सिर्फ जन्मचिह्न के आधार पर मेडिकल रूप से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने CAPF अभ्यर्थी की अस्वीकृति रद्द की

Amir Ahmad

24 Jun 2025 1:27 PM IST

  • सिर्फ जन्मचिह्न के आधार पर मेडिकल रूप से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने CAPF अभ्यर्थी की अस्वीकृति रद्द की

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट (जम्मू पीठ) ने एक CAPF अभ्यर्थी को जन्म से मौजूद जन्मचिह्न (Port Wine Stain) के कारण मेडिकल रूप से अयोग्य घोषित करने का निर्णय रद्द कर दिया।

    जस्टिस एम. ए. चौधरी की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि “Port Wine Stain” जैसे जन्मजात चिह्न केवल तभी अयोग्यता का कारण बन सकते हैं, जब कोई ठोस मेडिकल तर्क यह साबित करे कि वह कार्य या ट्रेनिंग में बाधा उत्पन्न करता है।

    अदालत ने अपने निर्णय में कहा,

    यह न्यायालय इस मत पर है कि याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी को गलत और मनमाने ढंग से खारिज किया गया। डिटेल्ड मेडिकल एग्जामिनेशन बोर्ड और रिव्यू मेडिकल बोर्ड की रिपोर्टों में यह नहीं बताया गया कि याचिकाकर्ता के चेहरे पर स्थित जन्मचिह्न (Port Wine Stain) किसी प्रकार से कॉन्स्टेबल (GD) के रूप में प्रशिक्षण या कार्यक्षमता में बाधा उत्पन्न करता है।”

    मामले की पृष्ठभूमि

    यह मामला अनीस रजुलिया, 22½ वर्षीय निवासी सांबा का है, जिसने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) में कॉन्स्टेबल (GD) के पद के लिए आवेदन किया था। अनीस होनहार उम्मीदवार है, जिसके पास 'A' ग्रेड एनसीसी सर्टिफिकेट है और वह जिला स्तरीय फुटबॉल प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत खिलाड़ी रहा है।

    उसने लिखित परीक्षा, शारीरिक मापदंड परीक्षण (PST), शारीरिक दक्षता परीक्षण (PET) और दस्तावेज़ सत्यापन सफलतापूर्वक पास कर लिया था।

    डिटेल्ड मेडिकल बोर्ड और रिव्यू मेडिकल बोर्ड ने उसे उसके दाहिने गाल पर जन्म से मौजूद "Port Wine Stain" के कारण अयोग्य घोषित कर दिया। इन रिपोर्टों में किसी भी प्रकार की कार्यात्मक अक्षमता का उल्लेख नहीं किया गया।

    अनीस ने वकील शेख अल्ताफ हुसैन के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। उसने यह तर्क दिया कि यह निर्णय 31.05.2021 को जारी संशोधित यूनिफॉर्म गाइडलाइन्स और संविधान के अनुच्छेद 14, 16 व 21 का उल्लंघन है।

    अदालत की टिप्पणियां


    जस्टिस चौधरी ने याचिका, मेडिकल रिपोर्ट्स और 2021 की गाइडलाइन्स की गहन समीक्षा करते हुए कहा
    ,

    गाइडलाइन की धारा 6(20) के अनुसार, किसी जन्मजात असामान्यता के आधार पर केवल तभी अयोग्यता घोषित की जा सकती है, जब वह ट्रेनिंग या कार्य करने में बाधा बनती हो। धारा XII(B)(8) के अनुसार त्वचा की बीमारियाँ जैसे नेवी या वास्कुलर ट्यूमर केवल तभी अयोग्यता का कारण बनते हैं, जब वे कार्य में हस्तक्षेप करें या निरंतर जलन का कारण बनें।

    कोर्ट ने यह पाया कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्टों में केवल "Port Wine Stain" का उल्लेख है लेकिन यह नहीं बताया गया कि यह कैसे याचिकाकर्ता के कार्य को प्रभावित करता है। संबंधित प्राधिकारी कोई स्पष्टीकरण या मेडिकल परीक्षण रिकॉर्ड प्रस्तुत करने में भी विफल रहे।

    कोर्ट ने कहा,

    बोर्ड की संक्षिप्त टिप्पणी केवल यह बताती है कि याचिकाकर्ता के चेहरे पर 'Port Wine Stain' है, लेकिन यह नहीं बताया गया कि यह स्थिति कैसे उसकी ड्यूटी पर असर डालती है। यह मत 2021 की गाइडलाइन्स के तहत कानूनी औचित्य से वंचित है और मनमाने ढंग से दिया गया प्रतीत होता है।”

    अदालत ने एक अन्य गंभीर प्रक्रिया दोष पर भी ध्यान दिया,

    रिव्यू मेडिकल सर्टिफिकेट दिनांक 09.10.2024 को जारी बताया गया, जबकि उस पर सदस्यों के हस्ताक्षर 12.10.2024 को किए गए, जिससे इसकी प्रमाणिकता पर सवाल उठे।

    “यह सर्टिफिकेट 09.10.2024 का बताया गया, जबकि उस पर हस्ताक्षर 12.10.2024 को किए गए हैं, जिससे यह प्रमाणपत्र संदेहास्पद और लापरवाही से तैयार किया गया प्रतीत होता है।”

    जस्टिस चौधरी ने Ashok Dukiya बनाम भारत संघ मामले का हवाला भी दिया, जिसमें राजस्थान हाईकोर्ट ने जन्मचिह्न (Congenital Melanolytic Nevus) के आधार पर बिना पर्याप्त कारण के सेवा से अस्वीकृति को रद्द किया था।

    अंततः, न्यायालय ने कहा,

    “मेडिकल रिपोर्ट में ऐसा कोई आधार नहीं है, जिससे यह प्रतीत हो कि याचिकाकर्ता नौकरी के लिए अयोग्य है। उसकी उम्मीदवारी को गलत, मनमाने और लापरवाह ढंग से अस्वीकृत किया गया।”

    निर्णय:

    अदालत ने डिटेल्ड मेडिकल एग्जामिनेशन रिपोर्ट और रिव्यू मेडिकल एग्जामिनेशन रिपोर्ट रद्द की और संबंधित प्राधिकरण को आठ सप्ताह के भीतर एक संशोधित मेडिकल बोर्ड बुलाने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: अनिश रजुलिया बनाम भारत संघ

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