षा याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दो वयस्कों द्वारा एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में चुनना एक संवैधानिक अधिकार है, जो परिवार या समुदाय की स्वीकृति पर निर्भर नहीं करता।
जस्टिस वसीम सादिक नारगल की एकल पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के महत्व को दोहराते हुए कहा,
“जब दो वयस्क आपसी सहमति से एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में चुनते हैं तो यह उनकी पसंद की अभिव्यक्ति है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत मान्यता प्राप्त है। यह अधिकार संवैधानिक कानून से अनुमोदित है। इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। यह वर्ग, सम्मान या सामूहिक सोच के विचारों के सामने नहीं झुक सकता। परिवार, समाज या जाति की सहमति आवश्यक नहीं है।”
यह टिप्पणी उस याचिका पर आई, जिसे एक महिला और उसके पति ने दायर किया था।
दोनों ने दावा किया कि वे वयस्क हैं और हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार वैध रूप से विवाह कर चुके हैं। उन्होंने परिवार की नाराज़गी और संभावित उत्पीड़न के डर से राज्य से सुरक्षा की मांग की।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता दीनेश शर्मा ने पैरवी की जबकि जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश की ओर से वरिष्ठ अपर एडवोकेट जनरल मोनिका कोहली ने पक्ष रखा।
जस्टिस नारगल ने अपने आदेश में कहा,
“जब दो वयस्क अपनी इच्छा से विवाह करते हैं तो वे अपना रास्ता चुनते हैं, अपना संबंध स्थापित करते हैं और यह उनका लक्ष्य होता है। उन्हें ऐसा करने का अधिकार है। इस अधिकार में कोई भी हस्तक्षेप संवैधानिक उल्लंघन है।”
उन्होंने कहा कि संवैधानिक अदालतों का यह दायित्व है कि वे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करें, क्योंकि गरिमामयी जीवन का स्वतंत्रता से अटूट संबंध है।
“व्यक्ति की गरिमा और पसंद को अलग नहीं किया जा सकता। यदि किसी व्यक्ति की पसंद व्यक्त करने के अधिकार में बाधा डाली जाती है तो फिर गरिमा की संपूर्णता की कल्पना नहीं की जा सकती।”
इन टिप्पणियों के आलोक में अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता वयस्क हैं या नहीं और उनका विवाह कानूनन वैध है या नहीं, इसकी जांच की जाए।
यदि जांच सकारात्मक हो तो उन्हें पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाए और यदि कोई आपराधिक जांच लंबित हो तो वह बिना उनकी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप किए की जाए।
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यह आदेश विवाह की वैधता या याचिकाकर्ताओं की उम्र की पुष्टि नहीं करता जो कानून के अनुसार सत्यापन के अधीन है।
केस टाइटल- अनामिका देवी बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश