न्यायालयों को प्रक्रियागत गलतियों को रोकने के लिए सतर्क रहना चाहिए, जो कानूनी कार्यवाही को पूर्ववत कर सकती हैं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Amir Ahmad

25 Nov 2024 12:44 PM IST

  • न्यायालयों को प्रक्रियागत गलतियों को रोकने के लिए सतर्क रहना चाहिए, जो कानूनी कार्यवाही को पूर्ववत कर सकती हैं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    न्यायिक परिश्रम की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्टने इस बात पर जोर दिया कि न्यायालयों और न्यायाधिकरणों के पीठासीन अधिकारियों को कानूनी कार्यवाही के संचालन में निरंतर सतर्कता बनाए रखनी चाहिए।

    जस्टिस राहुल भारती की पीठ ने प्रक्रियागत गलतियों के गंभीर परिणामों को रेखांकित किया,जो वर्षों के कानूनी प्रयासों को संभावित रूप से निरर्थक बना सकते हैं।

    उन्होंने कहा,

    "न्यायालयों/न्यायाधिकरणों के पीठासीन अधिकारियों के लिए यह कर्तव्य और आवश्यकता दोनों है कि वे कानूनी कार्यवाही के संचालन में निरंतर सतर्क रहें, जिससे किसी भी गलती चाहे वह अनजाने में हुई हो या अनजाने में की संभावना को समाप्त किया जा सके, जिसके परिणामस्वरूप किसी भी समय कानूनी कार्यवाही के पूरे क्रम को उलट दिया जा सकता है।"

    न्यायालय ने ये टिप्पणियां 1998 में मोटर वाहन दुर्घटना से उत्पन्न एक मामले में कीं, जिसमें टिपर वाहन शामिल था, जिसके परिणामस्वरूप तजा बानो की दुखद मृत्यु हो गई। उसके पति और दो नाबालिग बच्चों ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) बारामुल्ला के समक्ष मुआवज़ा दावा दायर किया। परिणामस्वरूप 24 मार्च 2011 को उनके पक्ष में 3,29,200 का अवार्ड दिया गया।

    MACT बारामुल्ला ने अपने अवार्ड के अनुसार मुआवज़े के भुगतान की ज़िम्मेदारी बीमाकर्ता यानी यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को सौंप दी, जिससे अपराधी वाहन के मालिक और चालक के पक्ष में बीमा क्षतिपूर्ति का लाभ दिया गया।

    इससे व्यथित होकर बीमा कंपनी और पंजीकृत मालिक दोनों ने अपील दायर की।

    इस मामले पर निर्णय देते हुए जस्टिस भारती ने पाया कि अपराधी वाहन के रजिस्टर्ड मालिक अब्दुल रशीद कुबू को कभी भी दावा याचिका की सूचना नहीं दी गई जो कि कानूनी कार्यवाही में एक बुनियादी आवश्यकता है। प्रतिवादी के रूप में नामित होने के बावजूद उन्हें भेजे गए किसी भी समन या नोटिस का कोई रिकॉर्ड नहीं था।

    जस्टिस भारती ने बताया कि निचली अदालत ने कुबू की ओर से आवश्यक वकालतनामा दाखिल न करने वाले वकील की उपस्थिति के कारण उनकी उपस्थिति को गलत तरीके से मान लिया।

    उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट प्रक्रियात्मक दोष था, क्योंकि ट्रिब्यूनल ने नोटिस की सेवा की पुष्टि किए बिना कार्यवाही की जिसके कारण गलत धारणा बन गई कि प्रतिवादी मौजूद था।

    यह देखते हुए कि एकतरफा कार्यवाही उचित आधार के बिना थी अदालत ने कहा कि MACT बारामुल्ला ने इस तरह के निर्णय के लिए किसी भी कानूनी आधार की अनुपस्थिति के बावजूद कुबू के खिलाफ एकतरफा कार्यवाही की।

    अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अदालत के आदेश में कुबू के लिए एक अधिवक्ता की उपस्थिति गलत तरीके से दर्ज की गई, लेकिन कोई उचित कानूनी प्रतिनिधित्व नहीं था।

    उन्होंने कहा कि उचित नोटिस देने या वैध प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में विफलता के परिणामस्वरूप अपीलकर्ता के खिलाफ एकतरफा अन्यायपूर्ण निर्णय हुआ। अदालत ने जोर देकर कहा कि इस तरह की प्रक्रियात्मक लापरवाही कानूनी प्रक्रिया की अखंडता को गंभीर रूप से कमजोर कर सकती है।

    न्यायालय ने कहा कि पंजीकृत स्वामी को समुचित रूप से सूचित किए बिना तथा उसे अपनी स्थिति का बचाव करने का अवसर दिए बिना मुआवजे की देयता को पूरी तरह से बीमाकर्ता पर ट्रांसफर करने का MACT का निर्णय गंभीर दोष था।

    जस्टिस भारती ने ऐसी प्रक्रियात्मक त्रुटियों के गंभीर प्रभाव पर चर्चा करते समय शब्दों को नहीं छिपाया।

    उन्होंने कहा,

    “कानूनी कार्यवाही के संचालन में न्यायालय/न्यायाधिकरण की ओर से प्रक्रियात्मक लापरवाही ऐसा मामला है, जो कानूनी कार्यवाही में एक गंभीर कमी को जन्म देता है, जिससे कानूनी कार्यवाही के पूरे क्रम को प्रभावित करने की तत्काल और निरंतर संभावना होती है। चाहे वह किसी भी कानूनी कार्यवाही के अंतिम निपटान के चरण तक ही क्यों न हो।”

    न्यायालय ने आगे जोर दिया कि ऐसी त्रुटियों को माफ नहीं किया जा सकता खासकर जब वे कानूनी परिणामों की निष्पक्षता को प्रभावित करती हैं।

    इन प्रक्रियात्मक गलतियों की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय ने MACT बारामुल्ला द्वारा पारित अवार्ड खारिज किया, जो विशेष रूप से पंजीकृत स्वामी और बीमाकर्ता के बीच देयता के मुद्दे से संबंधित था।

    न्यायालय ने इस मुद्दे पर नए सिरे से निर्णय के लिए मामले को MACT को वापस भेजा तथा आदेश दिया कि दोनों पक्षों को अपने साक्ष्य और दलीलें पेश करने का अवसर दिया जाए।

    केस टाइटल: अब्दुल रशीद कुबू बनाम घ. हसन खान एवं अन्य।

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